साइकिलिंग की सनसनी डिबोरा

भारतीय महिलाओं को आज बेशक अपने अधिकारों के लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ रही हो पर उन्होंने अपने पराक्रम से उस मुकाम को छुआ है जिसे कभी असम्भव करार दिया गया था। वैसे तो भारतीय महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी की दस्तक दी है पर खेलों के क्षेत्र में इनका अलग ही जलवा है। आज साइकिलिंग के क्षेत्र में डिबोरा एक सनसनी के रूप में देखी जा रही है। डिबोरा एक किशोर लड़की है। यह चंचल है, लेकिन साथ ही अपने में सीमित रहना इसकी विशेष खूबी है। इस किशोरी के हाथ में साइकिल आते ही चमत्कार हो जाता है। डिबोरा एक ऐसी शख्सियत है जो बिना किसी डर के तमाम विपरीत स्थितियों को चुनौती देने व उन पर विजय पाने की दृढ़ता रखती है।
आपके मन में डिबोरा कौन है की बात गूंज रही होगी। आज देश क्रिकेट के मोहपाश में इस कदर जकड़ा है कि खेल के अन्य सितारों की तरफ उसकी नजर जाती ही नहीं है। हाल ही भारत में हुई जूनियर एशियन ट्रैक रेस साइकिलिंग चैम्पियनशिप में डिबोरा की वजह से ही देश को रिकार्ड एक रजत व दो कांस्य पदक में हासिल हुए। जानकर ताज्जुब होगा कि डिबोरा की यह पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता थी जो उसके राष्ट्रीय कैम्प (नई दिल्ली) में पहली बार हिस्सेदारी के फौरन बाद आयोजित की गई थी। अपने छोटे से जीवन में मात्र 18 वर्ष की डिबोरा, जिनका सम्बन्ध अण्डमान निकोबार से है, ने जबरदस्त विपरीत स्थितियों का सामना किया है। लगभग नौ वर्ष पहले तक डिबोरा के मन में साइकिलिंग करने का विचार तक नहीं था, लेकिन जब अंडमान व निकोबार द्वीपों में 2004 में भयंकर सूनामी आई तो उनका जीवन ही बदल गया। वह बताती है कि भूकंप के बाद जब सूनामी आई तो मेरी मां चर्च में प्रार्थना के लिए गई हुई थी और मैं अपने पिता, भाई व बहन के साथ घर पर ही थी। हमारी समझ में उस समय कुछ नहीं आया कि क्या हो रहा है। चूंकि हर कोई जंगल की ओर भाग रहा था तो हमने भी वैसा ही किया। पहले पांच दिन तक हम जंगल में ही रहे। तरह-तरह की परेशानियों के बाद ही राहत व बचाव दल आया। यह डिबोरा के जीवन का सबसे कठिन समय था। इसको याद करते हुए उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ जाती है। बहरहाल, यह त्रासदी उसके लिए वरदान बनकर आई। डिबोरा बताती है कि मेरी दिलचस्पी साइकिलिंग में नहीं थी। मैं एथलेटिक्स में हिस्सा लिया करती थी, खासकर लम्बी कूद में। स्कूल व राष्ट्रीय स्तर पर मेरी यही दिलचस्पी थी। साइकिलिंग में मेरा प्रवेश अचानक ही हो गया। अंडमान में एक साइकिलिंग प्रतियोगिता हुई थी, जिसमें मैंने अकारण ही हिस्सा ले लिया, लेकिन मुझको पदक मिल गया। मेरे इस प्रदर्शन से अंडमान साई केन्द्र के कोच इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने मुझसे इस खेल को अपनाने व केन्द्र में ट्रेनिंग लेने के लिए कहा।
