बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दागी को सौंपी खजाने की चाबी

मध्यप्रदेश बाक्सिंग संघ में अनाड़ियों का कब्जा

42 साल में दर्जन भर जिलों में ही हुआ खेल का विकास

श्रीप्रकाश शुक्ला

नई दिल्ली। हाल ही गुरुग्राम में जोड़-तोड़ से हुए बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के चुनावों में अजय सिंह पुनः अध्यक्ष चुने गए तो सचिव की आसंदी पर हेमंत कुमार कलिता बिराजमान हुए। सबसे चौंकाने वाला पद कोषाध्यक्ष का रहा। इस पद पर मध्य प्रदेश के दागी खेलनहार दिग्विजय सिंह को खजाने की चाबी सौंपी गई है। मध्य प्रदेश में मुक्केबाजी की बात करें तो महज दर्जन भर जिलों में ही यह अस्तित्व में है। संगठन के तीनों पदों पर अनाड़ियों का कब्जा है।

मध्य प्रदेश में मुक्केबाजी संगठन की नींव 16 सितम्बर, 1979 में रखी गई थी। लगभग 42 साल के लम्बे अंतराल के बाद भी मध्य प्रदेश के 50 फीसदी जिलों में भी इस खेल का विकास नहीं हो पाया है, जबकि बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के खजांची बने दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश बाक्सिंग एसोसिएशन में पिछले आठ साल से बतौर सचिव काबिज हैं। बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के संविधान में उसी राज्य की सहभागिता मान्य है, जहां अधिक से अधिक इस खेल का विकास हुआ हो यानि उस राज्य में कम से कम 50 फीसदी जिलों में मुक्केबाजी अस्तित्व में हो।

मध्य प्रदेश बाक्सिंग एसोसिएशन की कही सच मानें तो प्रदेश के 18 जिलों में यह खेल परवान चढ़ रहा है लेकिन सच्चाई यह है कि राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में बमुश्किल एक दर्जन जिले ही सहभागिता करते हैं। नियमतः बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के चुनावों में इस राज्य को मतदान का हक नहीं होना चाहिए लेकिन पद-लालसा की खातिर मध्य प्रदेश के खेलनहार को कोषाध्यक्ष का महती पद सौंपकर सीधे-सीधे नियम-कायदों का चीरहरण किया गया है। मध्य प्रदेश बाक्सिंग एसोसिएशन के सचिव दिग्विजय सिंह का विवादों से चोली-दामन का साथ है, बावजूद वह अनिल मिश्रा को हराकर बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के खजांची बने हैं।

बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के पुनः अध्यक्ष चुने गए अजय सिंह का कहना था कि हम सब मिलकर मुक्केबाजी का भला करेंगे और महिला बाक्सिंग को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। संगठन कोई भी हो उसमें पारदर्शिता और ईमानदारी सबसे अहम होती है। कुछ साल पहले की बात है जब जबलपुर निवासी दिग्विजय सिंह पर एक यात्रा टिकट को दो जगह से भुनाने का आरोप सिद्ध हुआ था। उस आरोप से वह आज भी दोषमुक्त नहीं हुए हैं, ऐसे में उनका बाक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का कोषाध्यक्ष चुना जाना हैरत की ही बात है। दिग्विजय सिंह ने यह गोलमाल का खेल केरल में हुए 35वें राष्ट्रीय खेलों के दौरान खेला था।

उन खेलों में दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश की ओर से ऑफीशियल की हैसियत से गए थे। इस खेलनहार ने एक ही यात्रा का यात्रा भत्ता मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग के साथ ही केरल नेशनल गेम्स की आयोजन समिति से भी ले लिया था। नियमतः दिग्विजय सिंह को एक ही जगह से यात्रा भत्ता लेने का हक था। दिग्विजय सिंह का यह खेल कागजों में ही दफन हो जाता यदि इसकी शिकायत भोपाल के एक खेलप्रेमी केशव सिंह गौर ने प्रदेश के मुख्यमंत्री, खेलमंत्री, मध्य प्रदेश ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष, खेल सचिव, खेल संचालक, रजिस्ट्रार फर्म्स सोसायटी, मध्य प्रदेश के सभी खेल संघों के अध्यक्ष/सचिव और केरल नेशनल गेम्स के आयोजन सचिव से न की होती। एक टिकट पर दो जगह से यात्रा भत्ता लेने वाले दिग्विजय सिंह ने तब स्वीकार किया था कि राष्ट्रीय खेलों के दौरान वह दो बार केरल गए थे और गलती से एक ही टिकट का भुगतान दोनों जगह से हो गया।

जो भी हो श्री गौर के प्रयासों से मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग हरकत में आया और उसने अपने स्तर से जांच की तो दिग्विजय सिंह दोषी पाए गए। सूत्रों की कही सच मानें तो मध्य प्रदेश के इस खेलनहार पर अन्य अनियमितताओं के भी संगीन आरोप हैं। दुर्भाग्य की बात है कि खिलाड़ियों का कभी भला न करने वाले दिग्विजय सिंह आज मध्य प्रदेश मुक्केबाजी एसोसिएशन के साथ ही मध्य प्रदेश जिम्नास्टिक एसोसिएशन के भी सचिव हैं। सूत्र बताते हैं कि मध्य प्रदेश ओलम्पिक संघ का सचिव बनने से पूर्व वह एक भी एसोसिएशन में पदाधिकारी नहीं थे। दुःख की बात है कि जब खेलों के अलम्बरदार ही फर्जीवाड़ा करेंगे तो मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों का भला कौन करेगा?  

 

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