दो शूटर दादियों की दास्तां युवाओं के लिए नसीहत

चंद्रो और प्रकाशी में बला का हौसला

खेलपथ प्रतिनिधि

मेरठ। उम्र तो सिर्फ एक आंकड़ा है। इंसान में यदि कुछ कर गुजरने का जुनून दिमाग में आ जाए तो उम्र भी उसके रास्ते का अवरोध नहीं बन सकती। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में दो बुजुर्ग महिलाएं उन लोगों के लिए नसीहत बन गईं जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर हार मान जाते हैं। चंद्रो और प्रकाशी अब तक शूटिंग में सैकड़ों मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। इन पर बायोपिक सांड़ की आंख बन चुकी है।

चंद्रो और प्रकाशी इस वक्त गांव और आसपास की लड़कियों को शूटिंग के गुर सिखा रही हैं। इस कारनामे की वजह से ये महिलाएं पूरे इलाके में शूटर दादी के नाम से मशहूर हैं। चंद्रो ने आम खिलाड़ियों की तरह युवा अवस्था से शूटिंग शुरू नहीं की बल्कि बुजुर्ग अवस्था में शुरू की थी। शूटर दादी चंद्रो अपनी पोती शेफाली को निशानेबाजी सिखाने के लिए उसके साथ डॉ. राजपाल की जोहड़ी गांव में शूटिंग रेंज पर उसके साथ जाया करती थीं। दादी ने एक दिन वहां रखी पिस्टल से निशाना लगाया, उसे देखकर सब अचम्भित रह गए। दादी ने पिस्टल से टारगेट को भेद दिया, सभी ने दादी के निशाने को काफी सराहा तो दादी के मन में भी कुछ कर गुजरने का जज्बा जाग गया। दादी समाज की बंदिशों को छोड़कर निशानेबाज दादी बन गईं।

दादी ने 2002 से देश और विदेश में निशानेबाजी की प्रतियोगिताओं में भाग लिया और कई मेडल अपने नाम किए। आज 87 साल की उम्र में भी चंद्रो सटीक निशाना लगाती हैं। लड़कियां आगे बढ़ें इसके लिए वह उन्हें कोचिंग देकर निशानेबाजी के गुर भी सिखाती हैं। दादी की काबिलियत के चलते उन्हें देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी सम्मानित कर चुके हैं।

30-40 की उम्र के बाद जहां महिलाएं खुद को कमजोर समझने लगती हैं, वहीं 'शूटर दादी' के नाम से मशहूर चंद्रो तोमर का हौसला 87 साल की उम्र में भी कायम है। इतना ही नहीं, लम्बे समय से वह हॉस्पिटल में भर्ती थीं लेकिन जब वो घर लौटीं तो उनकी हिम्मत में किसी तरह की कमी नहीं आई। दरअसल, कमजोरी के कारण शूटर दादी चंद्रो तोमर घर में गिर गईं, जिसके कारण उनके दाहिने हाथ की हड्डी टूट गई थी। इसके बाद उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया है, जहां से इलाज करवाकर वह घर लौट आईं। उनके वापस आने पर गांव वालों ने 'लड़की बचाओ, लड़की पढ़ाओ और लड़की खिलाओ' के नारे लगाते हुए उनकी हिम्मत को सलाम किया।

बता दें भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू की फिल्म 'सांड की आंख' में दिखाई जाने वाली 'शूटर दादियां' इन्हीं औरतों की सच्ची कहानी है। बागपत (उत्तर प्रदेश) की रहने वाली चंद्रो तोमर ने अपने जौहरी गांव की सैकड़ों लड़कियों को न सिर्फ बंदूक चलाना सिखाया बल्कि उन्होंने लड़कियों को विश्व स्तर पर अपना हुनर दिखाने का भी मौका दिया। उनकी के साथ शामिल हैं प्रकाशी तोमर। इनका कहना है कि लड़कियां देश में नाम कमा रही हैं और आगे भी करती रहेंगी। आगे उन्होंने कहा, 'लड़कियों को धाकड़ बनाओ और उनके लिए काम करो। मैं जब बुढ़ापे में हिम्मत कर रही हूं तो आप भी कीजिए।' वह सिर्फ अपने गांव ही नहीं बल्कि आस-पास रहने वाली गरीब लड़कियों को भी बंदूक चलाने की ट्रेनिंग देती हैं और उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तैयार करती हैं।

