भारत साजिशों के खेल में सिरमौर
खेल शुभचिंतकों की नकली मुस्कानों से खिलाड़ी आहत
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। ओलम्पिक हो या कोई अन्य खेल, हमारे यहां खेलों के भीतर का खेल चलता रहता है। असल में हमारा देश एक साजिश प्रधान देश है। यहां साजिशों के खेल और खेल के भीतर साजिशें होती रहती हैं। इन साजिशों से जूझना हमारी नियति भी है और शौक भी। हमारे देश में खेल शुभचिंतकों की कुटिल मुस्कानों से खिलाड़ी आहत हैं।
यहां तरह-तरह की साजिशें मुंहबाए शिकार की तलाश में घूमती रहती हैं और यदि मामला देश की प्रतिष्ठा से जुड़ा हो तो साजिशों की सक्रियता देखते ही बनती है। हालांकि, इन साजिशों का चेहरा बहुधा बेनकाब नहीं हो पाता है। वो रहस्य का कफन ओढ़कर ही सदा के लिए दफन हो जाती हैं और बरसों तक फिजां में संदेह के गुबार घूमते रहते हैं। वैसे हमारा खेलप्रेम ओलम्पिक और एशियाड के दिनों में ही जोर मारता है।
देशप्रेम के तड़के के साथ इन्हें खूब परोसा जाता है। एक साजिश प्रधान देश के नागरिक होने के नाते हम इससे अछूते कैसे रह सकते हैं भला। हमारे यहां खेल के भीतर भी तरह तरह के खेल हैं। चयनकर्ताओं की पसंद-नापसंद का खेल, क्षेत्रीयतावाद का खेल, राजनीति का खेल, शोषण का खेल और फिक्सिंग का खेल आदि। खिलाड़ी को पहले इन प्रारम्भिक खेलों से जूझना पड़ता है।
तत्पश्चात ही वो असली खेल के मैदान में उतरने की अर्हता प्राप्त कर पाता है। हम ठहरे इसके पुराने चैम्पियन। इतिहास और पुराण में ऐसी साजिशों के नायाब उदाहरण भरे पड़े हैं। इस फील्ड में हमारा अनुभव विशद है। फाइलें रहस्यमय तरीके से गायब हो जाती हैं, गवाह ढूंढ़े नहीं मिलते। मुजरिम सरेआम बच कर निकल जाते हैं। अस्थिरता फैलाने वाली ताकतों के हाथ तो क्या, हम उनकी उंगलियों के नाखून तक नहीं पता लगा पाते। इतनी अनिश्चितताओं और षड्यंत्रों के बीच भी हम मुस्कुरा रहे हैं, अच्छे दिनों का सपना देख रहे हैं। यह हमारे विकट जीवट का ही प्रमाण है ।
साजिशों का खेल शबाब पर है। व्यवस्था के टपकते क्रीड़ांगनों में खड़े खिलाड़ी भीग रहे हैं। सवा अरब के देश में हम सवा सौ होनहारों को भी ढंग से तैयार नहीं कर पा रहे हैं। यूं तो हर सफल व्यक्ति के पीछे साजिशें साये-सी टहलती रहती हैं। शुभचिंतकों की नकली मुस्कानें पीछा करती रहती हैं। वाह-वाह का शोर और तालियों की गड़गड़ाहट शयन कक्षों तक पीछा नहीं छोड़तीं।
बुढ़ापे में इसकी अनुगूंज पुराने गीत सी सालती है। फिर भी यह देखना शेष है कि असली खिलाड़ी पर्दे के पीछे कौन है और यदि हम उसे पहचान लेते हैं और उसे उसके पाले में ही चुनौती दे आते हैं तो हम उन साजिशकर्ताओं को बेनकाब करने में सफल हैं अन्यथा सारे प्रयास एक और कूटनीतिज्ञ साजिश का असफल परिणाम ही साबित होंगे।