भारतीय हॉकी के गौरवशाली स्वर्णिम अतीत तक पहुंचना बहुत मुश्किल
भारतीय हॉकी के सौ साल पूरे होने पर देशभर में जश्न
हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देना सरकार का काम
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। पुश्तैनी खेल हॉकी सौ साल की हो गई है। भारतीय हॉकी ने सात नवम्बर, 2025 को 100 साल पूरे कर लिए हैं। आज देशभर के हॉकी प्रशिक्षक, प्रशंसक और खिलाड़ी इसका जश्न मना रहे हैं। इस अवसर पर दिग्गज खिलाड़ियों ने हॉकी के अतीत और वर्तमान पर बहुत कुछ कहा है।
देखा जाए तो भारत ने अपने शुरुआती 35 सालों में ओलम्पिक में 8 गोल्ड मेडल जीतकर अपनी धाक जमाई। यह आज भी एक रिकॉर्ड है। 1980 से 2020 तक यानी 40 साल के सूखे के बाद ब्रॉन्ज मेडल से फिर ओलम्पिक हॉकी में मेडल की शुरुआत हुई है। कुल मिलाकर बाद के 65 साल में भारत ओलम्पिक हॉकी गोल्ड के लिए तरसता रहा। हालांकि, इस बीच 1975 में देश को हॉकी खिलाड़ियों ने बड़ा जश्न मनाने का मौका दिया जब भारत ने विश्व कप जीतकर तिरंगे की शान बढ़ाई।
हॉकी में इस उतार-चढ़ाव की क्या वजह रही, क्रिकेट की तुलना में हॉकी क्यों पिछड़ गई? हॉकी को कब राष्ट्रीय खेल का दर्जा मिलेगा? इन कुछ सवालों के जवाब हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के बेटे और ओलम्पियन अशोक कुमार, वर्ल्ड कप विजेता टीम के खिलाड़ी असलम शेरखान और अर्जुन अवॉर्डी सैयद जलालुद्दीन रिजवी ने बेबाकी से दिए हैं।
अशोक ध्यानचंद ने कहा कि हमारे स्वर्णिम काल को दुनिया का कोई देश अब तक नहीं छू सका है। ओलम्पिक में सबसे ज्यादा 8 गोल्ड जीतकर अब भी हिन्दुस्तान सबसे ऊपर है। 1960 के बाद गोरों ने हमारी हॉकी को डैमेज किया। एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी होने लगी, कलात्मक हॉकी का दौर जाता रहा। इसका खामियाजा 40 साल तक सूखे के रूप में देखने को मिला। पिछले दो ओलम्पिक से हॉकी फिर से ट्रैक पर लौटी है। भारतीय पुरुष टीम ब्रॉन्ज मेडल लेकर लौटी है।
ओलम्पियन और अर्जुन अवॉर्डी सैयद जलालुद्दीन रिजवी का कहना है कि हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दर्जा देने में सरकार को क्या परेशानी है, समझ से परे है। हम तो सिर्फ अफसोस ही कर सकते हैं। ओलम्पिक हॉकी में 8 गोल्ड समेत 12 मेडल जीतना आसान बात नहीं। रिजवी ने कहा कि हॉकी को छोड़ किसी अन्य खेल में हम आज तक इतना ऊपर नहीं गए। अब सरकार और खेल मंत्रालय की जिम्मेदारी है कि वह हॉकी को राष्ट्रीय खेल का दस्तावेजीकरण करे। हमारे खिलाड़ियों का दुनिया में नाम है। रिजवी ने कहा कि किसी के प्रयास करने की बात नहीं है, यह तो अपने आप ही होना चाहिए। जब आपने हॉकी के नाम नेशनल स्पोर्ट्स डे तय कर दिया है तो इसे राष्ट्रीय खेल तय करना चाहिए।
रिजवी ने कहा कि हॉकी में दुनिया के किसी देश के पास इतने तमगे नहीं हैं, जितने भारत ने जीते हैं। पदक जीतने का भारत का रिकॉर्ड अभी तक किसी ने नहीं तोड़ा है। हमें अपनी हॉकी पर आज भी नाज है। उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में हॉकी अच्छी हो रही है। प्रीमियर लीग, नेशनल टूर्नामेंट सब अच्छे से हो रहे हैं। भारत ओलम्पिक में लगातार दो बॉन्ज मेडल जीत चुका है। इसका मतलब है हॉकी में विकास हो रहा है। बीच में करीब चार दशक तक हॉकी में बदलाव के कारण हम पिछड़ गए थे। सब चीजों को रिवाइज कर हम उस तरफ दौड़ पड़े हैं। ओलम्पिक में तीसरे स्थान पर हैं। दुनिया में हमारा तीसरा स्थान है।
