खेल के साथ बच्चों को स्वस्थ जीवन जीना सिखाते हैं शारीरिक शिक्षक
शारीरिक शिक्षकों को सलाह कि वो अपने पद की गरिमा को समझें
श्रवण कुमार बाजपेयी
कानपुर। शारीरिक शिक्षा की जब बात आती है तो हम इसे खेल-कूद का पर्याय मान लेते हैं, लेकिन इसका अर्थ इतना व्यापक है, जिसे समझने के लिए हमें गांधीजी के इस कथन कि शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक और व्यक्ति के शरीर, मन व आत्मा के विकास से है, को समझना पड़ेगा। मोटे तौर पर हम शारीरिक शिक्षा को दो तरह से देख सकते हैं। पहला, जिसमें बच्चा अपने शरीर का सुनियोजित प्रयोग कर खेलकूद के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल करता है। दूसरा, जब हम विद्यालय के सभी बच्चों को शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कर उन्हें प्रतियोगिता के लिए तैयार करें तथा उन्हें स्वास्थ्यप्रद आदतों के साथ स्वस्थ-सुखी जीवन जीने के लिए प्रेरित करें।
शारीरिक शिक्षा की महत्ता को इसी बात से समझा जा सकता है कि यूनेस्को चार्टर 2021 में इसका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि, ‘शारीरिक शिक्षा व खेलकूद में भाग लेना व्यक्ति का मूलभूत अधिकार है।‘ ऐसा नहीं है कि शिक्षाविदों को यह जानकारी नहीं है। ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने शारीरिक शिक्षा के नाम पर बस बच्चों को अपनी फौजों के लिए तैयार करने तक सीमित रखा। यदि अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय से कोई ध्यानचंद बन पाया तो वह उसका अपना परिश्रम था न कि अंग्रेजों द्वारा विकसित की गई कोई सुनियोजित योजना।
देश स्वतंत्र होने के बाद शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में अनेक कदम उठाए गए। 1950 में शारीरिक शिक्षा व मनोरंजन केंद्रीय परामर्श बोर्ड की स्थापना हुई और 1951 में एशियाई खेलों की शुरुआत की गई। केंद्र सरकार ने लड़के, लड़कियों की शारीरिक क्षमता को परखने के लिए राष्ट्रीय शारीरिक दक्षता अभियान चलाया। उसी के परिणामस्वरूप सरकार ने राष्ट्रीय अनुशासन योजना बनायी, जिसके तहत शारीरिक शिक्षकों को भर्ती करने की योजना बनाई गई। यहीं से शारीरिक प्रशिक्षण प्रशिक्षक (पीटीआई) की नींव पड़ी। हालांकि शारीरिक शिक्षक अपने विद्यार्थी जीवन में पढ़े गए विषयों, जैसे-शरीर रचना विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, स्वास्थ्य शिक्षा व अन्य महत्वपूर्ण विषयों को भूलकर छात्रों को बस चुनिंदा खेलों में भाग दिलवाने तक सीमित रहे। एक विद्यालय से कितने बच्चे खेलों में हिस्सा लेते हैं, यह हम सभी जानते हैं।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में शारीरिक शिक्षा को बच्चे के सर्वांगीण विकास में नितांत आवश्यक बताया गया है तथा शिक्षण प्रक्रिया में खेलकूद को शिक्षा शास्त्र के रूप में प्रयोग करने की सलाह दी गई है। इस सलाह को मानते हुए दिल्ली बोर्ड आफ स्कूल एजुकेशन ने शारीरिक शिक्षा का एक सुनियोजित पाठ्यक्रम तैयार किया है जोकि कक्षा एक से 12 तक चलाया जाएगा, जिसके अंतर्गत किसी विद्यालय के सिर्फ चुनिंदा बच्चे ही इसमें भाग नहीं लेंगे, बल्कि सभी विद्यार्थियों को गतिविधियों में भाग लेना अनिवार्य होगा। इस पाठ्यक्रम के अंतर्गत बोर्ड के प्रत्येक बच्चे का स्वास्थ्य परीक्षण किया जाएगा तथा शारीरिक शिक्षकों का एक विशेषज्ञ समूह बच्चों के स्वास्थ्य संबंधी फिटनेस टेस्ट का आकलन कर आवश्यकता अनुसार शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में बदलाव कर सकेंगे। ऐसे में निश्चित रूप से यह प्रयास शारीरिक शिक्षक व शारीरिक शिक्षा दोनों को एक नयी पहचान देते हुए ऊंचाइयों तक ले जाएगा। फिलहार दिल्ली के कुछ फीसदी स्कूलों में ही शारीरिक शिक्षा और शारीरिक शिक्षक को महत्व मिल रहा है।
देखा जाए तो देश के अधिकांश राज्यों में शारीरिक शिक्षा और सम्मानित शारीरिक शिक्षकों को मजाक का विषय बना दिया गया है। महंगाई के इस दौर में शारीरिक शिक्षकों को एक अकुशल श्रमिक से भी कम मानदेय मिल रहा है, ऐसे में शिक्षण प्रक्रिया में खेलकूद को शिक्षा शास्त्र के रूप में शामिल करना किसे अजूबे से कम नहीं है। शारीरिक शिक्षकों को सलाह है कि वो अपने पद की गरिमा को समझते हुए बंधुआ मजदूरी का विरोध करें।