मुक्केबाजी के पहले द्रोणाचार्य ओपी भारद्वाज का निधन

10 दिन पहले पत्नी का हुआ था देहांत!
नयी दिल्ली।
मुक्केबाजी में भारत के पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार विजेता कोच ओपी भारद्वाज का लम्बी बीमारी और उम्र संबंधी परेशानियों के कारण शुक्रवार को निधन हो गया। वह 82 वर्ष के थे। उनकी पत्नी संतोष का 10 दिन पहले ही बीमारी के कारण निधन हो गया था। 
भारद्वाज को 1985 में द्रोणाचार्य पुरस्कार शुरू किये जाने पर बालचंद्र भास्कर भागवत (कुश्ती) और ओएम नाम्बियार (एथलेटिक्स) के साथ प्रशिक्षकों को दिये जाने वाले इस सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पूर्व मुक्केबाजी कोच और भारद्वाज के परिवार के करीबी मित्र टीएल गुप्ता ने कहा, ‘स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियों के कारण वह पिछले कई दिनों से अस्वस्थ थे और अस्पताल में भर्ती थे। 
उम्र संबंधी परेशानियां भी थीं और 10 दिन पहले अपनी पत्नी के निधन से भी उन्हें आघात पहुंचा था।' भारद्वाज 1968 से 1989 तक भारतीय राष्ट्रीय मुक्केबाजी टीम के कोच थे। वह राष्ट्रीय चयनकर्ता भी रहे। उनके कोच रहते हुए भारतीय मुक्केबाजों ने एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और दक्षिण एशियाई खेलों में पदक जीते। गुप्ता ने कहा, ‘‘उन्होंने पुणे में सेना स्कूल एवं शारीरिक प्रशिक्षण केंद्र में अपना करियर शुरू किया और सेना मशहूर कोच बने। 
राष्ट्रीय खेल संस्थान (एनआईएस) ने 1975 में जब मुक्केबाजी में कोचिंग डिप्लोमा का प्रस्ताव रखा तो भारद्वाज को पाठ्यक्रम की शुरुआत के लिय चुना गया था। मुझे गर्व है कि मैं उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल था।'' उन्होंने 2008 में कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी को भी दो महीने तक मुक्केबाजी के गुर सिखाये थे। पूर्व राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह भी उनके शुरुआती शिष्यों में शामिल थे। 
राष्ट्रीय महासंघ के पूर्व महासचिव ब्रिगेडियर (सेवानिवृत) पीकेएम राजा ने कहा कि भारद्वाज का खेल में अपने योगदान के लिये बहुत सम्मान था। उन्होंने कहा, ‘‘वह सेना खेल नियंत्रण बोर्ड के दिग्गज थे। सही मायनों में वह बेहतरीन कोच और प्रभावशाली व्यक्ति थे।

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