प्लम्बर से तीरंदाज बने राकेश ने लगाई स्वर्णिम तिकड़ी

जम्मू के इस जांबाज का अब दुनिया जीतने का लक्ष्य
खेलपथ संवाद
जम्मू।
देश के बेहतरीन पैरा तीरंदाजों में से एक राकेश कुमार के संघर्ष और सफलता की कहानी बहुत दिलचस्प है। जब लोग खेलना छोड़ते हैं उस उम्र में राकेश न केवल खेलना शुरू करते हैं बल्कि लगातार तीन स्वर्ण पदक जीतकर अपना अलग मुकाम बना लेते हैं। अब राकेठ पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना चाहते हैं। 
38 साल के राकेश 33 साल की उम्र में पैरा तीरंदाजी में आए और एक साल बाद पहला स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद से वह लगातार कमाल कर रहे हैं। उनका मानना है कि पैरालम्पिक स्वर्ण पदक जीतने के बाद ही उनका सपना पूरा होगा। राकेश ने बताया कि वह किसान के बेटे हैं, शुरुआत में वह प्लम्बर हुआ करते थे और सामान्य रूप से अपना जीवन-यापन करते थे। इसके बाद हादसे का शिकार हो गए और उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया। शुरुआत में उन्हें बहुत परेशानी होती थी, लेकिन बाद में उन्होंने यह मान लिया कि उनका जीवन ह्वीलचेयर पर ही कटना है। इसके बाद उनकी मुलाकात मां वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड से जुड़े तीरंदाजी कोच से हुई। यहां से उनका जीवन बदल गया। 
राकेश ने 33 साल की उम्र में तीरंदाजी शुरू की और एक साल बाद पहला स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। राकेश की उम्र काफी ज्यादा है। वह अन्य खिलाड़ियों से काफी बड़े हैं, लेकिन इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। वह रोज सुबह पांच बजे उठ जाते हैं, चाहे कितनी देर से सोए हों। सामान्य दिनों में वह 9-10 बजे तक सो जाते हैं। सुबह उठकर वह 1-2 किलोमीटर ह्वीलचेयर चलाते हैं और कुछ योगासन करते हैं। वह अपनी डाइट का भी ध्यान रखते हैं और मीठा नहीं खाते हैं। इसी वजह से उनका पसंदीदा खाना वेज बिरयानी है। 
राकेश देश के लिए पैरा तीरंदाजी में लगातार तीन स्वर्ण जीत चुके हैं और उनका सपना देश के लिए पैरालम्पिक स्वर्ण जीतना है। शुरुआत में उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं था और पहले राष्ट्रीय खेलों में वह 17वें स्थान पर थे। इसके बाद उन्हें पता चला कि कितनी मेहनत करनी है और उन्होंने जीजान लगाकर मेहनत की। इसी वजह से वह अब कमाल कर रहे हैं और उनसे देश को पैरालम्पिक स्वर्ण की आस है। 
राकेश का कहना है कि जब आप स्वर्ण पदक जीतते हैं और तिरंगा लेकर आप वहां पहुंचते हैं। ऐसे में राष्ट्रगान बजता है तो यह सबसे ज्यादा गर्व की बात होती है। श्री माता देवी वैष्णो श्राइन बोर्ड पहला ऐसा ट्रस्ट है, जिसने खेलों को इतना बढ़ावा दिया है। इस ट्रस्ट के खिलाड़ी 200 से ज्यादा पदक जीत चुके हैं। हमारे कोच न तो छुट्टी लेते हैं और न ही लेने देते हैं। साल में 365 दिन अभ्यास करने का नतीजा है कि हम लगातार अच्छा कर रहे हैं। विश्व तीरंदाजी रैंकिंग में तीसरे स्थान पर मौजूद राकेश ने कहा कि उनका सपना अभी शुरू हुआ है, जब वह देश के लिए पैरालम्पिक स्वर्ण जीत लेंगे, तभी उनका सपना पूरा होगा।  

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