टोक्यो ओलम्पिक के बाद महिला हॉकी में बड़ा बदलावः युवराज वाल्मीकि

भारतीय हॉकी टीम के चयनकर्ता और पूर्व खिलाड़ी को ओलम्पिक न खेलने का मलाल
खेलपथ संवाद
भोपाल।
हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में खेली गई हॉकी इंडिया की 12वीं सीनियर महिला हॉकी प्रतियोगिता में बतौर चयनकर्ता उपस्थित रहे युवराज वाल्मीकि ने कहा कि टोक्यो ओलम्पिक के बाद महिला हॉकी में बड़ा बदलाव आया है। हॉकी बेटियों ने अपने आप पर भरोसा करना सीख लिया है। यही वजह है कि घरेलू मुकाबलों में भी जोरदार स्टिक वर्क देखने को मिला। मैं इससे काफी प्रभावित हूं।
भारतीय हॉकी टीम के चयनकर्ता युवराज वाल्मीकि ने कहा कि डोमेस्टिक लेवल पर भारतीय हॉकी बदल चुकी है। ओलम्पिक के बाद से महिला हॉकी में एक तरह का जोश उत्पन्न हुआ है। खिलाड़ी फिट नजर आ रहे हैं। मैच में अपना सौ प्रतिशत दे रहे हैं। उनके अंदर स्टेमिना नजर आ रहा है जो पहले नहीं दिखाई देता था। वे इन दिनों मेजर ध्यानचंद हॉकी स्टेडियम में आयोजित 12वीं नेशनल सीनियर महिला हॉकी चैंपियनशिप में प्रतिभा को तलाश रहे हैं। वे यहां हॉकी इंडिया के चयनकर्ता के रूप में आए हैं। 
बता दें कि मार्च में आयोजित हुए औबेदुल्ला हेरिटेज कप में युवराज ने अपनी टीम इंडियन रेलवे को खिताब दिलाया था। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के स्टार खिलाड़ी ने कहा कि हमारे खिलाड़ियों में अच्छी पोटेंशियल नजर आ रही है। यहां टूर्नामेंट में खिलाड़ियों को जज कर रहा हूं। इसके बाद फाइनल लिस्ट बनाकर हॉकी इंडिया को भेजूंगा। इस नेशनल में मैंने ऐसी प्रतिभाओं को देखा है जो आगे चलकर भारतीय महिला टीम में खेलती नजर आएंगी।
उन्होंने औबेदुल्ला गोल्ड कप की यादें ताजा करते हुए कहा कि पहली बार जब भोपाल में औबेदुल्ला गोल्ड कप खेलने आया था तब मुझे प्लेइंग-11 में जगह नहीं मिल पाती थी। टीम में सब दिग्गज थे और मैं सबसे छोटा था। ऐशबाग में हॉकी की दीवानगी देखते ही बनती थी। यहां भीड़ देखकर दंग रह गया था। उस दौर में पुराने खिलाड़ियों की स्टिक में कलाकारी थी जो अब नहीं के बराबर है। आज की हॉकी तेज हो गई है जिसमें फिटनेस का अहम रोल है। अब खिलाड़ियों को मैदान में सरवाइव करने के लिए पैरों में जान चाहिए। बॉडी कितना लोड ले सकती है ये महत्वपूर्ण है।
उन्होंने बताया कि प्रो लीग से हॉकी को फायदा हो रहा है। हम हॉलैंड और जर्मनी से आगे होंगे। मैंने सात साल देश के लिए खेला है। विश्व कप खेले हैं लेकिन ओलम्पिक टीम में जगह नहीं बना सका इसका मुझे मलाल रहेगा। भाई देवेंद्र के बारे में बताया कि 2015 में देश के लिए पहली बार साथ खेले थे। तब देवेंद्र ने डेब्यू किया था। तब नेशनल एंथम बजते ही वो नर्वस हो गया था लेकिन फ्रांस के खिलाफ हम दोनों ने ही गोल दागे थे।

 

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