भारतीय खिलाड़ियों के कीर्तिमान

श्रीप्रकाश शुक्ला
खेलना-कूदना हर जीव का शगल है। इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। खेलों को कोई मनोरंजन के लिए खेलता है तो कोई इसे अपना करियर या यूं कहें हमसफर बना लेता है। हमारे मुल्क के कई जांबाज खिलाड़ियों ने भी यहां खेल संस्कृति न होने के बावजूद खेलों को न केवल अपना करियर बनाया बल्कि अपने पराक्रमी प्रदर्शन से दुनिया में यह पैगाम छोड़ा कि गोया हम भी किसी से कम नहीं हैं। खेलों में कीर्तिमान बनना और टूटना इसका हिस्सा है। भारतीय खिलाड़ियों ने हाकी, क्रिकेट, बिलियर्ड्स, लान टेनिस, बैडमिंटन, शतरंज, कुश्ती जैसे खेलों में जहां अच्छा प्रदर्शन किया वहीं फुटबाल, तैराकी और एथलेटिक्स में हमारा प्रदर्शन दोयमदर्जे का ही रहा है। एक समय हाकी में हमारी हुकूमत चलती थी तो आज क्रिकेट में भारतीय खिलाड़ियों का जलवा है। क्रिकेट में हर दिन कोई न कोई रिकॉर्ड बनते और टूटते हैं लेकिन कुछ कीर्तिमान ऐसे हैं जिनका टूटना असम्भव नजर आता है। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। यहां क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा प्राप्त है।
क्रिकेट की बात करें तो सचिन तेंदुलकर को इस खेल में कीर्तिमानों का बादशाह कहा जाता है। मास्टर ब्लास्टर सचिन ने अपने 24 साल के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट सफर में जो कीर्तिमान गढ़े हैं उनमें 15-16 कीर्तिमान तो ऐसे हैं जिन तक पहुंचना असम्भव नहीं तो आसान बात भी नहीं होगी। क्रिकेट की लोकप्रियता वनडे क्रिकेट के चलन से ही हुई और इस विधा में सचिन सिरमौर हैं। क्रिकेट के इस फार्मेट में पहला शतक इंग्लैण्ड के डेनिस एमिस तो दोहरा शतक बनाने का कीर्तिमान ऑस्ट्रेलियाई महिला खिलाड़ी बेलिंडा क्लार्क के नाम है। पुरुष वनडे क्रिकेट में सबसे पहले 200 रन बनाने वाले बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर हैं। सचिन ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ 2010 में ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह मैदान में 200 रनों की पारी खेली थी। टेस्ट क्रिकेट में एक पारी में परफेक्ट टेन का गौरव इंग्लैंड के जिम लेकर और भारतीय फिरकी गेंदबाज अनिल कुम्बले के नाम है।
क्रिकेट में भारत की जहां तक बात है, महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के हर रिकॉर्ड पर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक गर्व करता है। सचिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने के अलावा 100 शतक लगाने वाले दुनिया के एकलौते बल्लेबाज हैं। सचिन सबसे ज्यादा 200 टेस्ट खेलने वाले दुनिया के एकलौते खिलाड़ी हैं। वनडे और टेस्ट में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड भी मास्टर ब्लास्टर के ही नाम है। 24 साल के सफर में सचिन ने क्रिकेट में उस शिखर को छुआ, जिसकी कभी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। 5 फुट 5 इंच के इस क्रिकेटर के नाम 69 रिकॉर्ड हैं। इनमें से कुछ रिकॉर्ड तो टूट सकते हैं, लेकिन कई कीर्तिमानों ने उन्हें हमेशा के लिए अमर कर दिया है। महान डॉन ब्रेडमैन जिसमें अपना अक्स देखते थे। महान सुनील गावस्कर ने जिसके कदमों में सजदा किया और महान शेन वॉर्न के सपनों में जो शख्स आता था, उसका नाम है सचिन तेंदुलकर। सचिन के इन कीर्तिमानों में सबसे बड़ा है शतकों का शतक। सचिन के नाम टेस्ट में 51 और वनडे में 49 शतक हैं। सचिन 200 टेस्ट खेलने वाले दुनिया के इकलौते क्रिकेटर हैं। सचिन का यह रिकॉर्ड भी फटाफट क्रिकेट के इस जमाने में टूटना नामुमकिन ही नजर आता है।
