चैम्पियन सुमित अंतिल का लक्ष्य- 80 मीटर भाला फेंकना

विश्व पैरा एथलेटिक्स में कैथरीन की स्वर्णिम हैटट्रिक

नई दिल्ली से लौटकर श्रीप्रकाश शुक्ला

नई दिल्ली। जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम नई दिल्ली में चल रही विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप समापन की ओर है। देश के दिल दिल्ली में आयोजित पैरा खेलों की सबसे बड़ी वैश्विक स्पर्धा में खेल के छठे दिन तक कुल 21 विश्व कीर्तिमान तथा 65 चैम्पियनशिप कीर्तिमान बने हैं। दुनिया के जांबाज दिव्यांग खिलाड़ी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तो कर रहे हैं लेकिन उनका हौसला बढ़ाने वाला कोई नहीं है।

इन खेलों के पांचवें दिन स्विस व्हीलचेयर एथलीट कैथरीन डेब्रनर ने 1500 मीटर टी54 स्पर्धा का खिताब जीतकर विश्व पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के इस चरण में तीन स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली खिलाड़ी बन गईं। उन्होंने 1500 मीटर टी54 स्पर्धा में तीन मिनट 16.81 सेकेंड का चैंपियनशिप रिकॉर्ड समय निकालकर स्वर्ण पदक जीता। इससे पहले उन्होंने महिलाओं की 5000 मीटर टी54 और 800 मीटर टी53 स्पर्धाओं में भी स्वर्ण पदक जीता था। गत चैम्पियन चीन की झोउ झाओकियान 800 मीटर स्पर्धा के बाद दूसरी बार दूसरे स्थान पर रहीं। डेब्रनर के पास 2024 पेरिस पैरालम्पिक खेलों में चार स्वर्ण पदक जीतने का अनुभव है और वह यहां एक कदम और आगे बढ़ना चाहेंगी।

बुधवार को भारतीय पैरा खिलाड़ियों को कोई पदक नहीं मिला, लेकिन मेजबान खिलाड़ियों ने गुरुवार को एक रजत तथा एक कांस्य पदक जीतकर लाज बचाई। भारतीय खिलाड़ी अब तक चार स्वर्ण, पांच रजत और दो कांस्य सहित कुल 11 पदक जीतकर पदक तालिका में 11वें स्थान पर हैं। प्रतियोगिता के पांचवें दिन के अंत तक ब्राजील आठ स्वर्ण, 15 रजत और सात कांस्य के साथ शीर्ष पर रहा। उसके बाद चीन (7-9-5) दूसरे और पोलैंड (6-1-5) तीसरे स्थान पर रहा। तटस्थ पैरा एथलीट व्लादिमीर स्विरिडोव ने पुरुषों की गोला फेंक एफ36 स्पर्धा में अंतिम प्रयास में 17.01 मीटर की विशाल दूरी से स्वर्ण पदक जीता।

हंगरी की लुका एकलर ने 5.91 मीटर के विश्व रिकॉर्ड प्रयास के साथ महिलाओं की लम्बी कूद टी38 स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। अमेरिका के जेदीन ब्लैकवेल (पुरुषों की 400 मीटर टी38) और तटस्थ पैरा एथलीट ओलेक्सांद्र यारोवी (पुरुषों की गोला फेंक एफ20) अन्य एथलीट थे जिन्होंने प्रतियोगिता के पांच दिनों में विश्व रिकॉर्डों की संख्या 18 तक पहुंचाई। 21 वर्षीय जेदीन ब्लैकवेल ने पुरुषों की 400 मीटर टी38 फाइनल में 48.00 सेकेंड का विश्व रिकॉर्ड समय बनाया।

विश्व चैम्पियन सुमित अंतिल का लक्ष्य- 80 मीटर भाला फेंकना

भारत के स्टार पैरा भाला फेंक एथलीट सुमित अंतिल ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। 27 वर्षीय खिलाड़ी ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2025 में लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। इसके साथ ही वे इस चैंपियनशिप के इतिहास में सबसे सफल भारतीय पैरा एथलीट बन गए हैं। सुमित ने पुरुषों की एफ64 श्रेणी में 71.37 मीटर का थ्रो किया, जो न सिर्फ चैंपियनशिप रिकॉर्ड रहा बल्कि इस जीत ने भारत की झोली में एक और स्वर्ण पदक भी डाल दिया। खास बात यह रही कि उनके इस ऐतिहासिक पल का गवाह ओलंपिक पदक विजेता नीरज चोपड़ा भी बने, जो स्टैंड से उन्हें चीयर कर रहे थे।

सुमित ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद कहा, 'देखिए हम यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि एक पैरा एथलीट के तौर पर हम कितनी दूरी तक जा सकते हैं क्योंकि मैंने अक्सर सुना है कि एक पैरा एथलीट इतना अच्छा नहीं फेंक सकता। इसलिए हम इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे हैं।'

खिताब जीतने के बाद सुमित ने साफ कहा कि उनका अगला लक्ष्य 80 मीटर तक भाला फेंकना है। उन्होंने कहा, 'जब मैंने खेलना शुरू किया था तो किसी ने नहीं सोचा था कि पैरा एथलीट 70 मीटर तक भाला फेंक सकते हैं। अब हमने वह कर दिखाया है। आगे हमारा लक्ष्य 75 से 80 मीटर तक पहुंचना है।' सुमित का वर्तमान विश्व रिकॉर्ड 73.29 मीटर का है, जो उन्होंने 2023 एशियाई पैरा खेलों में बनाया था। हालांकि इस बार वह अपने ही रिकॉर्ड से थोड़ा पीछे रह गए। उन्होंने कहा कि कंधे और गर्दन में हल्की परेशानी के चलते वे पूरा दम नहीं लगा पाए, लेकिन चैंपियनशिप रिकॉर्ड बनाना उनके लिए खुशी की बात है।

भारत का शानदार प्रदर्शन, एक ही दिन चार पदक

सुमित के अलावा भारत ने इस दिन और भी उपलब्धियां हासिल कीं। संदीप सरगर ने पुरुषों की एफ44 श्रेणी में 62.82 मीटर का थ्रो कर स्वर्ण जीता। इसी स्पर्धा में भारत के ही एक और खिलाड़ी ने रजत पदक हासिल किया। योगेश कथुनिया ने पुरुषों की एफ56 चक्का फेंक स्पर्धा में रजत पदक जीता। यह उनका लगातार तीसरा विश्व चैंपियनशिप रजत है। इन नतीजों के बाद भारत की कुल पदक संख्या चार स्वर्ण, चार रजत और एक कांस्य पर पहुंच गई और तालिका में भारत चौथे स्थान पर रहा।

कथुनिया- संघर्ष और जज्बे की मिसाल

28 वर्षीय योगेश कथुनिया की कहानी भी प्रेरणा से भरी हुई है। बचपन में उन्हें गिलियन-बैरे सिंड्रोम नामक दुर्लभ रोग हो गया था, जिसके चलते डॉक्टरों ने कहा था कि वे कभी चल नहीं पाएंगे। लेकिन मां की मेहनत और फिजियोथेरेपी ने उन्हें दोबारा खड़ा किया। आज वे लगातार चार विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत चुके हैं और दो पैरालंपिक में भी रजत पदक अपने नाम कर चुके हैं। हालांकि अब भी उनका इंतजार पहले स्वर्ण पदक का है।

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