डिबोरा के पिता की भारतीय वायुसेना में मामूली सी नौकरी है। वह निकोबार एयरबेस के बाहर तैनात हैं। अपने तीन भाई- बहनों में सबसे बड़ी डिबोरा जब अंडमान आ गई तो उसे अपने परिवार के साथ समय व्यतीत करने का कम समय मिलने लगा। वह कहती है कि अंडमान व निकोबार के बीच आना-जाना आसान नहीं है। मैं अपना ज्यादातर समय अंडमान साई केन्द्र में गुजारती हूं और केवल दो सप्ताह के लिए क्रिसमस पर घर जाती हूं। इस साल जनवरी में अमृतसर में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता में डिबोरा ने अपना पहला ट्रैक स्वर्ण पदक जीता और इस तरह वह चर्चा में आई। पिछले साल उसने जूनियर राष्ट्रीय साइकिलिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था और सीनियर श्रेणी में रजत पदक से अपना गला सजाया। शुरूआत में डिबोरा के लिए अपने परिवार से दूर रहकर जीवन गुजारना कठिन था। उसे हरदम घर की याद सताती रहती थी, लेकिन पिछले साल से अंडमान की कुछ लड़कियां उसकी दोस्त बन गर्इं। पिछले साल अगस्त से अब तक दिल्ली में ट्रेनिंग करने के बाद डिबोरा को छुट्टियां मिली हैं। वह अपने परिवार से मिलने के लिए घर गई है। उसका परिवार जूनियर एशियन साइकिलिंग चैम्पियनशिप में डिबोरा की कामयाबी से बहुत प्रसन्न है, जहां उन्होंने जूनियर स्प्रिंट, टीम स्प्रिंट व कीरिन श्रेणी में पदक हासिल किए।
डिबोरा की दृढ़ता व इच्छाशक्ति से उसके सीनियर भी उससे प्रभावित हैं। उनकी टीम मेट व साथी रजत पदक विजेता टी. मनोरमा देवी का कहना है कि डिबोरा में टीम के सीनियर लड़कों से भी ज्यादा स्टैमिना है। डिबोरा तो ट्रैक प्रतिस्पर्धा के बाद रोड रेस में भी हिस्सा लेना चाहती थी लेकिन कोच नहीं चाहते थे कि वह अपने शरीर पर अधिक दबाव डाले। वह रोड रेस का अनुभव करना चाहती थी। डिबोरा के प्रदर्शन से साइकिलिंग फेडरेशन आॅफ इंडिया इतना प्रभावित हुआ है कि वह अब उनकी तैयारी 2016 के रियो ओलम्पिक को ध्यान में रखते हुए कराना चाहता है। फेडरेशन ने सरकार से कहा है कि डिबोरा व कुछ अन्य जूनियर खिलाड़ियों को ट्रेनिंग के लिए स्विट्जरलैंड की यूसीआई एकेडमी भेजा जाए। इसमें प्रतिमाह लगभग 4000 स्विस फ्रैंक्स का खर्च आएगा। अब इस बारे में खेल मंत्रालय व साई को फैसला लेना है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि निकट भविष्य में डिबोरा भारतीय साइकिलिंग का चेहरा होगी। अगर उसे उचित अवसर मिले तो डिबोरा साइकिलिंग में वही कारनामा कर सकती है जो साइना नेहवाल बैडमिंटन में कर रही है। एशियन साइकिलिंग चैम्पियनशिप के मुख्य प्रायोजक हीरो ने डिबोरा को अपनी पसंद की साइकिल चयन करने का आॅफर दिया है। हीरो डिबोरा की जरूरत के अनुसार साइकिल बनाने के लिए तैयार है।

भारत के पूर्व विदेशी कोच आस्ट्रेलिया के ग्राहम सीर्स को खुशी है कि 2010 के दिल्ली राष्ट्रकुल खेलों के बाद से भारतीय जूनियर खिलाड़ी अच्छी प्रगति कर रहे हैं। उनके अनुसार एशियन चैम्पियनशिप ने साबित कर दिया है कि भारतीय जूनियरों में सफल होने की स्वाभाविक प्रतिभा है, बशर्ते कि फेडरेशन उनका समर्थन करे और अपनी आपसी लड़ाई को छोड़े। राष्ट्रकुल खेलों से पहले साइकिलिस्ट के लिए कोई विशेष राष्ट्रीय प्रतियोगिता नहीं होती थी। मलेशिया में 6-7 अलग-अलग राष्ट्रीय प्रतियागिताएं होती हैं व अंतरराष्ट्रीय मुकाबले भी होते हैं। भारत में भी ऐसा ही होना चाहिए। सच कहें तो डिबोरा को सही गाइडेंस की जरूरत है।

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