बिना हाथ-पैर की जांबाज पायल लगा रही सटीक निशाने

माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी की शीतल के बाद पायल दूसरी खोज
हेमंत रस्तोगी
नई दिल्ली। महज सात वर्ष की उम्र में पायल नाग के जीवन में वह तूफान आया, जिसने उनकी जिंदगी को दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया। राजमिस्त्री पिता रायपुर (छत्तीसगढ़) में एक बिल्डिंग में काम कर रहे थे और पायल इसी बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर खेल रही थीं। इसी दौरान वह बिजली के नंगे तारों की चपेट में आ गईं। डॉक्टरों ने उन्हें बचा तो लिया, लेकिन जीवन के लिए उन्हें अपने दोनों हाथ और पैर गंवाने पड़े। 
कुछ वर्ष बाद बालंगीर (ओडिशा) जिले की रहने वाली पायल के बारे में वहां के जिलाधिकारी को पता लगा तो उन्होंने उसे वहां के अनाथ आश्रम भेज दिया। उनकी जिन्दगी में बदलाव मई, 2023 में तब आया जब माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी में बिना बाजुओं की तीरंदाज शीतल देवी के कोच कुलदीव वेदवान ने उनकी सोशल मीडिया पर एक फोटो देखी।
वह पायल को लेने बालंगीर पहुंच गए। बमुश्किल वह पायल को कटरा ला पाए। उन्होंने पायल के लिए दो विशेष उपकरण बनवाकर धनुष-बाण चलवाया और उन्हें बिना हाथ-पैर की दुनिया की पहली तीरंदाज बना दिया। आज वही पायल, शीतल को हराकर न सिर्फ राष्ट्रीय पैरा तीरंदाज चैम्पियन बन चुकी है बल्कि उन्होंने बृहस्पतिवार को पुरी (ओडिशा) में सामान्य तीरंदाजों के बीच राष्ट्रीय रैंकिंग टूर्नामेंट में आठवां स्थान हासिल किया।
17 वर्षीय पायल अमर उजाला को 2015 की करंट लगने की घटना को बताते हुए भावुक हो जाती हैं। वह अपने को संभालते हुए कहती हैं कोच कुलदीप और श्राइन बोर्ड ने उन्हें नया जीवन दिया है। अब उनका एक ही सपना है देश के लिए पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने का। कुलदीप बताते हैं कि पायल को बालंगीर से लाना आसान नहीं था। वह बेहद गरीब परिवार से हैं। उन्होंने जब अनाथ आश्रम को बताया को वह इस बच्ची को तीरंदाज बनाना चाहते हैं और कटरा ले जाना चाहते हैं तो आश्रम संचालकों ने उन्हें पायल को देने से मना कर दिया। तब उन्होंने वहां के जिलाधिकारी चंचल राणा से सम्पर्क किया। उन्होंने पायल को कटरा भेजने की अनुमति दी।
कुलदीप के मुताबिक पायल जब कटरा आईं और उन्होंने दूसरे तीरंदाजों को धनुष-बाण चलाते देखा तो वह निराश हो गईं। उन्हें लगा कि वह कैसे धनुष-बाण चला पाएंगी। उनके तो हाथ और पैर ही नहीं हैं। कुलदीप बताते हैं उन्होंने पायल के पहले प्रोस्थेटिक पैर लगवाए और ऐसा उपकरण तैयार किया जिससे पायल को धनुष उठाने में कोई दिक्कत नहीं हो। दूसरा उपकरण वह शीतल के लिए पहले ही तैयार कर चुके थे। इन दोनों उपकरणों के सहारे उन्होंने शीतल की तरह पायल को तीरंदाजी शुरू कराई। इसी वर्ष जनवरी में जयपुर में हुई राष्ट्रीय पैरा तीरंदाजी में पायल ने रैंकिंग राउंड में शीतल को पीछे छोड़ा और ओलंपिक राउंड में शीतल को हराकर स्वर्ण भी जीत लिया।
पायल कैसे चलाती हैं धनुष बाण
पायल दाहिने नकली पैर में धनुष को फंसाती हैं, फिर उसे ऐसे सीधा करती हैं, जैसे एक सामान्य तीरंदाज हाथ के धनुष को पकड़ता है। यह धनुष एक विशेष उपकरण के सहारे पैर में फंसाया जाता है। धनुष में तीन फंसाने के बाद वह दाहिने कंधे से तीर को खीचती हैं और प्रत्यंचा (रिलीजर) को छोड़ते हुए निशाना साधती हैं। कुलदीप बताते हैं कि उन्होंने ये उपकरण न्यूटन के लॉ को ध्यान में रखकर विशेष रूप से पायल और शीतल के लिए तैयार किए।
(महिला दिवस पर साभार अमर उजाला)
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