आओ देश व समाज की खुशियों का लें संकल्प

ऐसा हो जीवन कि न रहे किसी से कोई मलाल
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर।
हम नए साल में प्रवेश कर चुके हैं। जाहिर तौर पर इस साल खिलाड़ियों ही नहीं हर इंसान के कुछ सपने होंगे। खेलपथ आपके सपनों के साकार होने की कामना करता है। यूं तो समय अनवरत रूप से अपनी गति से चलता है। लेकिन पर्व-त्योहार और खास दिन उसमें नई उमंग और उत्साह भर देते हैं। आओ हम सब देश व समाज की खुशियों का संकल्प लें तथा सद्भाव की बयार बहाएं।
यूं तो हर नया साल पहले जैसा ही होता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम इस समय का कितना बेहतर रचनात्मक उपयोग करते हैं। अपने व परिवार का जीवन कितना ऊर्जावान व सकारात्मक बनाते हैं। दरअसल, कोई साल अच्छा-बुरा नहीं होता, उसके दौरान उत्पन्न होने वाली परिस्थितियां उसकी दशा-दिशा तय करती हैं।
यह हमारे विवेक और सजगता पर निर्भर करता है कि हम कैसे विषम परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाते हैं। यह लम्बी बहस का विषय रहा है कि एक जनवरी पश्चिमी देशों का नया साल है। यह भी कि उदास मौसम व रक्त जमाती सर्दी में नया साल मनाने का क्या औचित्य है? कहा जाता है कि भारतीय नववर्ष का आगमन उस समय होता है कि जब कुदरत मुस्करा रही होती है। सर्दी की विदाई की वेला होती है और ग्रीष्म ऋतु दस्तक दे रही होती है। वृक्षों पर फल-फूल व खेतों में नयी फसल पकने की तैयारी हो रही होती है। 
लेकिन तस्वीर का सकारात्मक पहलू यह है कि एक जनवरी का नववर्ष हमें कड़ाके की सर्दी और उदासी के मौसम में जीवंतता प्रदान करता है। लोग मौसम की तल्खी की परवाह किए बिना जमकर नये साल के उत्सवों में शिरकत करते हैं। जीवन की एकरसता को तोड़कर जीवंतता की ओर उन्मुख होते हैं। हो सकता है कि एक जनवरी को नया साल मनाने की शुरुआत के अन्य कारणों के साथ यह भी एक बड़ी वजह रही हो क्योंकि पश्चिमी देशों में भारी बर्फबारी सामान्य जनजीवन को जमा देती है। इसके बावजूद लोग नये साल के जश्न में घरों से बाहर निकलते हैं।
मकसद यही रहा होगा कि सर्दी को नजरअंदाज करके जीवन में उत्सव व उल्लास का संचरण हो सके। निस्संदेह, पर्व हमें उल्लासित करते हैं। जीवन की एकरसता को तोड़ते हैं। नई ऊर्जा व उत्साह का संचार करते हैं। यही पर्वों की सार्थकता भी है। निस्संदेह, भारत पर्व-त्योहारों का देश है। एक तरह से ये पर्व-त्योहार समाज में सेफ्टीवॉल का काम करते हैं। ऐसे समय में जब करोड़ों लोग मनोकायिक रोगों से जूझ रहे हैं, तो पर्व-त्योहार दवा का भी काम करते हैं। 
दरअसल, महानगरीय जीवन में व्यक्ति गंभीर रूप से आत्मकेंद्रित होता जा रहा है। कालांतर वहां जीवन भी एकरसता में बदल जाता है। बिना सामाजिक सक्रियता के जीवन की जीवंतता संभव नहीं है। फिर नया साल हमें आत्ममंथन का एक अवसर भी देता है- बीते वर्ष के घटनाक्रम व उपलब्धियों का मूल्यांकन करने और असफलताओं से सबक सीखकर आने वाले वर्ष के लिये नीतियां बनाने के लिये।
बहुत सम्भव है कि हम अपने संकल्पों की कसौटी पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते लेकिन प्रयास किया जाना भी महत्वपूर्ण है। कुछ प्रतिशत तो हमारी कामयाबी होती है। इसके बावजूद नये साल के जश्न में अराजक व्यवहार से हमें परहेज करना चाहिए। नशे का नासूर जिस तरह हमारे समाज में घातक असर दिखा रहा है, उससे बचने के उपक्रम तो किये ही जाने चाहिए। हमें शोभा नहीं देता है कि नये साल के जश्न में हम अराजक व्यवहार करके दूसरों के जीवन की शांति को भंग करें। 
अक्सर नशे में तेज गति से दौड़ते वाहन दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। नये साल का जश्न मनाने तमाम लोग पहाड़ों की ओर कूच करते हैं। जगह-जगह से सड़कें जाम होने और होटलों के फुल होने की खबरें आती हैं। हमारी कोशिश हो कि इन पर्यटन स्थलों पर स्थानीय लोगों और पर्यावरणीय चिंताओं का भी ध्यान रखें। हमारा व्यवहार सभ्य और मर्यादाओं के अनुरूप ही हो। उत्सव हमें अराजक व्यवहार की स्वीकृति नहीं देते। हमारे उल्लास व उत्सव मनाने का अधिकार किसी के निजी अधिकारों के अतिक्रमण की आजादी भी नहीं देता। वास्तव में हमें नये साल में अपने व परिवार की खुशियों के साथ देश व समाज की खुशियों के लिये भी संकल्प लेना चाहिए।

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