भारतीय कुश्ती को आग लगी कुश्ती के चिराग से

खेलों और खिलाड़ियों को अनुकूल माहौल की दरकार
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली।
भारतीय कुश्ती में जो कुछ चल रहा है, इसके खेलों में दूरगामी परिणाम बहुत घातक होंगे। कुश्ती संघ मामले में संलिप्त लोगों में धैर्य और विश्वास की काफी कमी है। खेल संगठनों का काम खिलाड़ियों को बेहतर माहौल देना होता है लेकिन यहां इसके उलटा हो रहा है। केन्द्रीय खेल मंत्रालय की पहल पर भारतीय ओलम्पिक संघ ने बेशक तीन सदस्यीय एडहॉक कमेटी बना दी हो लेकिन दोनों पक्षों की बदजुबानी से समूची दुनिया में भारतीय कुश्ती शर्मसार हो रही है।
भले ही केंद्रीय खेल मंत्रालय ने हाल ही में निर्वाचित भारतीय कुश्ती संघ को निलम्बित कर दिया हो, लेकिन लम्बे समय से संघर्षरत महिला खिलाड़ियों को विश्वास दिलाना जरूरी है कि सरकार उनकी सुरक्षा व भरोसे को कायम करने के लिये कारगर कदम उठाएगी। उल्लेखनीय है कि 21 दिसम्बर को भारतीय कुश्ती संघ के चुनाव परिणाम आए थे, जिसमें संघ के पूर्व विवादित अध्यक्ष तथा भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इससे लम्बे समय से पूर्व अध्यक्ष को हटाने के लिये आंदोलनरत महिला पहलवानों में आक्रोश व्याप्त हो गया था। 
ओलम्पिक पदक विजेता साक्षी मालिक ने एक प्रेस वार्ता में चुनाव को लेकर रोष व्यक्त करते हुए कुश्ती को अलविदा कह दिया। उसके बाद पहलवान बजरंग पूनिया ने पद्मश्री लौटाने की घोषणा की तो विनेश फोगाट ने भी अर्जुन और खेल रत्न लौटाने की बात कही। गूंगा पहलवान के नाम से चर्चित वीरेंद्र सिंह ने भी पद्मश्री लौटाने की बात कही थी। साथ ही चंद खाप-पंचायतें भी खिलाड़ियों के समर्थन में उतरती दिखीं। दरअसल, महिला पहलवानों का आरोप था कि संजय सिंह के जरिये बृजभूषण शरण सिंह कुश्ती संघ पर अपना वर्चस्व बनाये रखेंगे, क्योंकि संजय सिंह उनके बिजनेस पार्टनर भी हैं। 
दरअसल, नवनिर्वाचित अध्यक्ष ने अंडर-15 और अंडर-18 के ट्रायल उत्तर प्रदेश के गोंडा स्थित नंदिनी नगर में आयोजित करने की घोषणा की थी, जोकि बृजभूषण शरण सिंह के राजनीतिक वर्चस्व वाला क्षेत्र है। जिसके बाद उठे विवाद के उपरांत ही केंद्रीय खेल मंत्रालय ने नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को निलम्बित कर दिया और नये अध्यक्ष द्वारा लिये फैसलों को भी रद्द कर दिया। वहीं खेल मंत्रालय की दलील है कि भारतीय कुश्ती महासंघ को इसलिए निलम्बित किया गया क्योंकि निर्वाचित संस्था ने उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया। वहीं निलम्बित अध्यक्ष का कहना है कि नियमों का उल्लंघन नहीं किया है,यदि जरूरत पड़ी तो कोर्ट जाएंगे। दूसरी ओर बृजभूषण शरण सिंह की दलील है कि वे कुश्ती संघ से संन्यास ले चुके हैं और लोकसभा चुनाव की तैयारी में व्यस्त हैं। दूसरी तरफ साक्षी मलिक का कहना है कि उसकी लड़ाई एक व्यक्ति से थी, सरकार से नहीं। लेकिन सरकार को वादे के अनुसार विवादित पूर्व अध्यक्ष के करीबियों को संघ में आने से रोकना चाहिए था। 
साक्षी ने संन्यास के फैसले पर कहा कि वे अपने फैसले से मीडिया को अवगत कराएंगी। वहीं कांग्रेस इस मुद्दे पर खासी मुखर रही है और इस फैसले को लीपापोती की कवायद बता रही है। कहा जा रहा है कि आम चुनाव की ओर बढ़ते देश में किसी जनाक्रोश से बचने के लिये सरकार ने यह कार्रवाई की है। वहीं महिला खिलाड़ी इस पद पर किसी महिला की नियुक्ति की मांग कर रही हैं ताकि महिला खिलाड़ियों को सुरक्षित वातावरण मिल सके। साथ ही यह सुनिश्चित करने की भी मांग की जा रही है कि जिन लोगों पर आरोप लगे थे वे और उनके सहयोगी फिर कभी भारतीय कुश्ती संघ पर काबिज न हो सकें। 
भारतीय कुश्ती संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष संजय सिंह का वाराणसी में निकला विजय जुलूस इस बात का सूचक है कि वह आसानी से कुर्सी नहीं छोड़ेंगे। कुछ दिन या कुछ माह का विलम्ब हो सकता है वह अदालत का दरवाजा जरूर खटखटाएंगे। कुश्ती संघ में छिड़ी इस जंग का सही समाधान खोजा जाना चाहिए तथा भारतीय ओलम्पिक संघ को भी अपने अधिकारों का सही निर्वहन करना जरूरी है। सच कहें तो भारतीय ओलम्पिक संघ को इस समय खेल संगठनों की बजाय केन्द्रीय खेल मंत्रालय चला रहा है जोकि बिल्कुल गलत है।
   

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