अन्नूरानी गन्ने का भाला बनाकर करती थीं अभ्यास

चंदे से खरीदे थे जूते; अब चीन में जीता स्वर्ण
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारत की महिला भाला फेंक खिलाड़ी अन्नूरानी ने चीन के हांगझोऊ में कमाल कर दिया। उन्होंने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। अन्नू ने मंगलवार को भाला फेंक स्पर्धा में पहला स्थान हासिल किया। अपने चौथे प्रयास में सीजन का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए उन्होंने 62.92 मीटर भाला फेंका। श्रीलंका की नदीशा दिलहान ने रजत पदक जीता।
'जेवलिन क्वीन' के नाम से पहचानी जाने वाली अन्नू के संघर्ष की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। गांवों की पगडंडियों पर खेलते और गन्ने को भाला बनाकर प्रैक्टिस करने वाली अन्नू एक दिन ओलंपिक, राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा था। अपने संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने यह कर दिखाया।
अन्नू रानी तीन बहन व दो भाइयों में सबसे छोटी हैं। उनके सबसे बड़े भाई उपेंद्र कुमार भी 5,000 मीटर के धावक थे और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले चुके हैं। बड़े भाई के साथ अन्नू रानी ने भी खेल में रुचि दिखाई और सुबह चार बजे उठकर गांव में ही रास्तों पर दौड़ने जाया करती थीं। कई बार पिता ने अन्नू के खेल में दिलचस्पी नहीं दिखाई। अन्नू चोरी से अभ्यास करती थीं।
भाई ने किया त्याग, तो अन्नू ने बढ़ाया मान
अन्नू की खेल में रुचि बढ़ी, तो भाई उपेंद्र कुमार ने उन्हें गुरुकुल प्रभात आश्रम का रास्ता दिखाया। घर से करीब 20 किलोमीटर दूर होने के कारण अन्नू भाला फेंक का अभ्यास करने के लिए सप्ताह में तीन दिन गुरुकुल प्रभात आश्रम के मैदान में जाती थीं। अन्नू के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो खिलाड़ियों पर होने वाले खर्चे को वहन कर सके। इसे देखकर भाई उपेंद्र ने त्याग किया और बहन को आगे बढ़ाने में जुट गए।
उपेंद्र बताते हैं कि अन्नू के पास जूते नहीं थे, चंदे से इकट्ठा की गई रकम से उसके लिए जूते खरीदे। अन्नू ने अपना अभ्यास जारी रखा और जेवलिन थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया। अपने ही रिकॉर्ड तोड़कर वह नेशनल चैंपियन बन गईं। इसके बाद अन्नू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

 

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