शिक्षा के मंदिरों में अराजक यौन लिप्साएं

भारतीय जीवन दर्शन में गुरु का इतना बड़ा स्थान रहा है कि विद्यार्थी तब असमंजस की स्थिति में होता है जब गुरु व गोविंद दोनों सामने खड़े होते हैं। वह पशोपेश में होता है कि गुरु व भगवान में से किसे पहले नमन करूं। यानी गुरु का स्थान ईश्वर तुल्य माना गया है। ऐसे में यदि कोई शिक्षक यौन कुंठा से ग्रसित होकर संतान तुल्य छात्राओं को यौन लिप्सा का शिकार बनाता है, तो यह अपराध के अलावा समाज में एक गहरे विश्वास का खंडित होना भी है। 
कितना विश्वास करते हैं लोग गुरुओं पर। पूजते हैं उन्हें। जींद के सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में प्रिंसिपल के लज्जित यौन व्यवहार की खबरों ने हर किसी अभिभावक को विचलित किया। इस मामले के सार्वजनिक विमर्श में आने के बाद कुछ छात्राओं की संदिग्ध स्थितियों में मौत ने इस संकट के विस्तार को दर्शाया है। हालांकि, छात्राओं से अश्लील व्यवहार करने वाले प्रिंसिपल की गिरफ्तारी हो चुकी है और उसे निलम्बित किया जा चुका है। लेकिन इस प्रकरण से गुरु-शिष्या के पवित्र रिश्ते को जो आंच आई है, उसकी भरपाई शायद ही हो पाए। 
यूं तो किसी भी पेशे में ऐसी काली भेड़ें एक-दो ही होती हैं, लेकिन क्या किया जाए एक मछली पूरे तालाब को गंदा भी तो करती है। बहरहाल, इस मामले में नित नये खुलासे हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि इस कुकृत्य में कुछ अन्य शिक्षक व कर्मचारी भी शामिल रहे हैं, उनके खिलाफ भी कार्रवाई की मांग स्वयं सेवी संगठन कर रहे हैं। उनका कहना है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य मामले में गहन जांच की मांग करते हैं। दरअसल, इस मामले में विवाद तेज होने के बाद जींद के उपायुक्त द्वारा गठित यौन उत्पीड़न निवारण समिति ने प्रिंसिपल को कई मामलों में दोषी पाया। फिर चार नवंबर को पॉक्सो अधिनियम के तहत मामला दर्ज करके उसे गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पहले जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा जांच के बाद प्रिंसिपल को निलंबित कर दिया गया था।
निस्संदेह, इस मामले में कानून अपना काम कर रहा है, लेकिन इस प्रकरण में होने वाले नये खुलासे परेशान करने वाली तस्वीर पेश करते हैं। पीड़ित छात्राओं ने पहले राष्ट्रीय महिला आयोग को एक पत्र लिखा था। जिसके बाद इस मामले में विभागीय सक्रियता सामने आई। लेकिन सवाल उठता है कि क्यों स्थानीय स्तर पर उनकी शिकायतों को अनसुना किया जाता रहा है। बताया जाता है कि यौन दुर्व्यवहार का यह सिलसिला लंबे समय से चल रहा था। 
कुछ छात्राओं से इस असामान्य व्यवहार की शिकायत अभिभावकों से करने के बाद उनका स्कूल बंद कर दिया गया था। तो बेटियां कैसे पढ़ेंगी, कैसे आगे बढ़ेंगी? वहीं एनजीओ से जुड़े कुछ कार्यकर्ता आरोप लगा रहे हैं कि इस प्रकरण में परिस्थितिजन्य साक्ष्य खासे आपत्तिजनक हैं। आरोप है कि स्टाफ के कुछ अन्य सदस्य इस कुत्सित खेल में शामिल रहे हैं। वे इस मामले में कानूनी जांच के दायरे में नहीं लाए गए हैं। यह भी तथ्य सामने आया था कि प्रिंसिपल के कमरे की खिड़कियों में काले रंग की फिल्म लगायी गई थी। वहीं सीसीटीवी कैमरे के दायरे में उसकी कुर्सी को कवर नहीं किया गया था। 
इसके अलावा उसके अपने कमरे में सीसीटीवी एक्सेस कंट्रोल सिस्टम स्थापित किया गया था। सवाल उठाये जा रहे हैं कि शिक्षा विभाग की लापरवाही से निर्दोष लड़कियों को यौन दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ा है। आरोप है कि अभियुक्त की पिछली तैनाती के दौरान भी दुष्कर्म के आरोप लगे थे। उसके बावजूद विभाग ने उसकी कारगुजारियों पर नजर नहीं रखी। बल्कि निरंकुश व्यवहार का मौका दे दिया। सवाल स्कूल के अन्य शिक्षकों व कर्मचारियों पर भी उठा है कि इस घटनाक्रम के बावजूद वे मूक दर्शक बने रहे? विभाग ने तब भी सजगता नहीं दिखायी जब प्रिंसिपल कुछ अन्य शिक्षकों के साथ पचास छात्राओं को दूसरे शहर घुमाने ले गया था। बताते हैं कि इस बाबत छात्राओं पर कुछ न बोलने का दबाव भी डाला गया। सामाजिक संगठन इस मामले में गहन जांच की मांग कर रहे हैं।

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