वनडे क्रिकेट में सचिन के नाम 96 अर्धशतक हैं और उनका शायद ये रिकॉर्ड भी न टूट पाए क्योंकि उनके इस रिकॉर्ड के पास पहुंचने वाले सभी चारों बल्लेबाज कुमार संगकारा, जैक्स कैलिस, राहुल द्रविड़ और इंजमाम उल हक वनडे क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं। वनडे क्रिकेट में सचिन दो हजार से ज्यादा चौके लगाने वाले इकलौते खिलाड़ी हैं। फटाफट क्रिकेट में उनके नाम 2016 चौके दर्ज हैं, दूसरा कोई बल्लेबाज उनके रिकॉर्ड को खतरा पहुंचाने की हालत में दूर-दूर तक नहीं दिखता। सबसे ज्यादा 463 वनडे खेलने का सचिन का रिकॉर्ड टूटना भी आसान नहीं है। उनके रिकॉर्ड के सबसे करीब पहुंचने वाले महेला जयवर्धने 448 वनडे खेलने के बाद इस फॉर्मेट को अलविदा कह चुके हैं। वनडे क्रिकेट में एक कैलेंडर वर्ष में सबसे ज्यादा 1894 रनों का सचिन का रिकॉर्ड 18 साल से नहीं टूटा है। सचिन ने 1998 में वनडे में 1894 रन बनाए थे। सचिन का वनडे क्रिकेट में सबसे ज्यादा 18426 रन बनाने का रिकॉर्ड तोड़ना भी फिलहाल तो नामुमकिन जैसा ही है तो टेस्ट क्रिकेट में 119 अर्धशतकों का रिकॉर्ड तोड़ने के करीब भी दुनिया का कोई बल्लेबाज नहीं है। आंकड़ों ने ही सचिन को क्रिकेट का भगवान नहीं बनाया बल्कि उसने 24 साल के क्रिकेट करियर में अपने प्रशंसकों को जो खुशी दी है वह कोई इंसान नहीं बल्कि भगवान ही दे सकता है। सचिन भारत रत्न पाने वाले भारत के इकलौते खिलाड़ी हैं।
टेस्ट क्रिकेट में अगर सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नाम है तो राहुल द्रविड़ टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा गेंद खेलने वाले बल्लेबाज हैं। अपनी बेहतरीन तकनीक और टिकाऊ बल्लेबाजी के लिए मशहूर रहे द्रविड़ को पूरी दुनिया द वाल के नाम से जानती है। वनडे क्रिकेट में दो दोहरे शतक दुनिया में सिर्फ एक ही बल्लेबाज के नाम हैं और वे हैं भारत के रोहित शर्मा। रोहित ने ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के खिलाफ दो बार वनडे क्रिकेट में 200 से ज्यादा रन बनाने का कारनामा अंजाम दिया है। क्रिकेट में हैट्रिक लेना कोई साधारण काम नहीं है। लेकिन भारत के इरफान पठान ने टेस्ट मैच के पहले ही ओवर में तीन लगातार गेंदों पर तीन विकेट चटकाकर यह मुकाम हासिल किया था तो वनडे में भारत के ही चेतन शर्मा ने न्यूजीलैण्ड के खिलाफ ऐसी हैट्रिक जमाई कि उसे क्रिकेट मुरीद आज भी याद करते हैं। चेतन ने इस हैट्रिक में तीनों बल्लेबाजों को क्लीन बोल्ड किया था। भारतीय क्रिकेट को सफलता की नई ऊंचाईयों तक पहुंचाने वाले महेन्द्र सिंह धोनी के कप्तान बतौर रिकॉर्ड पर भी हर भारतीय क्रिकेट प्रशंसक को नाज है। धोनी ने न सिर्फ दो बार भारत को विश्व विजेता बनाया बल्कि वे दुनिया के एकलौते ऐसे कप्तान हैं जिन्होंने आईसीसी के सभी टूर्नामेंट अपनी कप्तानी में जीते हैं। भारत के स्टार बल्लेबाज युवराज