राजनीतिक दखल से खेलों में पंजाब ने खोया रुतबा

पंजाब सरकार व पंजाब ओलम्पिक एसोसिएशन में टकराव
खेलपथ संवाद
चण्डीगढ़।
एक समय था कि पंजाब के खिलाड़ियों का पूरे देश में खास रुतबा होता था। हर जगह पंजाब के खिलाड़ी देश में सिरमौर हुआ करते थे। लम्बे-बलिष्ठ और ऊर्जा से लबरेज खिलाड़ी हॉकी से लेकर एथलेटिक्स तक छाये रहते थे। उड़न सिख मिल्खा सिंह खेलों की दुनिया में मिथक बन गये। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने पंजाब के खेलों के खिलते सूरज का ग्रास कर लिया? 
निस्संदेह, पंजाब के काले दौर ने भी समाज में भय, अवसाद व कुंठा का ऐसा वातावरण बनाया कि उसमें खेल जैसे स्वस्थ अहसासों पर प्रतिकूल असर पड़ा। लेकिन सत्ताधीशों की उदासीनता और राजनीतिक हस्तक्षेप भी एक बड़ा कारण रहा है। जिसके चलते पंजाब खेल जगत में अपने वर्चस्व के सुख से वंचित हुआ। एक तो खेल संघों में राजनेताओं का कब्जा और दूसरा सरकारों द्वारा बदलते वक्त के साथ खेल जरूरतों की अनदेखी करना। 
ताजा उदाहरण पंजाब सरकार व पंजाब ओलम्पिक एसोसिएशन यानी पीओए के बीच टकराव का है। जिसके चलते 37वें राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने के लिये खिलाड़ियों को अपनी जेब से खर्चा करना पड़ रहा है। यहां तक कि खिलाड़ियों ने खेल किट खरीदने के लिये भी अपनी जेबें ढीली की हैं। हालात ये हैं कि पीओए व सरकार के बीच जारी टकराव के चलते 350 से अधिक खिलाड़ियों को 26 अक्टूबर को होने वाले राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने में परेशानी हो रही है। 
दरअसल, इस विवाद के मूल में सरकार की यह दलील है कि दो सितम्बर को हुआ पंजाब ओलम्पिक संघ का चुनाव वैध नहीं है। दलील है कि इस चुनाव में सरकारी पर्यवेक्षक को आमंत्रित नहीं किया गया। वहीं पीओए का कहना है कि यह मतदान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश अमरनाथ जिंदल की देखरेख में सम्पन्न हुआ। यह भी कि सरकारी प्रतिनिधि की अनिवार्य उपस्थिति का कोई नियम नहीं है। निश्चित तौर पर ऐसे विवाद से खिलाड़ियों के मनोबल पर असर पड़ेगा। पीओए भी कह रहा है कि खराब प्रदर्शन रहा तो उसकी जिम्मेदारी नहीं होगी।
दरअसल, विगत में यह होता आया है कि राज्य सरकार पंजाब राज्य खेल परिषद के माध्यम से खिलाड़ियों के लिये एकमुश्त राशि पंजाब ओलम्पिक संघ को देती रही है। इस बार राज्य सरकार की तरफ से फंडिंग के अभाव में पीओए ने अपने राज्य खेल संघों से खिलाड़ियों के लिये स्लीपर क्लास के रेलवे टिकट आरक्षित करने को कहा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि खेल संघों के पास हमेशा धन की किल्लत रहती है। जिसका अर्थ यह भी है कि तमाम खिलाड़ियों को अपने टिकट का खुद ही जुगाड़ करना पड़ेगा। वक्त की जरूरत है कि इस अनावश्यक विवाद को टाला जाए, ताकि खिलाड़ी उत्साह व उमंग से राष्ट्रीय खेलों में बेहतर प्रदर्शन कर सकें। 
यह निश्चित ही है कि इस विवाद के चलते खिलाड़ियों के अभ्यास शिविर भी प्रभावित हुए होंगे। इससे पहले उम्मीद थी कि इस बार पंजाब के खिलाड़ी वर्ष 2022 में गुजरात में सम्पन्न राष्ट्रीय खेलों में हासिल की गई राज्य की दसवीं रैंकिंग में सुधार करेंगे। लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते उत्पन्न विवाद को देखते हुए निराशा ही होती है। सवाल है कि राज्य की प्रतिष्ठा के प्रतीक खेलों के प्रति पंजाब के राजनेता व नौकरशाह कब गंभीर होंगे? 
काश, पंजाब के हुक्मरान हरियाणा की खेलों में अप्रत्याशित कामयाबी से सबक लेते। आज हरियाणा के खिलाड़ी हॉकी से लेकर क्रिकेट तथा पहलवानी से लेकर भाला फेंक तक विश्व में कीर्तिमान बना रहे हैं। एक तरफ जहां ‘दूध-दही के खाने’ वाले प्रदेश ने शाकाहार की ताकत दुनिया को बतायी है, वहीं राज्य के राजनेताओं ने भी खेलों के प्रति सकारात्मक और उत्साहजनक दृष्टिकोण अपनाया है। जिस प्रदेश में खापों के व्यवहार व लिंगानुपात को लेकर राज्य की छवि नकारात्मक रूप से प्रस्तुत की जाती थी उस प्रदेश की बेटियां पहलवानी-मुक्केबाजी, एथलेटिक्स व हॉकी तक में सफलता की नई इबारत लिख रही हैं। इस मुहिम को भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लेकर मनोहर लाल तक की सरकार ने गति दी। राज्य सरकार की आकर्षक इनाम राशि और पदकों के अनुरूप सरकारी नौकरी देने की नीति रंग लायी है। आज पूरे देश में इस छोटे से प्रदेश की अप्रत्याशित कामयाबी की मिसाल दी जाती है।

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