65 साल की उम्र तक चंद्रो तोमर एक आम महिला थीं, जो सिर्फ घर की जिम्मेदारियों को ही निभा रही थीं लेकिन पोती के कारण उन्होंने न सिर्फ घर से बाहर पैर रखा बल्कि दुनिया को अपना हुनर भी दिखाया। दरअसल, 1998-99 के आसपास चंद्रो अपनी 11 साल की पोती को शूटिंग की ट्रेनिंग दिलवाने के लिए लेकर जाती हैं। उसी दौरान जब उनकी पोती पिस्तौल चलाने से डर रही थी तो उसका हौसला बढ़ाने के लिए उन्होंने पिस्तौल उठाकर निशाना लगा दिया। उनका निशाना एकदम सीधा लगा। इत्तफाक मानते हुए जब कोच ने उन्हें दोबारा निशाना लगाने को कहा तो दूसरी बार भी उनका निशाना नहीं चूका। हालांकि उसमें और निखार लाने की जरूरत थी सो कोच ने उन्हें ट्रेनिंग लेने की सलाह दी। इसके बाद उनका सफर शुरू हो गया।

जब उन्होंने शूटिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू की तो गांव वालों के साथ परिवार भी उनके खिलाफ खड़ा था। गांव वाले उनका मजाक उड़ाते हुए कहते 'बुढ़िया इस उम्र मे कारगिल जाएगी क्या?' मगर उन्होंने पति से छुपकर अपनी ट्रेनिंग जारी रखी। इसी बीच उन्हें उनकी देवरानी प्रकाशी तोमर का साथ मिला, जो खुद भी शूटिंग करना चाहती थी। इसके बाद दोनों ने शूटिंग की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। जहां परिवार दोनों के खिलाफ खड़ा था वहीं उनके बच्चों और पोते-पोतियों ने उनका साथ दिया। बच्चे व पोतियां उन्हें चोरी-छुपे शूटिंग रेंज और प्रतियोगिताओं में ले आते। इस तरह वो अपने खेल में आगे बढ़ीं और दुनिया को दिखा दिया कि सपने साकार करने की कोई उम्र नहीं होती। दादी बताती हैं कि रात में जब सब सो जाते, तब वह पानी से भरा जग लेकर गन को पकड़ने, बैलेंस बनाने की घंटों प्रैक्टिस किया करती थी।

चंद्रो व प्रकाशी तोमर कई प्रतियोगिताओं में न सिर्फ हिस्सा ले चुकी हैं बल्कि सैकड़ों मेडल भी जीत चुकी हैं। चंद्रो लाइम लाइट में तब आईं जब उन्होंने 1999 में नार्थ जोन शूटिंग प्रतियोगिता जीती। बता दें कि अब तक वो शूटिंग में कुल 25 नेशनल चैम्पियनशिप जीत चुकी हैं वहीं प्रकाशी दादी ने तो एक शूटिंग प्रतियोगिता में दिल्ली के डीआईजी को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। दोनों ने लगभग 65 और 57 साल की उम्र से शूटिंग शुरू की। उम्र अधिक होने के कारण अब चंद्रो तोमर प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पातीं। हालांकि लड़कियों को शूटिंग में बढ़ावा देने के लिए दादी गांव में ही एड्वांस लेवल का शूटिंग रेंज खोलने की तैयारी में हैं।

चंद्रो की बेटी है अंतरराष्ट्रीय शूटर

चंद्रो की बेटी सीमा एक अंतरराष्ट्रीय शूटर है,  जो 2010 में राइफल व पिस्टल विश्व कप में पदक जीतने वाली पहली महिला भी है। उनकी पोती नीतू सोलंकी एक अंतरराष्ट्रीय शूटर है। इतना ही नहीं, उनके परिवार की सात लड़कियां नेशनल लेवल पर शूटिंग कर रही हैं। बता दें कि गांव जौहरी से लगभग 30 से अधिक शूटर रजिस्टर्ड हैं। हम आपको बता दें कि जौहरी राइफल क्लब देश को लगभग छह सौ से अधिक ऐसे निशानेबाज दे चुका है जो निशानेबाजी के दम पर नौकरी पाकर देश को सेवाएं दे रहे हैं।

 

 

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