ओलम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट अभिनव बिंद्रा ने गिनाईं खेल प्रशासन की खामियां
खेल प्रशासन में पेशेवर कैडर और खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की कमी
170 पन्नों की इस रिपोर्ट में साई और राज्य खेल विभागों का भी जिक्र
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। खेल मंत्रालय द्वारा गठित अभिनव बिंद्रा की अगुआई वाले कार्यबल (टास्क फोर्स) ने भारतीय खेल प्रशासन की गंभीर और प्रणालीगत कमियों की ओर इशारा किया है। 170 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में खेल प्रशासन के लिए न तो पेशेवर कैडर मौजूद है और न ही खिलाड़ियों को प्रशासनिक भूमिकाओं के लिए पर्याप्त रूप से तैयार किया जा रहा है।
रिपोर्ट खेल मंत्री मनसुख मंडाविया को सौंपी गई, जिन्होंने स्पष्ट किया कि इसकी सभी सिफारिशों को लागू किया जाएगा। रिपोर्ट में सबसे अहम सिफारिश एक स्वायत्त वैधानिक संस्था नेशनल काउंसिल फॉर स्पोर्ट्स एजुकेशन एंड कैपेसिटी बिल्डिंग (एनसीएसईसीबी) की स्थापना की है, जो खेल प्रशासन से जुड़ी ट्रेनिंग को विनियमित, मान्यता और प्रमाणित करेगी। यह परिषद खेल मंत्रालय के अधीन काम करेगी और इसमें विशेषज्ञों के साथ-साथ आईएएस अधिकारियों को भी प्रशिक्षित करने की व्यवस्था होगी।
अगस्त में गठित नौ सदस्यीय इस कार्यबल में आदिल सुमरीवाला और टारगेट ओलम्पिक पोडियन स्कीम (टॉप्स) के पूर्व सीईओ कमांडर राजेश राजगोपालन जैसे नाम शामिल थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में खेल प्रशासकों के लिए मौजूदा प्रशिक्षण अवसर पुराने और सीमित हैं, जिनमें निरंतर पेशेवर विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। कार्यबल ने यह भी रेखांकित किया कि अधिकांश खिलाड़ी खेल से संन्यास लेने के बाद प्रशासनिक भूमिकाएं निभाने के लिए अपर्याप्त रूप से तैयार होते हैं।
बिंद्रा ने रिपोर्ट की प्रस्तावना में लिखा, यह रिपोर्ट सिर्फ समस्याओं की पहचान नहीं करती, बल्कि खेल प्रशासन में बदलाव के लिए एक स्पष्ट रोडमैप भी प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) और राज्य खेल विभागों की कड़ी समीक्षा की गई। इन्हें भारतीय खेल प्रशासन की रीढ़ बताते हुए कहा गया कि दोनों संस्थान गहरी प्रणालीगत और क्षमता संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिससे पेशेवराना रवैया, कार्यकुशलता और सुशासन प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि न तो साई और न ही राज्य विभागों में समर्पित खेल प्रशासन सेवा है। अधिकांश पद सामान्य प्रशासनिक अधिकारियों या अनुबंधित कर्मियों से भरे जाते हैं, जिनके पास क्षेत्र-विशेष की विशेषज्ञता नहीं होती। राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) में शासन से जुड़ी कमियों पर भी रिपोर्ट ने चिंता जताई। इसमें कहा गया कि कई महासंघों में अध्यक्ष के पास अत्यधिक शक्ति केंद्रित हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही कमजोर होती है।
अधिकांश महासंघों में पूर्णकालिक सीईओ या विषय-विशेष निदेशकों की नियुक्ति नहीं की जाती, जिससे रोजमर्रा के कामकाज में अक्षमता और हितों के टकराव की स्थिति बनती है। खिलाड़ियों की प्रशासनिक भूमिका को लेकर रिपोर्ट में कहा गया कि भले ही प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल शासन अधिनियम में महासंघों की कार्यकारिणी में खिलाड़ियों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया गया है, लेकिन उन्हें इसके लिए प्रशिक्षित करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है।
रिपोर्ट ने सेबेस्टियन कोए, थामस बाक और किर्स्टी कोवेंट्री जैसे अंतरराष्ट्रीय उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि सही प्रशिक्षण के बिना खिलाड़ी प्रभावी प्रशासक नहीं बन सकते। टास्क फोर्स ने सिविल सेवा अधिकारियों के लिए भी खेल शासन से जुड़ी ट्रेनिंग अनिवार्य करने की सिफारिश की है, ताकि नीतियों के क्रियान्वयन में दक्षता लाई जा सके। खेल मंत्री मंडाविया ने भरोसा दिलाया कि इस रिपोर्ट को भारतीय खेल प्रशासन में बड़े सुधार का आधार बनाया जाएगा।
पटियाला स्थित राष्ट्रीय खेल संस्थान को खेल प्रशासकों की ट्रेनिंग के लिए अकादमी बनाने के प्रस्ताव को कार्यबल ने खारिज कर दिया है और इसे प्रतिबंधात्मक और अस्थिर बताया। कार्यबल ने सुझाव दिया कि एनआईएस को अकादमी बनाने की बजाय प्रशासनिक सामर्थ्य निर्माण के माड्यूल चलाने वाले प्रमुख संस्थानों में से एक के तौर पर पैनल में शामिल किया जाना चाहिए।
