ओलम्पिक टलना खेलहित में

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस जो मौत का तांडव खेल रहा है और दुनिया जिस तरह आतंक में जी रही है, उसमें ओलंपिक खेलों के होने का कोई औचित्य नजर नहीं आ रहा था। यह संभव भी नहीं था क्योंकि अब तक ओलंपिक में भाग लेने वाले लगभग आधे खिलाड़ियों का फैसला भी नहीं हो सका था। महामारी के चलते तमाम खेलों की क्वालीफाइंग स्पर्धाएं भी आयोजित नहीं की जा सकी थीं। इतना ही नहीं, पहले कनाडा ने ओलंपिक खेलों में भाग नहीं लेने की घोषणा कर दी थी, फिर आस्ट्रेलिया ने भी ऐसी घोषणा कर दी। जाहिर-सी बात है कि जब ओलंपिक में वर्चस्व बनाये रखने वाले अमेरिकी, चीन, इटली व फ्रांस जैसे देश ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तो खेलों में इनकी भागीदारी कैसे संभव हो पाती। वहीं दूसरी ओर दुनिया के चोटी के खिलाड़ी भी इंटरनेशल ओलंपिक कमेटी से खेलों को स्थगित करने के लिए दबाव बना रहे थे।

तमाम खिलाड़ियों का कहना था कि ओलंपिक के लिए मैदानों में अभ्यास के लिए उतरकर हम स्वयं, परिवार, समाज व देश को खतरे में कैसे डाल सकते हैं। वैसे भी खेल उद्दात मानवीय गुणों का प्रदर्शन है, जिसका आयोजन तभी अच्छा लगता है जब हर तरफ सुख-शांति की सामान्य स्थितियां हों। कोरोना का विकराल दंश इतना घातक है कि जापान में आयोजन समिति के उप-प्रमुख तक कोरोना वायरस की चपेट में आ गये हैं। इस बात का अहसास जापान को भी था और आईओसी को भी। बस वे इस कोशिश में थे कि पहल कौन करे। आयोजन की तैयारियों में बड़ी रकम लगी है। जापान यदि खुद पहल करता तो संभव था कि कल वह कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने के आरोप में अरबों डॉलर के मुआवजा देने को बाध्य होता जबकि आईओसी ऐसा कर सकती है। आखिरकार अब आईओसी के अध्यक्ष थॉमस बाक और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे की बीच हुई बातचीत के बाद ओलंपिक खेल एक साल के लिए टाले जाने पर सहमति बन गई।
नि:संदेह इस साल 24 जुलाई से नौ अगस्त तक होने वाले ओलंपिक खेलों का एक साल तक के लिए टलना ऐतिहासिक फैसला है। ऐसा पहली बार ही हुआ है। हालांकि, विश्वयुद्ध के चलते ओलंपिक खेल कई बार रद्द हो चुके हैं। यह अच्छी बात है कि खेल एक साल बाद होंगे, जिससे खिलाड़ियों का मनोबल नहीं टूटेगा। खेलों का रद्द होना खिलाड़ियों के लिए किसी वज्रपात से कम नहीं होता। तमाम खिलाड़ी चार साल ही अपनी स्पर्धाओं की तैयारी में जुटे होते हैं। कुछ अपना पूरा जीवन इन खेलों की तैयारी के लिए लगा देते हैं। लाखों खिलाड़ियों का सपना होता है कि वे ओलंपिक खेलों में भाग लें और पदक जीतें।

कई खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो प्रतियोगिता में भाग लेने की उम्र व क्षमता की दहलीज पर होते हैं, ऐसे में खेलों का रद्द होना उनके सपनों का ध्वस्त होना होता है। यह जापान के लिए भी सदमा होता यदि खेल रद्द होते। अनुमान है कि यदि खेल रद्द होेते तो जापान को 416 अरब रुपये का नुकसान होता। साथ ही 203 देशों के ग्यारह सौ एथलीटों के सपने भी टूटते। निश्चित रूप से पूरी दुनिया में कोरोना का जैसा खौफ है, खिलाड़ी तैयारी नहीं कर पा रहे थे। अब भारतीय व अन्य देशों के खिलाड़ियों को तैयारी के लिए पर्याप्त समय मिल जायेगा। वैसे खेलों के स्थगित होने से उन लाखों लोगों का नुकसान तो होगा जिन्होंने जापान में होटल बुक कराये थे। आईओसी ने कहा है कि उनके पैसे वापस नहीं मिलेंगे। नि:संदेह दुनिया इस समय एक असाधारण समस्या से जूझ रही है, जिसके चलते असाधारण समाधान भी जरूरी था। वैसे भी यदि ओलंपिक खेलों का आयोजन होता भी तो यह कोरोना के विस्तार का बेहद संवेदनशील क्षेत्र बन जाता। वर्तमान हालात में यह कहना कठिन है कि यह प्रकोप कब तक थमेगा। ऐसे में दुनिया की उत्कृष्ट खेल प्रतिभाओं का जीवन खतरे में डालना किसी भी नजरिये से अक्लमंदी का कार्य नहीं कहा जा सकता था।

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