'काश पिता जिंदा रहते तो मुझे देश के लिए खेलते देख पाते'

खेलपथ प्रतिनिधि
लखनऊ।
नौ साल पहले अपने पिता के निधन के बाद हॉकी को लगभग अलविदा कह चुके भारत के आक्रामक मिडफील्डर राजकुमार पाल ने कहा है कि वह ओलंपिक जाने वाली भारतीय टीम में जगह बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश कर्णपुर (गाजीपुर) के 21 वर्षीय खिलाड़ी ने फरवरी में भुवनेश्वर एफआईएच हॉकी प्रो लीग में विश्व चैंपियन बेल्जियम के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा, 'मैं 2010 में साई खेल हॉस्टल से जुड़ा लेकिन 2011 में पिता का निधन हो गया। मुझे खेल छोड़ना पड़ा क्योंकि मेरी मां अकेली थी।

मेरे भाई भी घर से दूर थे। पिता को खोने का गम और पारिवारिक दिक्कतों के कारण मैंने हॉकी लगभग छोड़ ही दी थी। लेकिन मां के कहने पर मैं 2012 में फिर साई खेल हॉस्टल गया। अब मेरा लक्ष्य टीम के लिए शत प्रतिशत देना और ओलंपिक टीम में जगह बनाना है। बेल्जियम जैसी विश्व चैंपियन टीम के खिलाफ पहला मैच खेलना मेरे लिए बड़ा पल था। मैं अपेक्षाओं पर खरा उतरना चाहता था।'

काश पिता जीते मुझे देश के लिए खेलते देख पाते:
मेरी यह तमन्ना थी कि पिता जी मुझे देश के लिए खेलते हुए देख पाते क्योंकि मेरे हॉकी खेलने का संबल वही थे। उनके हौसला बढ़ाने वाले शब्द बराबर आज भी मेरी ताकत हैं।
भाइयों को देखकर थामी स्टिक:
पाल को हॉकी विरासत में मिली है। उनके दोनों बड़े भाई जोखन पाल (सेना) और राजू पाल (दक्षिण रेलवे) के लिए हॉकी खेलते हैं। इन दोनों को हॉकी खेलते देखकर ही उन्होंने स्टिक थामी। उन्होंने कहा कि मेरा मेरा फोकस उस्ताद रीड ने मुझे जो रोल दिया है उस पर खरा उतरने पर है।
ललित की सलाह आई काम:
भारतीय सीनियर टीम में पहली बार जगह बनाने के बाद शुरू में जरूर प्रशिक्षण की तकनीक और उससे कदमताल करने में कुछ दबाव महसूस किया। सीनियर टीम की हॉकी हमारी उस हॉकी से बहुत अलग थी जो हम घर पर खेलते थे। ललित (उपाध्याय) भाई भी उत्तर प्रदेश के ही हैं और उन्होंने मुझे दबाव न महसूस कर सहज हॉकी खेलने की ताकीद की। उनकी यही सलाह मेरे बहुत काम आई। मैं अपने खेल को कप्तान मनप्रीत सिंह की तरह ढालना चाहता हूं। मैं अपनी स्पीड के साथ सही पॉजिशन रहने पर ध्यान लगा रहा हूं। मैं भारत के लिए पूरी शिद्दत से हर मौके को भुनाने को बेताब हूं।

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