राजस्थान में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स बने तमाशा

खिलाड़ियों को नसीब नहीं हुआ अच्छा खाना और किट

नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के अधिकारियों से डरकर भागे खिलाड़ी

खेलपथ संवाद

जयपुर। राजस्थान में हो रहे खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स तमाशा बन गए हैं। सरकार खजाना लुटा रही है लेकिन खिलाड़ी मैदान छोड़ रहे हैं। खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में सबसे बुरा हाल एथलेटिक्स स्पर्धाओं का है। अव्यवस्थाओं और खिलाड़ियों की कम भागीदारी के कारण एथलेटिक्स स्पर्धाएं ही सवालों में घिर गई हैं।

भारत 2030 कॉमनवेल्थ गेम्स की मेजबानी करने वाला है। 2036 ओलम्पिक की मेजबानी का मजबूत दावेदार भी माना जा रहा है लेकिन क्या वाकई भारत खेल के सबसे बड़े पर्व की मेजबानी के लिए तैयार है? यह सवाल पूछने का एक बड़ा कारण है। कारण यह कि जब राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे टूर्नामेंट्स में ही खिलाड़ियों को आम सुविधाओं के लिए परेशानी उठानी पड़ रही है, तो अंतरराष्ट्रीय स्तर की मेजबानी की दावेदारी कैसे मजबूत होगी?

नेशनल टूर्नामेंट्स की हालत कैसी है यह राजस्थान की राजधानी जयपुर में आयोजित ‘खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स’ के दौरान पता चला। खेलो इंडिया के यूनिवर्सिटी स्तर के इस सबसे बड़े टूर्नामेंट में पार्टिसिपेशन बेहद निराशाजनक रहा। ज्यादातर खिलाड़ियों ने इससे दूरी बनाकर रखी और जो खिलाड़ी इवेंट में हिस्सा लेने आए भी, उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

खेलो इंडिया गेम्स की शुरुआत 2018 से हुई। इसका लक्ष्य था उभरती हुई प्रतिभाओं को मौका देना। हर साल इसके लिए एक बड़ा बजट आवंटित होता है। हालांकि खिलाड़ियों का मानना है कि जैसे-जैसे साल बीत रहे हैं इन खेलों का स्तर गिर रहा है, खासतौर पर यूनिवर्सिटी गेम्स का। इस साल जयपुर में इन गेम्स की शुरुआत 24 नवम्बर से हुई थी। देशभर से कई यूनिवर्सिटी के खिलाड़ी यहां पहुंचे। टूर्नामेंट के लिए शानदार ओपनिंग सेरेमनी का आयोजन किया गया, लेकिन स्टेडियम खाली ही नजर आए।

इसके बाद जब टूर्नामेंट शुरू हुआ तो खिलाड़ियों को अलग-अलग संघर्षों से दो-चार होने पड़ा। उनको यहां खाने से लेकर ट्रैवल करने तक के लिए परेशानी उठानी पड़ी। सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें खिलाड़ी ऑटो में बैठकर स्टेडियम पहुंचे। कुछ खिलाड़ियों ने बताया कि होटल से स्टेडियम जाने के लिए गाड़ियां केवल एक तय समय के लिए खड़ी की गई थीं। इस कारण उन्हें या तो अपने इवेंट्स से घंटों पहले स्टेडियम पहुंचना पड़ा या अपने खर्चे पर जाना पड़ा।

खिलाड़ी खेलो इंडिया के दौरान मिल रहे खाने की गुणवत्ता से भी निराश थे। टूर्नामेंट में हिस्सा ले रहे रुचित ने बताया, हमारे रहने का इंतजाम किसी और होटल में किया गया और खाने का इंतजाम किसी और होटल में। हमें हर बार खाने के लिए वहां जाना पड़ता था। खाने की क्वालिटी भी बहुत बेकार थी। वह खाना हमने बहुत मुश्किल से खाया। इससे पहले खेलो इंडिया में इतनी खराब क्वालिटी का खाना कभी नहीं मिला।

इन खेलों में खिलाड़ियों को खेलो इंडिया की ओर से किट भी दी जाती है। यह किट उन खिलाड़ियों के लिए बहुत अहम होती है जो आर्थिक तौर पर कमजोर होते हैं। हालांकि इस बार किट की क्वालिटी बहुत गिरी हुई थी। ब्रांड का नाम होने के बावजूद किट की गुणवत्ता पर सवाल उठे। खिलाड़ियों ने इसकी शिकायत भी की। रुचित ने किट को लेकर कहा, मैं 2020 से खेलो इंडिया में खेल रहा हूं। इतनी खराब किट कभी नहीं मिली। 2020 में एडिडास ब्रांड एम्बेसडर था, तब किट बहुत अच्छी थी। इसके बाद टायका कम्पनी को कॉन्ट्रैक्ट मिला। तब भी किट की क्वालिटी अच्छी थी। कुछ समय तक ऐसा ही रहा। 2023 में दूसरी कम्पनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया और किट की क्वालिटी गिर गई। अब इन किट को देखकर ऐसा लगता ही नहीं कि यह किसी ब्रांड की है। इससे खिलाड़ियों को परेशानी होती है।

करोड़ों का बजट तो सुविधा क्यों नहीं?

