टोक्यो की तरह पेरिस पैरालम्पिक में भी सुहास एलवाई चांदी से चमके
यूपी के आईएएस अधिकारी ने लगातार दूसरी बार जीता रजत पदक
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। कम्प्यूटर इंजीनियर से आईएएस अधिकारी बने सुहास एलवाई ने अपने टखने की कमजोरी को बैडमिंटन के प्रति अपने जुनून में कभी बाधा नहीं बनने दिया। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार में सचिव खेल एवं युवा कल्याण तथा सचिव प्रांतीय रक्षक दल की महती जवाबदेही सम्हाल रहे सुहास का प्रशासन से बैडमिंटन कोर्ट तक का सफर उनकी उल्लेखनीय दृढ़ता की ही गवाही देता है। सुहास ने पेरिस पैरालम्पिक में टोक्यो का प्रदर्शन दोहराया और पुरुष एकल एसएल4 स्पर्धा में रजत पदक जीतने में सफल रहे। इसी तरह सुहास पैरालम्पिक में लगातार दो पदक जीतने वाले भारत के पहले बैडमिंटन खिलाड़ी बन गए हैं।
सुहास कहते हैं कि बचपन में ही उनके पिता ने उनमें ऐसा कूट-कूटकर आत्मविश्वास भरा कि इंजीनियरिंग से आईएएस और यहां से पैरा शटलर के रास्ते खुलते गए। सुहास के मुताबिक उन्हें मेडिटेशन की जरूरत नहीं पड़ती। जब वह कोर्ट पर होते हैं तो उन्हें आध्यात्म का अनुभव होता है। बैडमिंटन ही उनके लिए ध्यान और साधना है। अहम जिम्मेदारी होने के बावजूद सुहास बैडमिंटन के लिए समय निकाल लेते हैं। वह कहते हैं कि दुनिया में लोगों के पास 24 घंटे ही हैं। इनमें कई सारे काम कर लेते हैं और कुछ कहते हैं कि उनके पास समय नहीं है।
किसी चीज के प्रति दीवानापन है तो उसे करने में तकलीफ नहीं होती। इसी तरह बैडमिंटन उनके लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। काम के साथ तीन घंटे की मेडिटेशन की बात को बड़ा नहीं माना जाएगा, लेकिन काम के साथ तीन घंटे बैडमिंटन खेलना लोगों को बड़ा लगेगा। बैडमिंटन उनके लिए मेडिटेशन है। जब वह खेलते हैं तो आध्यात्म का अनुभव करते हैं जिसमें किस तरह एक-एक प्वाइंट के लिए डूबना होता है। अगर किसी चीज को करने की चाहत है तो सामंजस्य बिठाया जा सकता है।
आईएएस अकादमी में रहे बैडमिंटन, स्क्वैश के उपविजेता
सुहास ने बताया कि वह बैडमिंटन कॉलेज के दिनों से ही रोजाना खेलते आ रहे हैं। जब वह 2007 में आईएएस अकादमी मसूरी गए तो वहां साई कोच एमएम पांडेय मिले। अकादमी में वह बैडमिंटन और स्क्वैश के उप विजेता रहे। उस दौरान एमएम पांडेय ने उन्हें एक दिन कोर्ट पर बुलाया और इधर-उधर शटल देकर बुरी तरह नचाया। वह थक गए तो कोच ने कहा कि अपने पर घमंड मत करो। उन्हें अभी ट्रेनिंग की जरूरत है। तब उन्होंने बैडमिंटन की कोचिंग दी और उसके बाद गौरव खन्ना उन्हें पैरा बैडमिंटन में लाने के लिए जिम्मेदार बने।