‘आयरन लेडी’ स्वाती सिंह बनीं भारोत्तोलन संघ की उपाध्यक्ष

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए जीते हैं कई मेडल
रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार से भी नवाजी जा चुकी हैं
खेलपथ संवाद
वाराणसी।
भारोत्तोलन में भारत के भाल पर कई मेडल टांगने वाली वाराणसी की ‘आयरन लेडी’ स्वाती सिंह अब संगठन की राजनीति में उतर चुकी हैं। गुरुवार को ताजनगरी आगरा में उनके सिर उपाध्यक्षी का ताज रखा गया। उपाध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने कहा कि अब वह प्रदेश के उदीयमान वेटलिफ्टरों की किस्मत बदलने का काम करेंगी। वह चाहेंगी कि उत्तर प्रदेश की बेटियां भारोत्तोलन में भारत का भाग्य बदलें।
अंतरराष्ट्रीय भारोत्तोलक स्वाती सिंह किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। 2014 ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स की पदक विजेता इस खिलाड़ी को चोट के चलते भले ही टोक्यो ओलम्पिक में न खेल पाने का मलाल रहा। स्वाती खेल के साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रिय रहती हैं तथा उनके प्रशंसकों की एक बड़ी जमात है जो उनके खेल के साथ-साथ उनकी खूबसूरती की भी दीवानी है। मूल रूप से वाराणसी की रहने वाली स्वाती पिछले दो दशक से उत्तर प्रदेश की सबसे भरोसेमंद भारोत्तोलकों में शुमार रही हैं। अपने दो दशक के कॅरियर में आठ बार वे यूपी की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुनी गईं।
साल 2000 में भारोत्तोलन की दुनिया में कदम रखने वाली स्वाती सिंह को राष्ट्रीय सीनियर टीम तक का सफर तय करने में नौ साल लग गए। हालांकि इन नौ सालों में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ढेरों पदक जीतकर अपने दमखम का लोहा मनवाया। 2009 में सीनियर टीम में होने की वजह से उन्हें 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में भारतीय टीम के प्रतिनिधित्व का मौका मिला, मगर ऐन वक्त पर चोट के चलते वे पदक से चूक गईं। तब उन्हें चौथे स्थान पर संतोष करना पड़ा था।
तीन साल के अंतराल के बाद साल 2013 में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय सीनियर टीम के लिए चुना गया। 2014 में स्काटलैंड में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने शानदार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए कांस्य पदक जीता। राष्ट्रकुल खेलों से पूर्व इंग्लैंड में लगे भारतीय टीम के एक माह के विशेष प्रशिक्षण शिविर में भी वे शामिल रहीं। स्वाती उन चुनिंदा खिलाड़ियों में शुमार हैं जिन्होंने वेटलिफ्टिंग के अलावा पॉवरलिफ्टिंग में भी अंतरराष्ट्रीय पदक हासिल किया है। 2004 में दक्षिण अफ्रीका के प्रिटोरिया में सम्पन्न जूनियर विश्व पॉवरलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में उन्होंने असाधारण प्रदर्शन करते हुए भारत के लिए रजत पदक जीता था। पदक जीतकर स्वदेश लौटने पर उनका जोरदार स्वागत हुआ था।
पदकों के साथ कई सम्मान भी झोली में
अपने दो दशक के कॅरियर में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 24 से अधिक पदक जीत चुकी ग्लैमर गर्ल स्वाती को उत्तर प्रदेश सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से नवाजा। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित किया था। उस मौके पर प्रदेश के तत्कालीन खेल मंत्री चेतन चौहान व खेल राज्यमंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी मौजूद रहे। इसके अलावा स्वाती को सात बार ‘आयरन लेडी आफ यूपी’ खिताब भी हासिल हो चुका है। ‘काशी रत्न’, ‘अवध रत्न’, ‘सेंचुरी स्पोर्ट्स अवार्ड’ जैसे प्रदेश के प्रतिष्ठित खेल सम्मान भी उनकी झोली में आ चुके हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर भारोत्तोलन में चमक बिखेरने वाली इस बनारसी बाला को खेल के दम पर ही रेलवे में जॉब आफर हुआ था। रेलवे से जुड़ने के बाद वे निर्विवाद रूप से अपने भार वर्ग में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार रहीं। स्वाती उन धुरंधर खिलाड़ियों में शुमार हैं जिन्हें भारत सरकार ने खेलो इंडिया स्कीम से जोड़ा। सरकार की इस मुहिम का हिस्सा बनकर उन्होंने देश भर के युवा खिलाड़ियों के साथ न केवल अपने अनुभव साझा किए बल्कि उन्हें खेलने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित भी किया।
बीते साल थाईलैंड और चीन में सम्पन्न दो ओलम्पिक क्वालीफायर की बाधा पार करने के बावजूद स्वाती टोक्यो में हुए ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल का हिस्सा नहीं बन सकीं। मांसपेशी में गंभीर चोट के चलते वे कोर ग्रुप से बाहर हो गईं। स्वाती सिंह का पुश्तैनी मकान बनारस के बलुआवीर मोहल्ले (आदमपुर) में है। उनके पिता कामेश्वर सिंह समाजसेवी हैं। चार बहनों में स्वाती सिंह दूसरे नम्बर पर हैं। उनका एक भाई भी है। 
 

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