विश्वनाथन आनंद विश्व चैम्पियन बनने वाले पहले भारतीय

दिग्गज भारतीय शातिर की तुलना कारपोव या कास्परोव से की जाती रही
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
पांच बार के विश्व चैम्पियन विश्वनाथन आनंद शतरंज की दुनिया के बेताज बादशाह माने जाते रहे हैं। वह जब तक खेले तब तक उनकी तुलना कारपोव या कास्परोव से की जाती रही। विश्वनाथन आनंद विश्व चैम्पियन बनने वाले पहले भारतीय शतरंज खिलाड़ी हैं।
आनंद का जन्म 11 दिसम्बर, 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुराई में सुशीला विश्वनाथन और कृष्णमूर्ति विश्वनाथन के घर हुआ था। आनंद ने अपनी मां से शतरंज की मूल बातें सीखीं, लेकिन बहुत कम उम्र में ही खेल की मुश्किल चालें सीखना भी शुरू कर दिया। वह ताल शतरंज क्लब मद्रास (अब चेन्नई) में नियमित रूप से जाते थे जिससे उन्हें सुधार करने में काफी मदद मिली।
फरवरी 1984 में, 14 साल की उम्र में, आनंद राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में चौथे स्थान पर रहे और भारतीय टीम में जगह बनाई थी। वह किसी भी विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने वाले पहले भारतीय बने और उन्होंने यह उपलब्धि फ्रांस में आयोजित विश्व सब-जूनियर विश्व शतरंज चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहकर हासिल की थी।
लंदन में लॉयड्स बैंक मास्टर्स शतरंज चैम्पियनशिप में आनंद ने ग्रैंडमास्टर जोनाथन मेस्टेल पर जीत हासिल की। उन्होंने केवल 10 मिनट का समय लिया जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी ने 2 घंटे 29 मिनट का समय लिया था। इस जीत के लिए बीबीसी ने आनंद को 'द लाइटनिंग किड' नाम दिया।
1987 में आनंद शतरंज विश्व चैम्पियनशिप जीतने वाले पहले एशियाई बने, वह विश्व जूनियर चैम्पियनशिप में पहले स्थान पर रहे। उसी वर्ष वह भारत के पहले ग्रैंडमास्टर भी बने थे। इसके बाद आनंद की प्रगति इतनी तेज थी कि उनकी तुलना कारपोव या कास्परोव से ही की जाती थी। 1990 में, उन्होंने विश्व चैंपियनशिप कैंडिडेट्स मैचों के लिए क्वालिफाई किया। एलेक्सी ड्रीव के खिलाफ पहला मैच जीतने के बाद उन्हें शीर्ष-पांच में जगह मिल गई और यह स्थिति उन्होंने 2016 तक कायम रखी।
हालांकि आनंद कारपोव के खिलाफ फिडे विश्व चैम्पियनशिप मैच और कास्पारोव के खिलाफ प्रोफेशनल शतरंज एसोसिएशन विश्व चैम्पियनशिप मैच नहीं जीत पाए थे, लेकिन उन्होंने विश्व शतरंज में अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी। 2000 में वह एलेक्सी शिरोव को शिकस्त देकर पहली बार विश्व शतरंज चैंपियन बने थे। इस मैच को जीतने पर शतरंज पत्रिका 'न्यू इन चेस' ने चैम्पियनशिप पर अपने लेख में आनंद को सबसे लोकप्रिय खिलाड़ी बताया।
2003 में कास्पारोव के संन्यास के बाद प्रोफेशनल शतरंज एसोसिएशन निष्क्रिय हो गया और फिडे ने 2007 में यूनिफिकेशन वर्ल्ड चैम्पियनशिप का आयोजन किया, जिसमें आनंद ने सर्वोच्च स्थान हासिल किया और दूसरी बार विश्व चैम्पियन बने। क्रैमनिक (2008), टोपालोव (2010) और गेलफैंड (2012) के खिलाफ मैचों में आसान जीत हासिल करके आनंद ने 'ऑल टाइम ग्रेट्स' में नाम और प्रसिद्धि हासिल की।
हालांकि, 2013 में आनंद को विश्व चैम्पियनशिप में युवा मैग्नस कार्लसन के खिलाफ हार मिली। उन्होंने 2014 में अपना खिताब दोबारा पाने की कोशिश, लेकिन कार्लसन की ऊर्जा की बराबरी नहीं कर सके। 2014 में आनंद ने क्लासिकल विश्व चैम्पियनशिप में खेलना बंद कर दिया था। उन्होंने 2017 में फिर से विश्व चैपियनशिप का खिताब जीता। यह खिताब उन्होंने रैपिड प्रारूप में जीता था।
आनंद अब विश्व शतरंज महासंघ फिडे के उपाध्यक्ष हैं। 2022 में उन्होंने 44वें शतरंज ओलंपियाड में भारतीय टीमों के मेंटर की भूमिका सफलतापूर्वक निभाई थी। आनंद ने अपनी वेस्टब्रिज आनंद शतरंज अकादमी से युवा भारतीयों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया है। हम उनके नए प्रयास में बड़ी सफलता की कामना करते हैं।

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