शिवकन्या मुकाती ने ट्रैक पर भरी स्वर्णिम फर्राटा

खेतों और जंगलों में अभ्‍यास कर निखारी प्रतिभा
खेलपथ संवाद
भोपाल।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पदक दर पदक जीत रहे खिलाड़ियों को लेकर हमारी हुकूमतें कितनी बलैंया लें लेकिन इन प्रतिभाओं को खेलों की जमीन तो उनके माता-पिता के त्याग से ही नसीब हुई है। मध्य प्रदेश की 17 साल की होनहार शिवकन्या मुकाती 200 मीटर दौड़ 25.1 सेकेण्ड समय के साथ जीतने में सफल रही लेकिन इस बेटी ने यहां तक पहुंचने के लिए खेतों और जंगलों की खाक भी छानी है।
धार स्थित धर्मपुर गांव के जंगलों और खेतों में दौड़ का अभ्यास करने के बाद मध्य प्रदेश एथलेटिक्स अकादमी में अपने खेल की बारीकियां सीखने वाली धावक शिवकन्या मुकाती ने खेलो इंडिया गेम्स के 200 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतकर अपनी प्रतिभा तो दिखा दी लेकिन अपना दर्द नहीं छुपा सकी। पदक जीतने के बाद अपनी गीली आंखों और भर्राई आवाज में बताया कि उसने यहां तक आने के लिए बहुत मेहनत की है। पिता एक किसान हैं, इसलिए उनके पास बहुत धन नही है। जैसे तैसे वह परिवार के लिए भोजन और अन्य जरूरतों का सामान ही जुटा पाते हैं, ऐसे में बच्चों के भविष्य की चिंता उनके माथे की लकीरों में हमेशा नजर आती थी। 
जब मैंने यह स्थिति समझी तो कुछ करने की ललक जगी और तभी स्कूल में पढ़ाई के साथ खेलों में भाग लेने लगी। मेरे कोच ने मुझे कहा कि तुम दौड़ में अच्छा कर सकती हो तब मैंने अपने खेतों और पास के जंगल में दौड़ने का अभ्यास किया। इसके बाद जब मध्य प्रदेश अकादमी के लिए टैलेंट सर्च में प्रदर्शन करने का मौका मिला तो उसमें चयन हो गया। तभी तात्या टोपे नगर स्टेडियम में स्थित मध्य प्रदेश एथलेटिक्स अकादमी में प्रशिक्षक शिप्रा मसीह से प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हूं।
शिवकन्या ने बताया कि अभी कुछ रोज पहले उनके पिता का पेट की बीमारी के कारण आपरेशन हुआ है और खर्च अधिक होने की वजह से उनके पिता ने इलाज के दौरान आधी जमीन भी बेच दी। लेकिन कोई बात नहीं वह सलामत रहें, जमीन का क्या है वह तो मैं उनके लिए कुछ बनने के बाद खरीदकर दे दूंगी। शिवकन्या ने बताया कि पिता भले ही बीमार थे लेकिन उन्होंने उस दौरान भी मुझे हमेशा हौसला दिया है। हम तीन भाई-बहन हैं, भाई मुझसे बड़ा और बहन छोटी है।
अपनी इस सफलता का श्रेय शिवकन्या ने अपनी प्रशिक्षक शिप्रा मसीह को दिया और कहा है इस सफलता में मेरी मेहनत से ज्यादा मेरी कोच की मेहनत और अनुभव है, क्योंकि यह उनके अनुभव के कारण ही सम्भव हो सका है। मैं आज जो भी कर पाई हूं, कोच मैडम की वजह से ही कर पाई हूं। क्योंकि उन्होंने प्रैक्टिस के अलावा भी दूसरी परेशानियों में साथ दिया है। अब चाहे वह खेल हो या घर की समस्याएं, वह साथ खड़ी रहीं। इसके अलावा मैं मध्य प्रदेश अकादमी को भी धन्यवाद देना चाहती हूं।
शिवकन्या ने बताया कि वह किसी से प्रेरित होकर इस खेल में नहीं आई लेकिन अब उनकी प्रेरणा हिमा दास हैं और वह आगे जाकर उनकी तरह ही देश और दुनिया में अपने परिवार व कोच का नाम रोशन करना चाहती हूं। इसके लिए खूब जमकर अभ्यास करना है ताकि ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर सकूं। शिवकन्या बताती है कि जब दुनिया कोरोना महामारी से परेशान थी, तब वह अकादमी बंद होने के बाद अपने घर चली गई। कुछ दिनों के बाद वह परेशान रहने लगी इसके बाद कोच शिप्रा से बात की तब उन्होंने कहा कि कैसे भी हो अभ्यास जारी रखना है। तब मैंने अपने खेतों के पास जंगल में अभ्यास के लिए एक ट्रैक निर्माण किया और उसी पर अभ्यास किया।

 

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