डीएसपी बनना चाहती हैं पारुल चौधरी

मेरठ की बेटी ने एशियाड में जीता सोना-चांदी
योगी आदित्यनाथ की बदली स्पोर्ट्स पॉलिसी का असर
खेलपथ संवाद
मेरठ।
चीन में हुए एशियाई खेलों में उत्तर प्रदेश के खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। इन खेलों में यूपी की बेटियों का दम भी दिखा है। यूपी के खिलाड़ियों ने कई मेडल अपने नाम किए हैं। इस क्रम में एक नाम इस समय खासी चर्चा में है, वह हैं पारुल चौधरी। एशियाड में सोना-चांदी जीतने वाली मेरठ के इकलौता गांव की यह बेटी अब डीएसपी बनना चाहती है। 
पारुल ने 5000 मीटर दौड़ में गोल्ड तो 3000 मीटर स्टिपलचेज में सिल्वर मेडल अपने नाम किया है। इसके बाद मीडिया से बात करते हुए उन्होंने यूपी में खिलाड़ियों को लेकर बनाई गई नीति की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमारी यूपी सरकार ही ऐसी है कि गोल्ड मेडल लेकर आएंगे तो डीएसपी बना देंगे। ट्रैक पर उतरते समय यह मेरे दिमाग में था। मैं डीएसपी बनना चाहती हूं। खेलों को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से इस प्रकार की रणनीति बनाई गई है।
हांगझाऊ में हुए एशियन गेम्स के ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में मेरठ की एथलीट पारुल चौधरी ने शानदार प्रदर्शन किया है। उन्होंने स्वर्ण पदक के साथ पोडियम फिनिश किया। पारुल ने पांच हजार मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इससे पहले पारुल ने 3000 मीटर स्टिपलचेज में रजत पदक जीता था। पारुल ने आखिरी कुछ समय में अपनी स्पीड बढ़ाकर विरोधियों को चौंका दिया। वे पहले स्थान पर रहीं। 
किसान कृष्णपाल सिंह की बेटी पारुल की इस उपलब्धि पर मेरठ गर्व कर रहा है। वहीं, किसान की इस बेटी की इच्छा भी सामने आई है। ‘दौड़ के वक़्त मेरे दिलोदिमाग में डीएसपी की कुर्सी चल रही थी’, चीन के हांगझोऊ में चल रहे एशियाई खेलों में 5000 मीटर दौड़ में गोल्ड मेडल जीतने वाली पारुल चौधरी 28 साल की हैं। उन्होंने 24 घंटे में देश के लिए दो पदक जीते, जिसमें गोल्ड और सिल्वर मेडल शामिल है।
पारुल ने एशियाई खेलों में महिलाओं की 5000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया। वह पेरिस ओलम्पिक के लिए भी क्वालीफाई कर चुकी हैं। महिलाओं की 3000 मीटर स्टिपलचेज़ में सिल्वर मेडल जीतने के बाद मैदान पर लौटीं। पारुल 5 हजार मीटर दौड़ में अंतिम लैप में शीर्ष दो में शामिल थीं और फिर अंतिम लम्हों में जापान की रिरिका हिरोनाका को पछाड़कर 15 मिनट 14.75 सेकेंड के समय के साथ स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहीं।
पारुल चौधरी ने बताया कि, “दौड़ के वक़्त मेरे दिमाग में यूपी सरकार की एक नीति घूम रही थी जिसमें कहा गया है कि यदि आप एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतते हैं, तो आपको यूपी पुलिस में डीएसपी रैंक दिया जाएगा।” उन्होंने आगे बताया, “मुझे जब सिल्वर मेडल मिला तो मैं बहुत खुश थी। खुशी के मारे मुझे पूरी रात नींद नहीं आई सुबह पांच बजे मुझे नींद आई जिसकी वजह से मेरी नींद पूरी नहीं हुई। मैं डरी हुई थी मुझे इस दौड़ में उम्मीद नहीं थी कि मुझे गोल्ड मिल जाएगा लेकिन मेरा शरीर अच्छा चला और भगवान ने मेरा साथ दिया साथ ही मेरे भारतवासियों ने मेरे लिए दुआ की जिसकी वजह से मुझे गोल्ड मिला है।”
