55 साल के हुए पांच बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद

शतरंज में दुनिया के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी ने तय किए कई पड़ाव
प्रवीण थिप्से
नई दिल्ली।
शतरंज में दुनिया के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद अब 55 साल के हो गए हैं। भारत के इस शातिर ने इस खेल में कई पड़ाव तय किए हैं। हमारी सीरीज 'इस तिथि को जन्में' चैम्पियन के तहत मुझे एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में बताने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है, जिन्हें शतरंज के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी होने का दर्जा प्राप्त है। यह कोई और नहीं पांच बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद हैं। आनंद का जन्म 11 दिसम्बर, 1969 को सुशीला विश्वनाथन और कृष्णामूर्ति विश्वनाथन के यहां तमिलनाडु के माइलादुथुराई में हुआ था। 
आनंद ने शतरंज अपनी मां से सीखा, लेकिन छोटी उम्र में ही उन्होंने इस खेल की जटिल बारीकियां खुद सीखना शुरू कर दीं। वह मद्रास (अब चेन्नई) के ताल चेस क्लब में रोजाना जाया करते थे, इससे उनमें तेजी से सुधार आया। फरवरी, 1984 में महज 14 वर्ष की उम्र में वह राष्ट्रीय चैंपियनशिप में चौथे स्थान पर रहे, जिससे उन्होंने भारतीय टीम में जगह बनाई। तीन माह बाद ही अप्रैल, 1984 में आनंद ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाप छोड़ते हुए विश्व सबजूनियर चैंपियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया। उस दौरान राष्ट्रीय चैंपियन होने के नाते, मैं इस टूर्नामेंट में उनके साथ बतौर कोच गया था। मुझे अच्छी तरह याद है, सोवियत टीम के प्रशिक्षक एलेक्सेई सुएतिन और नोना गैपरिंडेशविली, इतनी कम उम्र में आनंद के चातुर्यपूर्ण फैसलों और पोजीशनों से हैरान थे। 
1985 की लायड बैंक मास्टर्स चेस चैंपियनशिप में आनंद ने ग्रैंडमास्टर जोनाथन मेस्टेल पर हैरतअंगेज जीत दर्ज की। आनंद ने उन्हें हराने में सिर्फ 10 मिनट लिए, जबकि मेस्टेल ने दो घंटे 29 मिनट का समय लिया। इसके बाद बीबीसी ने उन्हें द लाइटनिंग किड का नाम दिया।  
1987 में आनंद एशिया के पहले चेस विश्व चैम्पियन बने, जब उन्होंने जूनियर विश्व चैंपियनशिप जीती। इसी वर्ष वह भारत के पहले ग्रैंड मास्टर बने। इसके बाद आनंद की प्रगति इतनी तेज थी कि उनकी तुलना महान कार्पोव और कास्परोव से ही की जा सकती थी। 1990 में उन्होंने कैंडिडेट्स मुकाबलों के लिए क्वालीफाई किया। पहले ही मैच में एलेक्सी ड्रीव को हराने के बाद वह विश्व नंबर-5 बन गए और इस स्थान तक वह 2016 तक बने रहे।
आनंद कार्पोव के खिलाफ फिडे विश्व चैंपियनशिप और कास्परोव के खिलाफ पेशेवर चेस एसोसिएशन विश्व चैंपियनशिप के मैच जीतने में असफल रहे। वर्ष 2000 में वह एलेक्सी शिरोव को हराकर पहली बार विश्व चैंपियन बने। इसके बाद शतरंज की पत्रिका न्यू इन चेस ने उन्हें शतरंज का सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी बताया। 2003 में कास्परोव के संन्यास के बाद पेशेवर चेस एसोसिएशन खत्म हो गई और फिडे ने एकीकृत विश्व चैंपियनशिप आयोजित की।
यहां आनंद 2007 में दोबारा विश्व चैंपियन बने। इसके बाद वह 2008 में क्रैमनिक, 2010 में टोपालोव और 2012 में गेलफेंड को हराकर विश्व चैंपियन बने। आनंद को इस खेल के सर्वकालिक महान खिलाडि़यों में से एक माना जाता है। 2013 में आनंद को मैग्नस कार्लसन के हाथों विश्व खिताब गंवाना पड़ा। 2014 में उन्होंने यह खिताब वापस पाने की फिर कोशिश की, लेकिन कार्लसन की ऊर्जा के आगे ऐसा नहीं हो सका।
इसके बाद उन्होंने क्लासिकल विश्व चैंपियनशिप में खेलना छोड़ दिया। हालांकि इसके बाद वह 2017 में रैपिड के विश्व चैंपियन जरूर बने। 1980-1990 में मैं कई वर्षों तक आनंद और उनके खेलने के तरीके को करीब से देखने में सफल रहा। इसके बाद आनंद स्पेन चले गए और उनका भारतीय शतरंज से नाता कम हो गया, लेकिन तीन दशक के बाद एक बार फिर 2023 में टेक महिंद्रा ग्लोबल चेस लीग में मुझे उनकी टीम का कप्तान और कोच होने का गौरव प्राप्त हुआ। आनंद इस वक्त फिडे के उपाध्यक्ष हैं। वह 2022 से वेस्टब्रिज आनंद चेस अकादमी के जरिये युवा भारतीयों को अपना मार्गदर्शन देने की भूमिका को भी सफलतापूर्वक निभा रहे हैं। इस समय आनंद सिंगापुर में विश्व चैंपियनशिप में डी गुकेश के साथ हैं।
लेखक  (प्रवीण थिप्से) अर्जुन अवॉर्डी और अंतरराष्ट्रीय शतरंज ग्रैंडमास्टर हैं

रिलेटेड पोस्ट्स