हर साल खेल का बजट बढ़ रहा है, लेकिन खेल का स्तर गिर रहा है। इस साल भी सरकार ने खेल बजट के लिए 3794 करोड़ रुपये आवंटित किए। इसमें खेलो इंडिया का बजट बढ़ाया गया। 2024-25 में खेलो इंडिया का बजट 800 करोड था, जो 2025-2026 के लिए बढ़ाकर 1000 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसके बावजूद आयोजन के स्तर में आई गिरावट से खिलाड़ी हैरान और परेशान हैं। जब आयोजकों से खिलाड़ियों की परेशानियों को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने केवल माफी मांगकर मामला रफा-दफा करने की कोशिश की।

पत्रकारों से बात करते हुए राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल के चेयरमैन नीरज कुमार ने कहा, कहीं पर भी कोई अव्यवस्था हुई है उसके लिए मैं माफी मांगता हूं। हमने जो व्यवस्था की उसमें 98 प्रतिशत में कहीं कोई परेशानी नहीं आई है। एक-दो जगह ऐसी चीजें हुई हैं। हम आने वाले समय में इसे ठीक करेंगे और परेशानी के लिए माफी चाहता हूं। नीरज कुमार ने यहां बाकी चीजों के लिए तो माफी मांग ली, लेकिन पार्टिसिपेशन को लेकर सबकुछ स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) और ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी (एआईयू) पर डाल दिया।

इन खेलों में खिलाड़ियों का कम पार्टिसिपेशन सुर्खियों में रहा है। कुछ ऐसे इवेंट्स थे जिनके फाइनल में केवल एक या दो ही खिलाड़ी शामिल थे। 400 मीटर में मनीषा और 400 मीटर हर्डल्स में रुचित मोरी रेस में अकेले दौड़े वहीं पुरुषों के 400 मीटर में दो, 5000 मीटर में दो, 100 मीटर में तीन और 200 मीटर के पुरुष और महिला दोनों ही इवेंट में तीन ही खिलाड़ी फाइनल में दौड़े।

यह संख्या सवाल उठाती है कि आखिर इतने बड़े स्तर के टूर्नामेंट में, खासतौर पर वह टूर्नामेंट जिससे खिलाड़ियों को मेडल जीतने पर सरकारी नौकरी मिलने में आसानी होती है, वहां खिलाड़ी हिस्सा क्यों नहीं लेना चाहते? 400 मीटर में अकेले दौड़े रुचित मोरी ने इसके मुख्य रूप से तीन कारण बताए हैं।

सबसे पहले कारण पार्टिसिपेशन चुनने का तरीका। खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के इवेंट्स में ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के केवल टॉप 8 खिलाड़ियों को बुलाया जाता है। एआईयू गेम्स के विजेताओं को सरकारी नौकरी देने का प्रावधान है। नियम यह कहता है कि जिन खिलाड़ियों को नौकरी मिल गई है वह फिर किसी भी यूनिवर्सिटी स्तर के गेम्स में हिस्सा नहीं ले सकते। ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स पिछले साल दिसम्बर में हुए थे, जबकि खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स दिसम्बर 2025 में हो रहे हैं। एक साल में टॉप 8 में से कई खिलाड़ियों की सरकारी नौकरी लग चुकी है। इसी कारण कुछ खिलाड़ी हिस्सा लेने नहीं आ पाते हैं।

एक और बड़ा कारण है यूनिवर्सिटी गेम्स में नाडा यानी नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी के अधिकारियों की मौजूदगी। इन खेलों में खिलाड़ियों का डोपिंग टेस्ट होता है और पकड़े जाने पर प्रतिबंध तय होता है। साथ ही पिछले टूर्नामेंट्स के मेडल भी ले लिए जाते हैं। डोपिंग टेस्ट में फेल होने पर खिलाड़ियों का सरकारी नौकरी पाने का सपना भी हमेशा के लिए टूट जाता है। ऐसे में जो खिलाड़ी डोपिंग के चंगुल में होते हैं वह यहां खुद को टेस्ट से बचाने की कोशिश करते हैं।

यह बताता है कि भारत में डोपिंग की जड़ें कितनी गहरी हैं और इस पर कितना काम करने की जरूरत है। रुचित ने बताया कि इन खेलों में नाडा के कई अधिकारी होते हैं। यहां मेडलिस्ट्स के साथ-साथ कई लोगों का टेस्ट होता हैं, जबकि ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में नाडा नहीं होता। इसी वजह से जो खिलाड़ी डोपिंग कर रहे होते हैं वह इन गेम्स में हिस्सा नहीं लेते हैं।