सिंह के नाम टी-20 क्रिकेट में 6 लगातार छक्के लगाने का रिकॉर्ड दर्ज है। युवराज ने इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 विश्व कप 2007 में स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ही ओवर की 6 गेंदों पर 6 छक्के लगाए थे। भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन ने अपने टेस्ट करियर की सपनीली शुरुआत की थी। अजहर ने 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ अपने पहले तीन टेस्ट मैचों में तीन शतक लगाकर जो अंतरराष्ट्रीय कीर्तिमान स्थापित किया था वह 32 साल बाद भी यथावत है। भारत के विस्फोटक बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग के नाम टेस्ट क्रिकेट में सबसे तेज तिहरा शतक बनाने का रिकॉर्ड दर्ज है। सहवाग भारत के एकलौते ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने तिहरा शतक बनाया है। सहवाग के नाम टेस्ट क्रिकेट में दो तिहरे शतक हैं। सहवाग ने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ केवल 278 गेंदों पर तिहरा शतक ठोक टेस्ट क्रिकेट का सबसे तेज तिहरा शतक बनाया था। भारत के बाएं हाथ के स्पिनर बापू नादकर्णी को क्रिकेट इतिहास के सबसे कंजूस गेंदबाजों में गिना जाता है। नादकर्णी ने इंग्लैंड के खिलाफ 1963 में लगातार 21 मेडन ओवर डाले थे। उन्होंने अपने इस स्पेल में लगातार 131 डॉट बॉल फेंकी थीं। उन्होंने 32 ओवर में 27 मेडन सहित सिर्फ 5 रन खर्च किये थे।
भारत में शतरंज की बात होते ही सबकी जुबां पर विश्वनाथन आनंद का नाम आ जाता है। आना भी चाहिए आखिर इस शातिर ने अपनी चालों से दुनिया को एक बार नहीं कई बार हतप्रभ जो किया है।
आनंद वर्ष 2007 से 2013 तक शतरंज की दुनिया के बेताज बादशाह रहे। यहाँ तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई रूसी महारथियों को मात दी। आनंद की बदौलत ही भारत में शतरंज काफी लोकप्रिय हुआ। आनंद 2007 में पहली दफा विश्व विजेता बनकर उभरे। इसके बाद 2008 से 2010 तक विश्व शतरंज चैम्पियनशिप में आनंद ही आनंद छाये रहे। वह 2012 में भी चैम्पियन बने और इस खेल के शहंशाह बन गये। आनंद का दिमाग कितना तेज है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने 2003 में कम्प्यूटर को भी मात दे दी थी। वर्ल्ड रैपिंग शतरंज में 25 मिनट की बाजी होती है और हर चाल चलने के लिये 10 सेकेंड का वक़्त होता है यहाँ भी आनंद की बादशाहत कायम रही और वे चैम्पियन बने। आनंद की ये उपलब्धियां सचिन तेंदुलकर के 100 शतकों से किसी मायने में कम नहीं हैं।
देश के प्रतिभाशाली बिलियर्ड्स खिलाड़ी पंकज आडवाणी को भला कौन नहीं जानता। पंकज आडवाणी विश्व पेशेवर बिलियर्ड्स खिताब जीतने वाले दूसरे भारतीय हैं। पंकज आडवाणी से पहले गीत सेठी ने छह बार यह खिताब जीता था। सेठी ने 1992, 1993, 1995, 1998, 2001 और 2006 में इस खिताब पर कब्जा किया था। एक पेशेवर खिलाड़ी के तौर पर यह आडवाणी का पहला बिलियर्ड्स विश्व खिताब है। वह इससे पहले विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स और स्नूकर विश्व खिताब जीत चुके हैं। आडवाणी ने 2003 में चीन में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप के दौरान एमेच्योर स्नूकर खिताब जीता था। वर्ष 2005 में माल्टा में