पारुल ने बताया कि, स्टिपलचेज में मैं पहले से ही ओलम्पिक क्वालीफ़ायर हूं मैं अब ओलम्पिक के लिए तैयारी करूंगी। वह दौड़ तो देश के लिए रही थीं लेकिन उसके दिलो दिमाग में यूपी पुलिस की डीएसपी की वर्दी घूम रही थी। उसे अपने आपको न केवल एशियाड में देश के लिए खुद को कर दिखाना था बल्कि उसे अपने गांव वालों को भी दिखाना था कि बेटी हूं लेकिन किसी से कम नहीं हूं। एशियाड 2023 में भारत पहली बार सौ से अधिक मेडल लेकर आया है। कम सुविधाओं में पल बढ़ रहे युवाओं का कुछ कर गुजरने का जुनून हावी है। उनकी एक नजर अपने खेल और परफॉरमेंस पर होती है तो दूसरी नजर अपने उस सपने पर होती है जो उन्होंने बचपन में देखा था। पारुल ने भी एशियाड में गोल्ड जीतकर यूपी पुलिस की डीएसपी की कुर्सी पर कब्जा जमाने की सोच रखी है।
‘ये शौक देश को गोल्ड देगा उम्मीद नहीं थी’
पारुल के मेरठ के इकलौता गांव में जश्न का माहौल है और उनके पिता को ये यकीन नहीं हो रहा कि उनकी बेटी का शौक एक दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करेगा। पारुल के पदक जीतने के बाद गांव में उनके परिजनों को बधाई देने वालों की कतार लगी हुई है। पारुल के पिता कृष्णपाल ने कहा कि उनकी बेटी का सपना ओलम्पिक में देश के लिए खेल कर जीतना है। उन्होंने कहा,‘‘मैंने उससे कहा था बिटिया अब शादी कर लो ताकि हम अपना फर्ज पूरा करें। लेकिन बिटिया ने कहा कि पापा जब तक मैं ओलम्पिक में खेलकर भारत का नाम नहीं रोशन कर दूंगी तब तक मैं शादी नहीं करूंगी।”
कृष्णपाल ने कहा,‘‘मेरी बेटी कभी शौक से खेतों में दौड़ा करती थी। लोगों के ताने भी सहने पड़ते थे। मुझे नहीं पता था कि एक दिन उसका यह शौक देश का गौरव बन जाएगा।’’ पारुल ने बचपन में काफी परेशानी से अपना वक्त गुजारा। वह लम्बा रास्ता तय करके अभ्यास के लिए कैलाश प्रकाश स्टेडियम पहुंचती थी। पारुल चौधरी की प्रेरणा उनकी बड़ी बहन प्रीति थीं। वह भी धाविका थीं और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में पदक जीतती थीं। पारुल बड़ी बहन के साथ ही स्टेडियम में अभ्यास के लिए आया करती थीं। पारुल ने अपनी कड़ी मेहनत कभी बंद नहीं की। पारुल फिलहाल मुंबई में टीटीआई के पद पर तैनात हैं।
मेरा और मेरी बेटी का सपना अब ओलम्पिक का है
वहीं पारुल की मां ने कहा कि उनकी बेटी ने देश को गौरवान्वित किया है और अब वह ओलम्पिक के अपने सपने को पूरा करेगी। उन्होंने आगे बताया कि, “यहां बहुत खुशी का माहौल है। मेरे साथ-साथ पूरा गांव बहुत खुश है। मेरी बेटी ने भारत को नाम रोशन किया है। अब मेरा और मेरी बेटी का सपना ओलम्पिक का है।” पारुल के चार भाई-बहन हैं और वह तीसरे नम्बर की हैं। पारुल के पिता कृष्णपाल सिंह किसान हैं और माता राजेश देवी गृहणी हैं। पारुल की बड़ी बहन भी अब खेल कोटे से सरकारी नौकरी पर हैं और पारुल का एक भाई उत्तर प्रदेश पुलिस में है। पारुल की गोल्ड मेडल जीतने की खबर जैसे ही जिले के कैलाश प्रकाश स्टेडियम पहुंची तो वहां अभ्यास कर रहे खिलाड़ियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। पारुल के साथ अभ्यास करने वाले साथी खिलाड़ियों ने स्टेडियम में मिठाई बांटकर अपनी खुशी जाहिर की।
लड़कों के साथ करती थी अभ्यास
