गरीबी बनी एथलीट शीबा की राह का रोड़ा

काजू की फैक्ट्री और घरों में काम कर एथलीट बनी
अब एशियाई मास्टर्स में जाने का नहीं मिल रहा सहारा
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
गरीबी भी बुरी बला है। यह कोई शीबा से पूछ सकता है जोकि पैसे के अभाव में एशियाई मास्टर्स में जाने से वंचित हो रही है। शीबा न तो स्कूल स्तर पर कभी खेली और न ही बाद में उसे किसी ने एथलीट बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन दो वक्त की रोटी के लिए काजू की फैक्ट्री में समय पर पहुंचने के लिए लगाई गई उसकी रोजाना की दौड़ और तेज चलना उसे एथलीट बना गया।
फैक्ट्री के अलावा दूसरों के घरों में काम करने वाली 38 वर्षीय दो बच्चों की मां शीबा मास्टर्स एथलीट में देश ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही है। माय्यनाड़ की शीबा को नवम्बर में फिलीपींस में होने वाली एशियाई मास्टर्स एथलेटिक्स में खेलने जाना है, लेकिन उसके पास वहां जाने के लिए डेढ़ लाख रुपया नहीं है। अभी तक उसकी मदद को भी कोई आगे नहीं आया है।
विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स में पदक जीत चुकी शीबा बताती है कि रोजाना की भागदौड़ और जल्दी फैक्ट्री पहुंचने के लिए लगाई गई दौड़ ने उसे एथलीट बना दिया। वह फैक्ट्री से अनुमति लेकर शाम को जल्दी निकल जाती है और लोगों के घरों पर काम करती है। इसके बाद उसे जो भी समय मिलता है वह ट्रैक सूट पहनकर अभ्यास करती है। इस दौरान लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। 
वे कहते हैं कि इस उम्र में इसे और कोई काम नहीं मिला, लेकिन वह उन्हें नजरअंदाज कर देती है। शीबा कहती हैं कि उन्होंने कभी स्कूल स्तर पर एथलेटिक्स में भाग नहीं लिया, लेकिन जब से वह इस खेल में आई हैं तब से यह उनका जुनून बन गया है। शीबा द्वारा जीते गए खिड़की पर टंगे पदक और झोले में भरे ढेरों प्रमाण पत्रों को देखकर सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह आखिर किस फौलाद की बनी है।
राज्य सरकार की ओर से मास्टर्स एथलेटिक्स को मान्यता नहीं होने के चलते शीबा को सरकारी मदद नहीं मिल पाती है और उसे खुद ही अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में खेलने के लिए राशि जुटानी होती है। वह बताती है कि इससे पहले वह कई अंतरराष्ट्रीय मास्टर्स एथलीट मीट और देश में होने वाली मीटों में पदक जीत चुकी है। हर बार उसकी मदद को कोई न कोई दयालु इंसान सामने आया है।
बीते वर्ष बंगाल में हुई राष्ट्रीय मास्टर्स में शीबा ने 400 मीटर रिले और 3000 मीटर दौड़ में पदक जीते। यहीं से उसने एशियाई मास्टर्स के लिए क्वालीफाई किया। शीबा को विश्वास है कि इस बार भी उसकी मदद को कोई न कोई आगे आएगा और उसका एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय इवेंटों में पदक जीतने का सपना पूरा होगा।

 

रिलेटेड पोस्ट्स