आयोजित विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीतने के बाद आडवाणी ने अपना नाम रिकार्ड बुक में दर्ज करा लिया था। आडवाणी स्नूकर तथा बिलियर्ड्स एमेच्योर दोनों खिताबों पर कब्जा करने वाले विश्व के दूसरे खिलाड़ी हैं। इससे पहले यह कारनामा माल्टा के पॉल मिफ्सुद ने किया था। आडवाणी विश्व के एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 'प्वाइंट' और 'टाइम' आधार पर खेली जाने वाली विश्व बिलियर्ड्स चैम्पिनयनशिप का खिताब दो बार जीता है। उन्होंने यह उपलब्धि 2005 और 2008 में हासिल की थी। उपलब्धियों के मामले में आडवाणी ने अपने तमाम पूर्ववर्तियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। पंकज आडवाणी ने बिलियर्ड्स और स्नूकर में बारह विश्व खिताब जीते हैं।
देखा जाए तो भारत में 1920 के दशक में बिलियर्ड्स और स्नूकर की जमीन तैयार करने में एमएम बेग ने खासी रुचि ली थी। उन्हीं की कोशिश से 1926 में कलकत्ता में बिलियर्ड्स एण्ड स्नूकर फेडरेशन ऑफ इंडिया का गठन हुआ। बेग विश्व प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले खिलाड़ी थे। पहले हॉकी और फिर क्रिकेट की लोकप्रियता ने इस खेल को आसानी से पनपने नहीं दिया। ऐसे में विल्सन जोंस ने इस खेल के उत्थान का बीड़ा उठाया। विल्सन लियोनेल गार्टन जोंस ने 1958 में कलकत्ता के ग्रेट ईस्टर्न होटल में हुई विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीत कर इस खेल की तरफ लोगों का ध्यान खींचा। 1950 में जोंस ने पहली बार टीए सेल्वराज को फाइनल में हराकर राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती थी। अगले सोलह साल में वे बारह बार राष्ट्रीय चैम्पियन रहे। 1964 में न्यूजीलैंड में जोंस ने फिर विश्व खिताब जीता। 1962 में जोंस को अर्जुन पुरस्कार व 1965 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इस खेल से रिटायर होने के बाद उन्होंने ओम अग्रवाल, सुभाष अग्रवाल व अशोक शांडिल्य जैसे कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार किए। इसके लिए उन्हें 1996 में सर्वश्रेष्ठ कोच का दोणाचार्य पुरस्कार दिया गया।
विल्सन जोंस की शुरुआत को माइकल फरेरा ने मजबूती से आगे बढ़ाया। बांबे टाइगर के नाम से मशहूर माइकल फरेरा 1960 में पहली बार राष्ट्रीय चैम्पियन बने और 1964 में न्यूजीलैंड में हुई विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप का खिताब जीता। 1977 में उन्होंने पहली बार विश्व एमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीती और उसी साल वर्ल्ड ओपन बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप के खिताब पर कब्जा जमा लिया। 1978 में बिलियर्ड्स की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में एक हजार अंक पार करते हुए उन्होंने एक ही ब्रेक में 1149 अंक का विश्व रिकार्ड कायम किया। 