दद्दा की हॉकी जादूगरी का हर कोई था कायल

दोस्तों के कारण बदला था ध्यानचंद का नाम
'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद की 118वीं जयंती पर विशेष
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
हॉकी में ध्यानचंद को वही मुकाम हासिल है, जो क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन को और फुटबॉल में पेले को है। 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद में जन्में ध्यानचंद की जयंती पर हर साल देश में 29 अगस्त को खेल दिवस मनाया जाता है। इस खिलाड़ी पर लिखना भगवान भास्कर के सामने दीपक जलाने जैसा है।
भारत के महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद तीन ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उनकी मौजूदगी में हर बार टीम स्वर्ण पदक जीती थी। 1928, 1932 और 1936 ओलम्पिक में उन्होंने कमाल कर दिया था। उनकी गोल करने की क्षमता के आगे विपक्षी टीम बेबस नजर आती थी। वह सिर्फ दूसरे छोर से ध्यानचंद को देखते ही रह जाते थे। हॉकी में ध्यानचंद को वही मुकाम हासिल है, जो क्रिकेट में डॉन ब्रैडमैन को और फुटबॉल में पेले को है। आज मंगलवार (29 अगस्त 2023) को 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद की 118वीं जयंती है।
भारत के इस महान खिलाड़ी के बारे में जानिए कुछ अनोखी बातें
आज मंगलवार (29 अगस्त 2023) को 'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद का 118वीं जयंती है। 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में जन्मे ध्यानचंद की जयंती पर हर साल देश में 29 अगस्त को खेल दिवस मनाया जाता है। भारत के इस महान खिलाड़ी के बारे में हम आपको 10 अनोखी बातें बता रहे हैं:
ध्यानचंद 16 साल की उम्र में भारतीय सेना में भर्ती हुए। भर्ती होने के बाद उन्होंने हॉकी खेलना शुरू किया। ध्यानचंद काफी प्रैक्टिस किया करते थे। रात को उनके प्रैक्टिस सेशन को चांद निकलने से जोड़कर देखा जाता। इसलिए उनके साथी खिलाड़ियों ने उनके नाम के आगे 'चंद' लगा दिया। असल में ध्यानचंद का असली नाम ध्यान सिंह था।
1928 में एम्सटर्डम में हुए ओलम्पिक खेलों में वह भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी बने। उस टूर्नामेंट में ध्यानचंद ने 14 गोल किए। उस समय एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, 'यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था और ध्यान चंद हॉकी के जादूगर हैं।'
ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले, लेकिन एक मैच था जो उन्हें सबसे ज्यादा पसंद था। ध्यान चंद ने बताया कि 1933 में कलकत्ता कस्टम्स और झांसी हीरोज के बीच खेला गया बिगटन क्लब फाइनल उनका सबसे ज्यादा पसंदीदा मुकाबला था। ध्यानचंद हॉकी के इस कदर दीवाने थे कि वह पेड़ से हॉकी के आकार की लकड़ी काटकर उससे खेलना शुरू कर देते थे। रात भर वह हॉकी खेलते रहते थे। उनको हॉकी के आगे कुछ याद नहीं रहता था। हॉकी के सामने वह पढ़ाई को भी भूल जाते थे। 
1932 के ओलम्पिक फाइनल में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 24-1 से हराया था। उस मैच में ध्यानचंद ने आठ गोल किए थे। उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे। उस टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 ध्यानचंद और उनके भाई ने किए थे। मेजर ध्यानचंद जब खेला करते थे तो लोगों के जेहन में दूसरे किस्म का कश्मकश चलता था। अक्सर लोग उनकी हॉकी स्टिक के बारे में सोचते थे कि उनके स्टिक में कहीं चुम्बक तो नहीं लगा है, जो इतने रफ्तार में और दनादन गोल कर देते हैं।
हिटलर ने खुद ध्यानचंद को जर्मन सेना में शामिल कर एक बड़ा पद देने की पेशकश की थी, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहना पसंद किया।
अपनी आत्मकथा 'गोल' में उन्होंने लिखा था, आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूं। एक मुकाबले में ध्यानचंद गोल नहीं कर पा रहे थे तो उन्होंने मैच रेफरी से गोल पोस्ट के आकार के बारे में शिकायत की। हैरानी की बात है कि पोस्ट की चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के अनुपात में कम थी। ध्यान चंद के नाम पर देश में खेल रत्न अवॉर्ड दिया जाता है। पहले इसका नाम राजीव गांधी खेल रत्न अवॉर्ड था, लेकिन 2021 में इस पुरस्कार का नाम बदला गया और भारत के महान खिलाड़ी के नाम पर रखा गया।

 

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