डॉ. अशोक लेंका के फौलादी प्रदर्शन से तमिलनाडु गौरवान्वित

राष्ट्रीय सीनियर ताइक्वांडो स्पर्धाः सेलम में गोल्ड तथा नासिक में जीता कांस्य पदक

खेलपथ संवाद

चेन्नई। कहते हैं कि यदि इंसान में कुछ कर गुजरने का जोश, जज्बा और जुनून हो तो वह बड़े से बड़ा लक्ष्य हासिल कर सकता है। ताइक्वांडो की नायाब शख्सियत डॉ. अशोक लेंका ने हाल ही में आयोजित दो राष्ट्रीय सीनियर ताइक्वांडो स्पर्धाओं में अपने फौलादी प्रदर्शन से समूचे तमिलनाडु का गौरव बढ़ाया है। डॉ. लेंका ने सेलम (तमिलनाडु) में गोल्ड तथा नासिक (महाराष्ट्र) में कांस्य पदक जीता।

डॉ. अशोक लेंका ने सेलम में हुई में हुई राष्ट्रीय सीनियर ताइक्वांडो प्रतियोगिता के अण्डर-60 आयु वर्ग की ताइक्वांडो पूमसे की व्यक्तिगत पुरुष स्पर्धा के फाइनल में सिपजिन और जिते का शानदार प्रदर्शन करते हुए जहां स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया वहीं नासिक में हुई सीनियर चैम्पियन आफ चैम्पियंस स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर अपने कौशल और दमखम का जलवा दिखाया। 56 साल के डॉ. अशोक लेंका के शानदार-जानदार प्रदर्शन को जिसने भी देखा, उसने उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा की। अपनी इस सफलता पर डॉ. अशोक लेंका का कहना है कि मैं जीते गए पदकों से नहीं बल्कि इस उम्र में चुनौतियों से मुकाबला करने को लेकर खुश हूं।

डॉ. लेंका का कहना है कि बढ़ती उम्र में शरीर में कई तरह के विकार पैदा हो जाते हैं। मसलन शारीरिक ऊर्जा में कमी आ जाती है तो याददाश्त घट जाती, रक्तचाप को बढ़ाने, शर्करा को कम करने के खिलाफ काम करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन मैं अपने शरीर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन लेने के लिए आंतरिक शरीर विज्ञान और मन समन्वय की सभी प्रतिकूलताओं से बाहर आने की लगातार कोशिश करता रहता हूं। डॉ. लेंका का कहना है कि प्रतिस्पर्धा का मतलब सिर्फ जीतना नहीं बल्कि सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद को हार स्वीकार करने के लिए तैयार करना है। सबसे बड़ी जीत इस उम्र में खुद को उम्र संबंधी सभी पीड़ाओं के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए तैयार करना है।

डॉ. लेंका कहते हैं कि इस उम्र में यह पदक नहीं बल्कि स्वयं पर विजय है। जैसा कि मैंने ऊपर कहा, पदकों को कई विफलताओं का सामना करना पड़ता है। बाहरी तौर पर सिस्टम की विफलता भी एक कारण होती है। लेकिन स्वयं पर विजय पाना अद्भुत है। भावी पीढ़ी को मेरा यही संदेश है कि अपने तन से बेशक हार जाएं लेकिम मन से कभी हार स्वीकार न करें। डॉ. लेंका बताते हैं कि मैं बचपन से लेकर अब तक खेलों से जुड़ा रहा हूं।

मैंने आईएएफ लेवल तक दो साल तक एथलेटिक्स, इंटर क्लब लेवल पर क्रिकेट खेली, फुटबॉल, बास्केटबॉल की कप्तानी की। यहां तक ​​कि इंटर विंग लेवल तक कुछ हॉकी भी खेली। ऊंचाई पर ट्रैकिंग, जंगल अभियान, ऊंचाई वाली चोटियों पर चढ़ना, हिमालय में गूढ़ मार्शल आर्ट का प्रदर्शन जैसे कई साहसिक कार्य किए, लेकिन मैंने अपने जीवन के लिए ताइक्वांडो/मार्शल आर्ट को ही चुना क्योंकि मैं अपनी आखिरी सांस तक इस खेल की बेहतरी के लिए जीना चाहता हूं। डॉ. लेंका कहते हैं कि दूसरों को भारत के लिए खेलने और जीतने की सलाह देना आसान है लेकिन खुद को इसके लिए तैयार करना बड़े जिगर का काम है। आशा है कि मैं और अधिक तैयारी करूंगा तथा जल्द ही अपनी कमियों से बाहर आऊंगा।

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