1981 में दूसरा विश्व खिताब जीतने के बाद फरेरा को पद्मश्री दिया गया लेकिन उन्होंने उसे लेने से मना कर दिया। उनका तर्क था कि क्रिकेटर सुनील गावस्कर की तरह उन्हें भी पद्मभूषण दिया जाना चाहिए। यह सम्मान उन्हें मिला लेकिन 1983 में तीसरा विश्व खिताब जीतने के बाद। विल्सन जोंस और माइकल फरेरा ने शौकिया खिलाड़ी के तौर पर दुनिया में नाम कमाया तो 17 अप्रैल, 1961 को दिल्ली में जन्मे गीत सेठी ने पेशेवर खिलाड़ी के रूप में धमक जमाई। शौकिया और पेशेवर स्तर की विश्व प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते हुए 1990 के दशक तक उन्होंने भारतीय प्रतिष्ठा को बनाए रखा। पेशेवर स्तर पर छह बार और शौकिया खिलाड़ी के रूप में तीन बार विश्व विजेता बनने वाले गीत सेठी ने 1982 में माइकल फरेरा को हराकर पहली बार अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता जीती। 1985 से 1988 तक लगातार और फिर 1997 व 1998 में गीत सेठी ने राष्ट्रीय खिताब जीता। 1985 में आठ घंटे चले फाइनल में बॉब मार्शल को हराकर गीत सेठी ने आईबीएसएफ वर्ल्ड एमेच्योर बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप जीती। 2001 में उन्होंने इस सफलता को दोहराया। गीत सेठी के नाम स्नूकर में 147 अंक और बिलियर्ड्स में 1276 अंक के ब्रेक का विश्व रिकार्ड है। 1992 में वर्ल्ड प्रोफेशनल बिलियर्ड्स चैम्पियनशिप में 80 मिनट में 1276 अंक जुटाए। 1993, 1995, 1998 और 2006 में भी गीत सेठी विश्व विजेता रहे। एशियाई खेलों में बिलियर्ड्स में भारत को पदक दिलाने वाले गीत सेठी पहले खिलाड़ी थे। 1998 में बैंकाक में हुए एशियाई खेलों में डबल्स में स्वर्ण व सिंगल्स में रजत पदक जीता। 2002 में बुसान में एक रजत व एक कांस्य पदक और 2006 में दोहा में अशोक हरिशंकर शांडिल्य के साथ डबल्स में कांस्य पदक उनके हिस्से में आया।
इन खेलों से हटकर बात करें तो भारत ओलम्पिक में एथलेटिक्स का मेडल हासिल करने के लिए 116 साल से इंतजार कर रहा है। लंदन ओलम्पिक में भारत ने अपना अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए दो रजत और चार कांस्य पदक तो हासिल किए लेकिन एथलेटिक्स में फिर भी भारतीय झोली खाली ही रही। भारत ने हाकी में अब तक आठ ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीते हैं जोकि एक रिकार्ड है। भारतीय हाकी टीम ने 1980 मास्को ओलम्पिक में आखिरी बार स्वर्ण पदक जीता था, उसके बाद उसे कोई स्वर्ण पदक नसीब नहीं हो सका। एथलेटिक्स में किसी भी भारतीय खिलाड़ी के नाम बेशक कोई कीर्तिमान नहीं हो लेकिन फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा समेत कई ऐसे नाम हैं जिन्होंने दुनिया के खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। मिल्खा सिंह की चूक से ही भारत 1960 के रोम ओलम्पिक में 400 मीटर की दौड़ का तमगा जीतते-जीतते रह गया। उस दौड़ में मिल्खा सबसे आगे थे लेकिन वह पीछे मुड़कर देखने की वजह से हार गए। मिल्खा को 56 साल पहले की गई गलती आज भी हलाकान-परेशान करती है। उस ओलम्पिक में फ्लाइंग सिख मिल्खा विश्व रिकार्ड बनाने के बाद भी पदक से चूक गये थे। मिल्खा पर एक फिल्म भाग मिल्खा भाग भी बनी जिसे देखने पर वह सकून महसूस करते हैं और अपने को नायक मानते हुए संन्यासी की तरह कहते हैं कि उन्हें अब कुछ नहीं चाहिए। आज प्रशंसा, पुरस्कार और सम्मान कोई भी चीज उन्हें रोमांचित नहीं करती। जो भी हो कमरे में टंगीं 80 तस्वीरें और उनमें 77 अंतरराष्ट्रीय पदक मिल्खा की जांबाजी को खुद-ब-खुद बयां करती हैं। टोक्यो में आयोजित 1958 के एशियाई खेलों में उन

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