जब शेफाली ने कहा- 'पापा इस बल्ले से छक्का नहीं लगेगा'

बेटी की बात सुन खुद को रोक नहीं पाए थे संजीव वर्मा

स्कूटर से मेरठ गए और वहां से छह ब्रांडेड बल्ले लेकर लौटे

खेलपथ संवाद

रोहतक। हरियाणा के रोहतक स्थित घनीपुरा निवासी संजीव वर्मा की बेटी शेफाली वर्मा का सफर गली क्रिकेट से भारतीय महिला क्रिकेट टीम तक प्रेरणादायक रहा है। बचपन में प्लास्टिक के बल्ले से खेलने वाली यह लड़की आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का परचम लहरा रही है।

क्रिकेट के शुरुआती गुर पिता से सीखे और जब भी खेल को लेकर कोई निर्णय लेना होता है, आज भी पिता से सलाह जरूर लेती हैं। अंडर-19 महिला विश्व कप की विजेता कप्तान रह चुकी शेफाली ने अपने संघर्ष और समर्पण से यह साबित किया कि सीमित संसाधन भी सफलता की राह में रुकावट नहीं बनते।

पेशे से ज्वेलर्स संजीव वर्मा बताते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी लेकिन शेफाली का क्रिकेट के प्रति जुनून अडिग था। बचपन में वह प्लास्टिक के बल्ले से गली में खेलती थी। खेलते-खेलते उसने अपनी तकनीक और टाइमिंग दोनों को बेहतर बनाया। पिता ने बताया-जब वह छोटी थी, तबसे उसका ध्यान सिर्फ क्रिकेट पर था। हर दिन बैटिंग का अभ्यास करती और खुद को बेहतर बनाती रहती थी।

शेफाली ने 15 साल की उम्र में भारतीय महिला टी-20 टीम में जगह बनाई थी। जून 2021 तक वह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली सबसे कम उम्र की महिला क्रिकेटर बन गईं। उनके पिता याद करते हैं कि एक बार अभ्यास के दौरान बल्ला टूट गया था। तब शेफाली ने कहा-पापा, इस बल्ले से गेंद बाउंड्री पार नहीं जाएगी। इसके बाद पिता स्कूटर से मेरठ तक गए और वहां से छह ब्रांडेड बल्ले लेकर लौटे। उन्होंने कहा-उसकी आंखों में क्रिकेट था, मैं कैसे रोक लेता उसे।

शेफाली का आत्मविश्वास उस समय और बढ़ा जब 2013 में सचिन तेंदुलकर लाहली स्टेडियम में रणजी ट्रॉफी खेलने आए। सचिन को देखने के बाद उसने तय कर लिया कि उसे क्रिकेटर बनना ही है। शुरुआती अभ्यास के दौरान वह लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी ताकि उसकी बल्लेबाजी मजबूत हो।

कोचिंग लेने के बाद उसे अकादमी भेजा गया जहां उसने अपने खेल को और निखारा। क्रिकेट के लिए शेफाली ने अपने बाल तक कटवा लिए ताकि खेलते समय ध्यान सिर्फ मैदान पर रहे। बाद में उसके स्कूल ने लड़कियों की क्रिकेट टीम बनाई जिसमें शेफाली ने अहम भूमिका निभाई।

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