पारुल के कोच रहे गौरव ने बताया कि शुरू में वह लड़कों के साथ अभ्यास करती थी। जिसका लाभ पारुल चौधरी को अब मिल रहा है। पारुल ने दो महीने पहले ही थाइलैंड के बैंकाक में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। 2018 एशियन गेम्स में भी पारुल मेडल जीत चुकी हैं। पारुल दो बार वर्ल्ड चैम्पियनशिप में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वहीं गांव के प्रधान जोनू ने कहा,‘‘इससे बढ़ कर हमारे गांव के लिए खुशी नहीं हो सकती कि आज गांव की बेटी ने गांव का ही नहीं पूरे देश का नाम पूरी दुनिया में रोशन किया है।” इस जीत के बाद प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पारुल चौधरी को इस शानदार प्रदर्शन के लिए बधाई दी। पारुल ने इसी वर्ष केरल में आयोजित स्टिपलचेज में गोल्ड मेडल जीता था।
यह यूपी के योगी सरकार की खेल नीति का परिणाम दिख रहा है। यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 10 मई, 2022 को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में अहम फैसला लिया था। इस फैसले को प्रदेश में खेलों का माहौल बढ़ाने की दिशा में अहम माना गया था। अब इसके परिणाम सामने आने लगे हैं। इस बैठक में निर्णय लिया गया था कि राज्य के 9 विभागों में 24 पदों पर पदक विजेता खिलाड़ियों को नियुक्ति दी जाएगी। 
यूपी के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने तब कहा था कि यूपी के मूल निवासी ऐसे खिलाड़ी जो अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में पदक जीते हैं, उन्हें प्रदेश के 9 विभागों में 24 पदों पर राजपत्रित पदों पर तैनात किया जाएगा। ओलम्पिक, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों और विश्व कप में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों को राजपत्रित अधिकारी पद पर तैनाती की बात ने यूपी के खिलाड़ियों को उम्मीदों को चार चांद लगाए हैं।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें जॉब में रखने पर अपना फैसला देने का निर्णय लिया गया। सरकार का कहना है कि इस प्रकार के निर्णय से राज्य में खेल संस्कृति विकसित करने में मदद मिलेगी। सरकार ने ग्रामीण विकास, माध्यमिक शिक्षा, बुनियादी शिक्षा, गृह विभाग, पंचायती राज विभाग, युवा कल्याण विभाग, परिवहन विभाग, वन विभाग और राजस्व विभाग में नौकरी देने का निर्णय लिया था।
नई खेल नीति के जरिए स्पोर्ट्स पर जोर
नई खेल नीति के जरिए प्रदेश में स्पोर्ट्स का माहौल बनाने पर जोर दिया गया है। यूपी की न्यू स्पोर्ट्स पॉलिसी 2023 के तहत प्रदेश में राज्य खेल प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। यह स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की तर्ज पर काम करेगा। वहां पर विभिन्न खेलों की स्किल को अपग्रेड किया जाएगा। राज्य में खेल विकास कोष बनाने का भी प्रावधान है। इससे कमजोर खिलाड़ियों, एसोसिएशन या अकादमी की मदद की व्यवस्था होगी। प्रदेश में 5 हाई परफॉर्मेंस सेंटर बनाए जाने का भी फैसला हुआ है। इसमें बेहतर प्रदर्शन वाले खिलाड़ियों के फिजिकल फिटनेस और अन्य प्रशिक्षण सुविधाओं को विकसित करने की सुविधा होगी। इसके अलावा घायल होने वाले खिलाड़ियों के इलाज की भी व्यवस्था सरकार की ओर से कराने का निर्णय लिया गया है।
सरकार 5 लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा का लाभ खिलाड़ियों को देने की योजना बनाई है। इससे चोट के कारण खिलाड़ियों को बीच में खेलों को छोड़ने जैसी स्थिति का सामना न करना पड़े। प्रतियोगिता के दौरान लगने वाली चोट का इलाज भी सरकार की ओर से कराने का निर्णय लिया है। इन तमाम योजनाओं के जरिए खेल और खिलाड़ियों के विकास पर जोर दिया गया है। इसका असर एशियाई खेलों में दिखने लगा है।

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