क्या पहलवान बेटियों के आंसुओं से धुलेंगे खेलनहारों के पाप

खेल संगठनों में काबिज खेलनहारों के आचरण की समीक्षा जरूरी
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली।
हमारी सरकारें बेटियों को आगे बढ़ाने के नाम पर करोड़ों रुपये के वारे-न्यारे कर रही हैं लेकिन दरिंदों के हाथों बेटियां पीछे धकेली जा रही हैं। बेटियां रोती हैं, बिलखती हैं लेकिन उनकी पीड़ा कम होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। अब तक ऐसे सैकड़ों मामले हुकूमतों के संज्ञान में आ चुके हैं लेकिन सफेदपोशों का कहना है कि आरोप लगाने से कोई अपराधी नहीं हो जाता। यह सब उस राज्य में हुआ जहां की पहलवान बेटियां दिल्ली के जंतर-मंतर में तीन दिन रोईं और बिलखीं।
यह घटनाक्रम दुखद ही है कि दुनिया में पदक जीत कर तिरंगा लहराने वाली महिला पहलवान जंतर-मंतर पर लाचार होकर आंसू बहाएं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब हरियाणा में एक महिला एथलेटिक कोच ने खेल मंत्री पर यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगाये थे। यूं भी गाहे-बगाहे विभिन्न खेलों में अपने देश के सपने पूरे करने में लगी महिला खिलाड़ि‌यों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन कोई पारदर्शी व फुलप्रूफ तंत्र नहीं बना, जो प्रतिभाओं की सुरक्षा के लिये कारगर हो। 
कुश्ती संघ के मुखिया और भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह पर अंतरराष्ट्रीय पहलवान विनेश फोगाट, साक्षी मलिक, अंशु मलिक व बजरंग पूनिया आदि ने जो आरोप लगाये हैं, वे गंभीर प्रवृत्ति के हैं, जिनको गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष जांच करवायी जानी चाहिए। यह प्रकरण बताता है कि महिला खिलाड़ियों को बेहतर प्रदर्शन करने के अलावा किन-किन कठिन परिस्थितियों व दबावों में काम करना होता है, विरोध करने पर उन्हें अपना कैरियर दांव पर लगाना होता है। यह विडम्बना ही है कि खेल संघों के निरंकुश व्यवहार तथा महिला खिलाड़ियों के साथ यौन दुर्व्यवहार रोकने के लिये कारगर तंत्र नहीं बनाया गया। 
हरियाणा में भी महिला आयोग के प्रमुख की तो नियुक्ति हुई है लेकिन संस्था के अन्य सदस्यों का चयन नहीं हो सका है। महिलाओं से यौन दुर्व्यवहार की स्थिति इतनी भयावह है कि महिलाओं की सुरक्षा का जायजा लेने गई दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालिवाल खुद छेड़छाड़ का शिकार हो गईं। दिल्ली में एम्स के पास नशे में धुत एक व्यक्ति ने उनसे बदसलूकी ही नहीं की बल्कि 15 मीटर तक कार में घसीटा भी। यह स्थिति भयावह है। ऐसे में आम महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह गंभीर स्थिति है।
जंतर-मंतर पर इस रक्त जमाती सर्दी में धरने पर बैठी खिलाड़ि‌यों को देखकर स्वाभाविक सवाल उठता है कि देश में कोई तंत्र ऐसा नहीं है जो समय रहते पीड़िताओं की आवाज सुन सके? क्यों सरकार तब जागती है जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगता है। क्यों राजनेताओं को खेल संघों पर बैठाया जाता है? क्यों ब्रजभूषण शरण जैसे लोग खेल संगठनों में दशकों से काबिज है? नि:संदेह, कोई भी खेल संगठन हो, उसके कर्ता-धर्ताओं का श्रेष्ठ आचरण बुनियादी शर्त है। इन संगठनों पर वही लोग नियुक्त होने चाहिए, जो खेल और खिलाड़ियों के प्रति संवेदनशील हों। बेशक, सरकार ने कुश्ती फेडरेशन से जवाब मांगा है, लेकिन सरकार की पहल देर से हुई है। वहीं संस्था के अध्यक्ष ऐसे आरोपों से इनकार कर रहे हैं। 
बहरहाल, आरोपों की हकीकत को जांच के जरिये तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाना चाहिए। ऐसी पारदर्शी व्यवस्था स्थापित होनी चाहिए कि खेल संगठन कुछ लोगों की घेराबंदी का शिकार न हों। असली मुद्दा ये भी है कि यदि खेल संगठनों का यही आलम रहा तो लोग अपनी बेटियों के खेलों में भाग लेने से कतराएंगे। जैसा कि बेटियों को पहलवानी के लिये प्रेरित करने वाले बहुचर्चित पहलवान महावीर फोगाट ने भी कहा है कि यदि ऐसी ही स्थितियां रहीं तो मां-बाप अपनी बेटियों को खेलों से दूर रखेंगे। 
वैसे इस प्रकरण में हरिणाणा की खाप-पंचायतों की पहल सकारात्मक रही है और उन्होंने बेटियों को संरक्षण और दाेषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता की बात कही है। नि:संदेह यह घटनाक्रम दुःख और चिंता का विषय है। देश में सुनिश्चित होना चाहिए कि खांटी राजनेता खेल संघों पर काबिज न हो सकें। अब इस प्रकरण का न्यायपूर्ण पटाक्षेप हो सके, सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए। आरोपी कितना भी ताकतवर क्यों न हो, सख्त सजा का हकदार हो। इस मामले को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर देश-दुनिया की नजर है।
 

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