अंतरराष्ट्रीय खेल क्षितिज पर चमक रहा मथुरा का नाम

मथुरा के लाल डॉक्टर सोनू शर्मा के खेल टार्गेटबॉल को मिली विशिष्ट पहचान

खेलपथ संवाद

मथुरा। मथुरा की पावन नगरी लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली के रूप में दुनिया भर में ख्यातिलब्ध तो पहले से ही है। अब इस नगरी को खेल के क्षेत्र में नई पहचान दे रहे हैं डॉक्टर सोनू शर्मा। डॉ. शर्मा द्वारा ईजाद टार्गेटबॉल खेल अब दुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना रहा है। इस खेल को लोग न केवल पसंद कर रहे हैं बल्कि इसमें हाथ भी आजमा रहे हैं।  

जी हां मथुरा के लाल गौंठोली गाँव में जन्मे किशन चंद शर्मा के सुपुत्र डॉ. सोनू शर्मा ने एक बार फिर से मथुरा का नाम रोशन किया। जैसा कि आपको ज्ञात है डॉ. सोनू शर्मा ने 2012 में टार्गेटबॉल खेल ईजाद किया था। डॉ. सोनू शर्मा ने टार्गेटबॉल खेल की आधारशिला मथुरा के ही श्री जी बाबा स्कूल में रखी थी। शुरुआत में इस खेल को चलाने व विकसित करने में काफी परेशानियां भी आईं लेकिन अपने इरादे के मजबूत डॉ. सोनू शर्मा ने हार मानने की बजाय इस खेल को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने की न केवल ठानी बल्कि इसे मुकम्मल स्थान दिलाकर ही दम लिया।

अब यह खेल मथुरा ही नहीं समूचे देश यहां तक कि विदेशों में भी अपनी पहचान बना चुका है। टार्गेटबॉल खेल की प्रतियोगिताएं देश से बाहर आयोजित किया जाना इस खेल की लोकप्रियता का ही नायाब उदाहरण है। यह उपलब्धि सिर्फ डॉ. सोनू शर्मा की ही नहीं समूचे ब्रजवासियों के लिए गर्व और गौरव की अनुभूति है। यह खेल जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा मथुरा का नाम हर जुबां पर होगा। 

टार्गेटबॉल खेल पूर्णतः भारतीय खेल है। इसकी शुरुआत डॉ. सोनू शर्मा ने 2012 में की थी। इस खेल में 12 खिलाड़ी होते हैं। जिनमें से छह खिलाड़ी खेलते हैं तथा छह खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं। यह खेल 20-05-20 के समय में खेला जाता है। इस खेल के मैदान की लम्बाई-चौड़ाई 30 मीटर व 20 मीटर होती है। इस खेल में चार टारगेटबॉल गोल पोस्ट होते हैं। इस खेल को रुचिकर बनाने के लिए एक डायमंड खिलाड़ी भी होता है। टारगेटबॉल खेल को 2016 में स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया तथा  विद्या भारती स्कूल से जुड़ने का मौका मिला। 2017 में इस खेल को ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी खेलों से मान्यता मिली। तब से यह खेल प्रतिवर्ष खेला जा रहा है।

यह खेल भारत के 22 राज्यों में अपनी पहचान बना चुका है। भारत के अलावा यह खेल नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, मॉरीशस, थाईलैंड, मॉरिसियस, गॉयस्लाविया, बास्को इत्यादि देशों में खेला जाना समूचे ब्रज मण्डल और उत्तर प्रदेश के लिए गौरव की बात है। डॉ. सोनू शर्मा के प्रयासों से अब तक टार्गेटबॉल खेल की 50 से अधिक राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं तथा 10 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं हो चुकी हैं। समय-समय पर इस खेल के नियमों में डॉ. सोनू शर्मा बदलाव करते रहे हैं ताकि यह खेल और रुचिकर बन सके। टार्गेटबॉल खेल दिनोंदिन भारत और इससे बाहर अपनी विशिष्ट पहचान बना रहा है।

डॉ. शर्मा की बात करें तो यह मथुरा जनपद के गौंठोली गाँव में जन्मे। इनके पिता किशन चंद शर्मा जल निगम से सेवानिवृत्त हैं। सोनू शर्मा के शैक्षिक जीवन की शुरुआत गोवर्धन के मोरारी कुंजी विद्यालय से हुई। तत्पश्चात इन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई श्री जी बाबा स्कूल मथुरा से डॉ. अजय शर्मा के मार्गदर्शन में की। कॉलेज की पढ़ाई के लिए इन्होंने ग्वालियर में रहकर एलएनआईपीई से 2010 में बीपीएड किया उसके बाद एमपीएड इन्होंने इन्दौर की अहिल्या बाई यूनिवर्सिटी से 2012 में किया। इसके बाद इन्होंने एमफिल व पीएचडी की डिग्री स्वामी विवेकानंद यूनिवर्सिटी सागर मध्य प्रदेश से 2015 व 2021 में प्राप्त की। इन्होंने नेट की परीक्षा भी 2013 में पास की।

डॉ. सोनू शर्मा इस खेल की सफलता का श्रेय अपने परिजनों को देते हैं जिन्होंने उनकी इच्छाशक्ति को कभी कमजोर नहीं होने दिया। सोनू शर्मा इस खेल के फाउंडर होने के साथ-साथ साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस खेल के अध्यक्ष पद पर भी आसीन हैं। सोनू शर्मा मथुरा ही नहीं हर उस देश में अपनी पहचान रखते हैं जहां टार्गेटबॉल खेल खेला जाता है। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि जिस ब्रज के लाल ने खेलों में एक नई पटकथा लिखी है, उसे  भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार यहां तक कि मथुरा के सांसद, विधायक आदि से भी कभी कोई सम्मान या शाबासी नहीं मिली। टार्गेटबॉल खेल ब्रज का एकमात्र ऐसा खेल है जोकि लगातार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है। जिस ब्रज के लाल को दुनिया सिर-आंखों बिठा रही है, उसे उसकी जन्मस्थली मथुरा में आखिर कब प्यार और दुलार मिलेगा?

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