खिलाड़ियों के कम पार्टिसिपेशन का एक और बड़ा कारण है खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स की टाइमिंग। यह खेल दिसम्बर में आयोजित होते हैं। आमतौर पर यह समय खिलाड़ियों का ऑफ सीजन होता है यानी खिलाड़ी इस दौरान टूर्नामेंट्स में हिस्सा लेने की जगह खुद को तैयार करने में समय देते हैं। वह शरीर पर जरूरत से ज्यादा लोड देते हैं ताकि सीजन शुरू होने तक तैयार हो सकें। खिलाड़ी ऑफ सीजन के बीच टूर्नामेंट में हिस्सा लेने से बचते हैं क्योंकि इसमें इंजरी का बहुत ज्यादा खतरा होता है।

इन वजहों से ही खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में कम खिलाड़ी दिखे। इन खेलों पर जितना पैसा खर्च किया जाता है, उसके मद्देनजर ये जरूरी है कि यहां खिलाड़ियों को यूनिवर्सिटी स्तर का कॉम्पिटिशन मिले। उन्हें यहां आने का कम से कम फायदा तो हो। जिन इवेंट्स में खिलाड़ी अकेले दौड़े उनमें उन्हें कोई मेडल या सर्टिफिकेट भी नहीं मिला। जब रुचित से पूछा गया कि वह अकेले दौड़ने के लिए तैयार क्यों हुए तो उन्होंने बताया, मैं वॉर्म अप कर चुका था। मेरे माता-पिता भी स्टैंड्स में मुझे देखने आए थे। इसलिए मैंने कहा कि चाहे मुझे मेडल न मिले, लेकिन मैं यहां दौड़ने आया हूं तो दौड़ूंगा।

रुचित अकेले दौड़े और उन्हें इसके लिए कुछ नहीं मिला लेकिन उनके अकेले दौड़ते हुए तस्वीरों ने कई सवाल उठा दिए। सवाल यह कि जिन गेम्स पर खेल बजट का सबसे बड़ा हिस्सा खर्च होता है वहां का ही स्तर गिर गया है तो खिलाड़ी और कहां से उम्मीद लगाएं? टूर्नामेंट्स के आयोजन की प्लानिंग ही अगर सही नहीं है तो परिणाम और स्टार खिलाड़ी कैसे तैयार होंगे? और सबसे अहम सवाल, इस तरह की स्थिति में क्या भारत वाकई 2036 ओलम्पिक की मेजबानी के लिए तैयार है? जयपुर में चल रहे खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स (केआइयूजी) की एथलेटिक्स स्पर्धाएं अव्यवस्थाओं और खिलाड़ियों की कम भागीदारी के कारण सवालों में घिर गई हैं। कई स्पर्धाओं में तो एक-एक ही प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिससे आयोजकों के लिए पदक वितरण भी चुनौती बन गया। स्पर्धाओं में अकेले खिलाड़ियों के दौड़ने का वीडियो भी इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हो रहा है।

पांचवें खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 24 नवम्बर को शुरू हुए थे, जो आज पांच दिसम्बर को समाप्त हो जाएंगे। मंगलवार को पुरुषों की 400 मीटर बाधा दौड़ के फाइनल में आठ एथलीटों को उतरना था, लेकिन ट्रैक पर सिर्फ स्वर्णिम गुजरात स्पो‌र्ट्स यूनिवर्सिटी के रुचित मोरी ही मौजूद थे।

उन्होंने अकेले दौड़ते हुए 51.00 सेकेंड का समय निकालकर मीट रिकॉर्ड तोड़ दिया। इसके बावजूद नियमों के अनुसार उन्हें स्वर्ण पदक नहीं दिया गया क्योंकि किसी प्रतियोगिता में पदक देने के लिए कम से कम दो प्रतिभागियों का भाग लेना जरूरी होता है। पदक नहीं मिलने पर रुचित ने कहा, मैंने मेहनत की, रिकॉर्ड बनाया।

बाकी एथलीट डोपिंग टेस्ट से बचने के लिए ट्रैक पर नहीं आए, तो इसकी सजा मुझे क्यों मिली। उन्होंने अनुपस्थित खिलाड़ियों पर कार्रवाई की मांग भी की। इसी तरह, महिला 400 मीटर दौड़ में पांच में से केवल एक एथलीट कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी की मनीषा ट्रैक पर उतरीं।

मेंस 400 मीटर में आठ में से केवल दो धावक उतरे। आकाश राज ने स्वर्ण और पी अभिमन्यु ने रजत पदक जीता। जबकि कांस्य पदक नहीं दिया गया। महिला 5000 मीटर में भी पांच में से केवल दो ही खिलाड़ी उतरीं। गेम्स के तकनीकी निदेशक सावे ने दोहराया कि एक ही प्रतिभागी होने पर मेडल सेरेमनी नहीं होती और यह निर्णय साई को पहले ही भेज दिया गया था। कुल मिलाकर, खिलाड़ियों की अनुपस्थिति, प्रबंधन की खामियां और लगातार खाली पड़ते पोडियम इस संस्करण को एक असफल आयोजन में बदलते दिख रहे हैं।

रिलेटेड पोस्ट्स