दीक्षा डागर को बधिर ओलम्पिक में स्वर्ण

इन खेलों में दो पदक जीतने वाली पहली गोल्फर बनी
खेलपथ संवाद
कैक्सियास डो सुल (ब्राजील)।
भारतीय गोल्फर दीक्षा डागर ने बधिर ओलम्पिक की गोल्फ प्रतियोगिता के फाइनल में अमेरिका की एशलिन ग्रेस को हराकर स्वर्ण पदक जीता। दीक्षा का बधिर ओलम्पिक में यह दूसरा पदक है। इससे पहले उन्होंने 2017 में रजत पदक जीता था। वह इन खेलों में दो पदक जीतने वाली पहली गोल्फर बन गयी हैं। 
यूरोपीय टूर में खेलने वालीं 21 वर्षीय दीक्षा ने महिला गोल्फ प्रतियोगिता के ‘मैच प्ले’ वर्ग के फाइनल में पांच और चार से जीत दर्ज की। इसका मतलब है कि जब दीक्षा ने पांच होल में जीत दर्ज की तब चार होल का खेल बचा था। बधिर ओलम्पिक में 2017 में जब पहली बार गोल्फ को शामिल किया गया था तो दीक्षा ने आसानी से फाइनल में जगह बनाई थी, लेकिन अमेरिका की योस्ट केलिन ने उन्हें हराकर स्वर्ण पदक जीता था। दीक्षा ने पिछले साल टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था और वह लेडीज यूरोपीय टूर पर व्यक्तिगत खिताब जीत चुकी हैं। वह लेडीज यूरोपीय टूर पर टीम प्रतियोगिता जीतने वाली टीम का भी हिस्सा रह चुकी हैं।
दीक्षा और उनका भाई योगेश डागर बहरेपन की समस्या से ग्रसित हैं। हालांकि, उन्होंने बहरेपन की चुनौतियों पर काबू पा लिया और महिला गोल्फ़िंग सर्किट में अपना नाम कमाने के लिए ज्यादातर लिप-रीडिंग या साइन लैंग्वेज का सहारा लिया। उनके पिता ने बताया, “जब वह कुछ महीने की थी, तब बहरेपन के संकेत मिले थे। वह आवाज का जवाब नहीं दे पाती थी। उसके भाई के साथ भी यही समस्या थी। इसके लिए क्या करना चाहिए, उसके लिए बहुत अच्छा आइडिया था हमारे पास। इस बीच चिकित्सा तकनीक में भी सुधार हुआ था।”
पूर्व स्क्रैच गोल्फर उनके पिता कर्नल नरिंदर डागर ने उन्हें गोल्फिंग की शुरुआती बारीकियां सिखाईं। माता-पिता ने हमेशा सुनने की अक्षमता को गंभीरता से न लेने में उनकी मदद की। उनके पिता नरिंदर अपने दोनों बच्चों को एक सामान्य जीवन देने के लिए दृढ़ थे। उन्होंने सोचा कि खेल उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने में मदद करेगा। ऐसे में उनके परिवार ने उनकी पढ़ाई को लेकर ज्यादा चिंता नहीं की क्योंकि, वह टेनिस, तैराकी और एथलेटिक्स में भी पारंगत हो गई थीं। उनके पिता ने कहा "यदि आप खेलों में उत्कृष्टता प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको कहीं न कहीं समझौता करना होगा। यदि कोई देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है, तो वह अन्य छात्रों की तरह नियमित रूप से स्कूल नहीं जा सकता।"
एशियाई खेलों के लिए भारतीय गोल्फ टीम के राष्ट्रीय कोच रहे अमनदीप जोहल ने दीक्षा के कौशल को देखा और उन्हें तैयार किया है। गोल्फर जरूरत पड़ने पर उनसे सलाह लेती हैं। जोहल का मानना ​​है कि दीक्षा एक ऐसी गोल्फर हैं, जो परिस्थितियों को बहुत जल्दी समझ जाती हैं। जोहल ने बताया, "उनके बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह बहुत तेजी से चीजों को पकड़ लेती हैं और शायद ही कभी एक ही गलती दोहराती हैं।" "उसके पास हरफनमौला खेल है, लेकिन उसे अपना मानसिक ध्यान और लय सुधारने की जरूरत है।"
लेडीज यूरोपियन टूर जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय महिला
2019 में दक्षिण अफ्रीकी ओपन में लेडीज यूरोपियन टूर (LET) जीतने वाली दीक्षा सबसे कम उम्र की महिला गोल्फर और अदिति अशोक के बाद दूसरी भारतीय महिला बनीं। उन्होंने 18 साल की उम्र में ये कारनामा किया। दीक्षा ने यह इतिहास रचने के बाद कहा, "वास्तव में, मुझे जीतने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन ऐसा हुआ, तो मैं बहुत खुश हूं। मुझे अंत में 15 पर एक लॉन्ग बर्डी पुट और फिर 16 पर चिप-इन के साथ दो भाग्यशाली ब्रेक मिले। आमतौर पर मैं इसे पास करने और बराबर पुट बनाने की कोशिश करती थी, लेकिन इस बार मुझे लग रहा था कि मैं कर सकती हूं। यह और यह अंदर चला गया।”
बाएं हाथ की इस गोल्फर ने इससे पहले 16 साल की उम्र में डेफलम्पिक्स में रजत पदक जीतकर देश को गौरवान्वित किया था। दीक्षा की यह सफलता उसके जीतने के रवैये से मिली है। वह दो महान खिलाड़ियों- नोवाक जोकोविच और टाइगर वुड्स से प्रेरणा लेती हैं। जोकोविच के बारे में दीक्षा के विचार कुछ यूं हैं। दीक्षा के मुताबिक "मुझे उनका रवैया पसंद है। कई बार जब वह खराब खेल रहे होते हैं, तो उन्हें गुस्सा आता है।" उन्होंने कहा, "उनका (टाइगर वुड) रवैया खेल पर ध्यान केंद्रित करने का है, न कि किसी के द्वारा टाले जाने का। वह एक जादूगर की तरह हैं।"

 

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