कोरोना दौर में 400 गुना बढ़ी चेस बोर्ड की बिक्रीः संजय कपूर

शतरंज महासंघ के अध्यक्ष ने कहा- सफलता में चेस ओलम्पियाड का बड़ा हाथ
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
दुनिया को हिला देने वाले कोरोना के दौर में खेलों की गतिविधियां भी पूरी तरह ठप हो गई थीं, लेकिन शतरंज ही एक ऐसा खेल रहा जो कोरोना काल में भी बंद नहीं हुआ। भारतीय शतंरज महासंघ के अध्यक्ष संजय कपूूर का मानना है प्रगनाननंदा और भारतीय युवा शतरंज खिलाड़ियों की हालिया सफलता में कोरोना काल में खेली गई शतरंज और देश में हुए चेस ओलम्पियाड का बड़ा हाथ है। कानपुर निवासी संजय के मुताबिक कोरोना काल के दौरान देश में चेस बोर्ड की बिक्री में चार सौ गुना बढ़ोतरी हुई। यह हैरानीजनक था।
प्रगनाननंदा की सफलता पर संजय को कोई हैरानी नहीं है। यह कोरोना का ही दौर था जब प्रगनाननंदा ने ऑनलाइन शतरंज में मैग्नस कार्लसन को हराकर सभी का ध्यान अपनी ओर खीचा था। फाइनल में पहुंचने के बाद जब उन्होंने सोमवार को इस खिलाड़ी की हौसलाअफजाई के लिए फोन किया तो प्रगनाननंदा ने सबसे पहला यही सवाल पूछा कि सर, क्या आप फाइनल के लिए आ रहे हैं। संजय ने तुरंत कहा कि वह आ रहे हैं। संजय बताते हैं कि उन्होंने बाकू (अजरबैजान) का टिकट बुक करा लिया है, जहां वह उसको मानसिक हौसला देंगे। संजय कहते हैं कि प्रगनाननंदा की सफलता में उनकी मां नागलक्ष्मी, पिता रमेशबाबू और कोच आरबी रमेश का बड़ा योगदान है।
उम्मीद थी कार्लसन को हराएंगे गुकेश
संजय को प्रगनाननंदा के फाइनल में पहुंचने की खुशी है, लेकिन इस बात का भी दुख है कि दो भारतीय खिलाड़ी सेमीफाइनल में नहीं पहुंच पाए। डी गुकेश जिस तरह की फार्म में हैं। उन्हें उम्मीद थी कि वह अंतिम 8 में कार्लसन को हराएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। विदित भी दुर्भाग्यशाली ढंग से क्वार्टर फाइनल हारे। संजय कहते हैं कि विश्वनाथन आनंद लंबे समय से देश में शतरंज का चेहरा हैं। हम सब उन्हें खेलते देखकर बड़े हुए हैं, लेकिन अब आनंद के अलावा देश में शतरंज के कई चेहरे बनेंगे। उनमें प्रगनाननंदा, अर्जुन एरीगेसी, डी गुकेश भी शामिल हैं।
पहले शतरंज खिलाड़ियों को किट नहीं मिलती थी
संजय के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में देश के 75 जिलो में जब चेस ओलंपियाड की टार्च रिले निकाली गई, उसने भी शतरंज की लोकप्रियता को बढ़ाया। चेन्नई में चेस ओलंपियाड के आयोजन और देश की पुरुष और महिला टीम के पदक जीतने में भारतीय शतरंज खिलाडिय़ों को मानसिक मजबूती दी। वह कहते हैं कि एक समय ऐसा था जब शतरंज खिलाडिय़ों को बाहर खेलने पर किट नहीं मिलती थी, लेकिन अब उन्हें फाइव स्टार होटलों में खिलाया जा रहा है। उन्होंने अपने कार्यकाल में हर राज्य को सात-सात लाख रुपये की राशि मुहैया कराई है, जिसे वह अब बढ़ाकर 25 लाख करने जा रहे हैं।

 

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