रिजवी ने कहा कि हॉकी में निचले स्तर पर काम करने की दरकार है। इसके लिए खेल संघ, स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री की जिम्मेदारी है। जानकारों से बातचीत कर, उसे ठीक करें। हमें लगता है ठीक होगा और ठीक हो भी रहा है। उन्होंने कहा, जहां तक क्रिकेट की बात है तो पैरेंट्स भी बच्चों को क्रिकेट खिलाना चाह रहे हैं। हॉकी में बहुत मेहनत लगती है, बच्चे कमजोर हो रहे हैं, इसलिए भी हॉकी से दूर भाग रहे हैं।
स्कूलों में हॉकी खत्म हो गई
हॉकी ने 100 तो पूरे कर लिए लेकिन ग्रास रुट पर यानी स्कूल-कॉलेजों में हॉकी न के बराबर रह गई। शहरों में मैदान खत्म हो गए हैं। बच्चे कहां जाएं, हॉकी खेलने। स्कूलों में हॉकी होनी चाहिए। औबेदुल्ला जैसा हॉकी टूर्नामेंट बंद हो गया। असलम शेर खान इस बार टूर्नामेंट करवाने वाले थे, उन्हें अनुमति नहीं मिली। विश्व कप चैम्पियन टीम के फारवर्ड रहे अशोक ध्यानचंद ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं अब हम हॉकी से गोल्ड के प्रयास में बढ़ रहे हैं।
हॉकी और क्रिकेट की तुलना पर उन्होंने कहा, क्रिकेट में एक खिलाड़ी मैच जिता देता है, जबकि हॉकी में ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा, हॉकी में जितने ओलम्पिक गोल्ड हैं, उतने क्रिकेट में नहीं हैं। जहां तक विकास की बात करें तो उम्मीद करते हैं कि हॉकी में आगे अच्छा काम होगा। अशोक ध्यानचंद ने कहा, स्कूलों में हॉकी होनी चाहिए हम यह उम्मीद करते हैं। अशोक कुमार ने कहा कि मेजर ध्यानचंद ने निष्ठा, समर्पण और निस्वार्थ भाव से हॉकी खेली और खेल को बड़े मुकाम तक पहुंचाया यह सभी को पता है।
असलम शेर खान ने कहा कि हॉकी वो ऊंचाइयां तो छू ही नहीं सकती, जो उसने 1925 से 1964 तक किया। भारतीय हॉकी ने शुरुआती 50 सालों में बहुत ऊंचाइयां तक पहुंची। 1928 से गोल्ड मेडल जीतने का सिलसिला 1964 तक चला। फिर गैप आ गया। फिर लगातार दो-तीन ब्रॉन्ज मेडल आए। उसके बाद 40 साल टोटल हॉकी बदलने के कारण ऐसा हुआ। हॉकी आर्टीफिशियल सरफेस पर आ गई। स्टिक और बॉल बदल गई। रूल्स बदल गए। फिटनेस और पावर पर हॉकी चली गई। भारतीय हॉकी पहचान आर्टीस्टिक हॉकी रही है। पाकिस्तान के अलग होने के बाद गोरों (अंग्रेज) को यह लगा कि इंडिया नहीं तो पाकिस्तान मेडल जीत ले जाएगा। इससे गोरों ने टोटल गेम को ही चेंज कर दिया। मौजूदा भारतीय हॉकी से असलम शेरखान संतुष्ट हैं। उन्होंने कहा, अब हॉकी के बढ़ाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं देने की जरूरत है।
हॉकी खिलाड़ियों ने केक काटकर मनाया जश्न
हॉकी प्रशिक्षक और उत्तर प्रदेश एनआईएस खेल प्रशिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष फरहत अली खान ने होनहार बालक-बालिका खिलाड़ियों के साथ रामपुर के शहीद ए आज़म स्पोर्ट्स स्टेडियम में केक काटकर हॉकी के सौ साल पूरे होने का जश्न मनाया। इस अवसर पर फरहत अली खान ने कहा भारतीय हॉकी के कीर्तिमान ओलम्पिक में कोई देश छू ही नहीं सकता। आज भी हम गर्व से कहते हैं कि हमने ओलम्पिक में आठ गोल्ड, एक सिल्वर और तीन ब्रांज मेडल हासिल किए हैं। उन्होंने कहा कि भावी पीढ़ी में नया जोश और जज़्बा भरने के लिए अब इस खेल का प्रचार प्रसार भी किया जाए। हॉकी को सरकार और प्रशासन के सहारे न छोड़कर वरिष्ठ खिलाड़ियों को भी अपना योगदान देने की ज़रूरत है।
हॉकी प्रशिक्षक फरहत अली खान ने बताया कि नवम्बर और दिसम्बर में हॉकी से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान, भाषण प्रतियोगिता, पेंटिंग, सेमिनार, छोटी छोटी प्रतियोगिताएं कराई जाएंगी। इसके साथ ही वरिष्ठ खिलाड़ियों और उपलब्धि हासिल करने वाले युवा खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाएगा। इस अवसर पर जिला क्रीड़ा अधिकारी संतोष कुमार, खेलो इंडिया कोच मोहमद फहीम, रोशनी, मशीयत, फातिमा, कशिश, नविता, माही, परी, आंचल शीतल, गुंजन, हुदा खान, समीर खान, आदित्य, साजन, दक्ष आदि उपस्थित रहे।
