हरियाणा के जांबाज दिव्यांग खिलाड़ी भी शानदार

फौलादी प्रदर्शन से तोड़ दीं मुसीबतों की बेड़ियां
खेलपथ संवाद
सोनीपत।
जवानी की दहलीज पर पहुंचते ही जब मन मयूर सपनों की उड़ान भर रहा होता है, तब अचानक किसी को ह्वीलचेयर या बैसाखी के सहारे पर आना पड़े तो उसकी स्थिति की कल्पना की जा सकती है। लेकिन कुछ लोगों के फौलादी हौसले मुसीबतों की ऐसी बेड़ियों को भी काट डालते हैं और बुलंदियों की ऐसी ऊंचाई को छूते हैं कि औरों के लिए भी नजीर बन जाते हैं। सोनीपत के सुमित आंतिल, अमित सरोहा और धर्मबीर नैन ऐसे ही लोगों में शुमार हैं।
हादसों से दिव्यांग की श्रेणी में आने के बाद एकबारगी तो वे हिल गए थे, मगर कुछ समय बाद दोबारा उठ खड़े हुए। इन्होंने कड़ा संघर्ष करते हुए खेल की दुनिया में ऐसा मुकाम बनाया कि आज दिव्यांग ही नहीं बल्कि अन्य के लिए भी रोल मॉडल हैं। हम बात कर रहे हैं टोक्यो पैरालम्पिक गोल्ड मेडलिस्ट सुमित आंतिल, विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप के मेडलिस्ट अमित सरोहा और एशियन चैम्पियनशिप के मेडलिस्ट धर्मबीर सिंह की।
सुमित आंतिलः सोनीपत के गांव खेवड़ा निवासी सुमित आंतिल 12वीं क्लास में भारतीय खेल प्राधिकरण सेंटर बहालगढ़ में पहलवानी के दांव-पेच सीख रहे थे। वर्ष 2015 में सड़क हादसे में सुमित को एक पैर गंवाना पड़ा। लेकिन वे खेल मैदान से दूर नहीं हुए। कृत्रिम पैर के सहारे मैदान में उतरे सुमित ने पहलवानी छोड़कर हाथ में भाला थाम लिया। उन्होंने भाला फेंक की एफ-64 श्रेणी में खास पहचान बना ली। वर्ष 2019 में इटली में सिल्वर, फ्रांस में सिल्वर और विश्व पैरा एथलेटिक्स में सिल्वर मेडल अपने नाम किये। वर्ष 2021 में ट्यूनीशिया में गोल्ड मेडल जीता। अगस्त 2021 में टोक्यो पैरालम्पिक में 68.55 मीटर भाला फेंककर देश के लिए गोल्ड मेडल जीता। वे अब देश को और मेडल दिलाने के लिए मेहनत कर रहे हैं।
अमित सरोहाः गांव बैयांपुर निवासी अमित सरोहा के 22 साल की उम्र में कार दुर्घटना में दोनों पैर खराब हो गए। वे ह्वीलचेयर पर आ गए। लेकिन कुछ वर्षों के कड़े अभ्यास के बाद वे क्लब थ्रो के नामचीन खिलाड़ियों में शुमार हो गए। उन्होंने पैरा एशियन गेम्स-2010 में सिल्वर मेडल और विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दो सिल्वर मेडल जीते। उन्हें 2013 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। 2014 के इंचियोन एशियाई पैरा गेम्स में गोल्ड मेडल और सिल्वर मेडल जीता। 2018 एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता। वे रियो पैरालम्पिक 2016 में 0.19 मीटर से ब्रांज से चूक गए थे। पिछले दिनों इंडियन ओपन नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में गोल्ड जीता। वे हरियाणा निर्वाचन आयोग के यूथ आइकॉन हैं।
धर्मबीर नैनः सोनीपत के गांव भदाना निवासी धर्मबीर नैन वर्ष 2012 में मास्टर डिग्री कर रहे थे। रीढ़ की हड्डी में चोट लगने से वे ह्वीलचेयर पर आ गए। साल 2013 में उनकी मुलाकात पैरा एथलीट अमित सरोहा से हुई। इसके बाद वे डिस्कस थ्रो व क्लब थ्रो में वर्ल्ड स्तरीय एथलीट के रूप में स्थापित हो गए। वर्ष 2018 एशियन गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। रियो पैरालम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व किया। 2017 और 2019 वर्ल्ड चैम्पियनशिप में खेले। टोक्यो पैरालम्पिक खेलों में शानदार प्रदर्शन के बावजूद मेडल से वंचित रह गए, लेकिन हार नहीं मानी। मार्च 2022 में डिस्कस थ्रो में 10.93 मीटर और क्लब थ्रो में 31.09 मीटर थ्रो कर 12 साल पहले अपने गुरु अमित सरोहा का रिकार्ड तोड़ा।

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