वेल्स टीम चंदा जुटाकर वर्ल्ड कप खेलने भारत आई

कोई साइंटिस्ट तो कोई टीचर
पार्टटाइम हॉकी खेलकर पहली बार वर्ल्ड कप पहुंचे
खेलपथ संवाद
भुवनेश्वर।
हॉकी वर्ल्ड कप में आज भारत का सामना वेल्स से होगा। भारतीय टीम 2 मैचों से 4 पॉइंट लेकर क्वार्टर फाइनल में पहुंचने की होड़ में कायम है। वहीं, वेल्स की टीम इससे पहले लगातार दो मैच हारकर नॉकआउट की रेस से बाहर होने के करीब है। इसके बावजूद वेल्स का इस टूर्नामेंट के लिए क्वालीफाई करना ही अपने आप में एक बड़ी सफल कहानी बन गई है।
कारण यह है कि वेल्स की टीम ज्यादातर उन खिलाड़ियों से मिलकर बनी है जिनके लिए हॉकी खेलना जीवन चलाने का उपाय नहीं है। इस टीम में कोई साइंटिस्ट है तो कोई इंजीनियर। कुछ स्कूल टीचर्स भी टीम का हिस्सा हैं यानी ज्यादातर खिलाड़ी जॉब करते हैं और पार्टटाइम हॉकी खेलते हैं। इन सबने अपने जुनून और हुनर से टीम को वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई तो करा दिया था लेकिन भारत आने के लिए टीम के पास पैसे नहीं थे। इन्होंने अपने पैसे मिलाकर और चंदा जुटाकर वेल्स से भुवनेश्वर तक का सफर तय किया है। 
वेल्स की हॉकी टीम को न तो वहां की सरकार से खास सपोर्ट हासिल है और न ही कॉरपोरेट जगत से। खेल का खर्च पूरा करने के लिए टीम के सभी खिलाड़ी हर साल 1-1 हजार पाउंड (करीब 1-1 लाख रुपए) कंट्रीब्यूट करते हैं। इससे हॉकी स्टिक, बॉल, अन्य इक्विपमेंट के खर्चे निकल आते हैं। कुछ समय पहले तक टीम वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप-30 से बाहर थी। लेकिन, अब यह टॉप-15 में है। लगातार बेहतर होते खेल की बदौलत इन्होंने इतिहास में पहली बार वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई कर लिया। हालांकि, यहां से नई समस्या शुरू हो गई। वर्ल्ड कप के लिए क्वालीफाई तो कर लिया लेकिन भारत आते कैसे? टीम के पास इतने पैसे नहीं थे कि भारत यात्रा का खर्च निकाला जा सके।
वेल्स की टीम ने अपने देश के लोगों से मदद की अपील की। क्राउड फंडिंग के जरिए चंदा जुटाकर भारत आने का फैसला किया गया। टारगेट रखा गया कि 25,000 पाउंड (करीब 25 लाख रुपए) जुटाए जाएं। हालांकि, कलेक्शन टारगेट से बहुत कम हुआ। टीम को क्राउड फंडिंग से 5 लाख रुपए ही मिले। फिर सभी खिलाड़ियों ने अपनी जेब से और पैसे मिलाए और वर्ल्ड कप में खेलने का सपना साकार किया।
प्रैक्टिस के लिए सैलरी भी कटवाते हैं
वेल्स हॉकी टीम के कप्तान रुपर्ट शिपर्ले ने बताया कि उनकी टीम में एक बायो साइंटिस्ट और एक इंजीनियर भी है। तीन खिलाड़ी स्कूल में पढ़ाने का काम काम करते हैं। एक खिलाड़ी जिम ट्रेनर है और एक खिलाड़ी न्यूट्रीशनिस्ट का काम करता है। इन प्लेयर्स के लिए डेली प्रैक्टिस करना मुश्किल होता है। ये सोमवार से शुक्रवार अपने-अपने जॉब में लगे रहते हैं। शनिवार और रविवार को वेल्स की राजधानी कार्डिफ में जुटते हैं और हॉकी की प्रैक्टिस करते हैं। किसी बड़े टूर्नामेंट से पहले अच्छे अभ्यास के लिए इन्हें दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़ती है। इसके लिए कई बार सैलरी भी कटवानी पड़ती है।
टीम के एक खिलाड़ी लंदन के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल में क्लीनिकल वैस्कुलर साइंटिस्ट के रूप में काम करते हैं। उन्होंने बताया कि सप्ताह में करीब 45 घंटे ड्यूटी करने के बाद वे दो दिन प्रैक्टिस के लिए भी निकालते हैं। देश में भी यह खेल बहुत फेमस नहीं है। इस कारण ड्यूटी के बाद प्रैक्टिस करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
देश में एक ही ग्राउंड, वहां बस 400 दर्शकों की जगह
वेल्स टीम के कोच ने कहा कि उनके यहां हॉकी को लेकर ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं। कार्डिफ में एक ही ग्राउंड है, जहां ज्यादा से ज्यादा 400 लोग मैच देख सकते हैं। ज्यादातर खिलाड़ी शौक के लिए ही हॉकी खेलते हैं। पिछले 6-7 सालों से एक ग्रुप लगातार हॉकी खेल रहा है। हर शुक्रवार और शनिवार को कार्डिफ में जुट कर प्रैक्टिस करने आते हैं। सोमवार को सभी काम पर लौट जाते हैं।
टीम में तीन खिलाड़ी प्रोफेशनल
वर्ल्ड कप क्वालीफाइंग या यूरोपियन टूर्नामेट में ब्रिटेन में शामिल सभी हिस्से इंग्लैंड, वेल्स, स्कॉटलैंड और नॉदर्न आयरलैंड अलग-अलग खेलते हैं। ओलम्पिक में ब्रिटेन की एक टीम बनती है। मौजूदा वेल्स टीम के तीन खिलाड़ी ब्रिटेन टीम का भी हिस्सा हैं। ये प्रोफेशनल हॉकी प्लेयर हैं। इन तीन खिलाड़ियों में एक टॉबी रेनॉल्ड्स ने बताया कि हॉकी उनका फुल टाइम काम है। ब्रिटेन की हॉकी टीम में 35 प्लेयर्स हैं। 31 इंग्लैंड, 3 वेल्स से और एक प्लेयर आयरलैंड से भी है। इंग्लिश और आयरिश प्लेयर्स के साथ हॉकी खेलने पर सीखने को बहुत कुछ मिलता है और इससे गेम भी इम्प्रूव होता है। ब्रिटेन में खेलकर वे जो कुछ सीखते हैं उसे वेल्स टीम के अन्य खिलाड़ियों के साथ साझा करते हैं।
115 साल पहले ओलम्पिक मेडल जीत चुका है वेल्स
वेल्स की टीम भले ही वर्ल्ड कप में पहली बार खेल रही हो, ओलम्पिक में उसे पहले अलग देश के तौर पर भागीदारी का मौका मिल चुका है। वेल्स ने 1908 ओलम्पिक का ब्रॉन्ज मेडल जीता था। इस जीत के बाद से टीम का खराब दौर शुरू हो गया। टीम ओलम्पिक में ग्रेट ब्रिटेन का हिस्सा बन गई। कॉमनवेल्थ गेम्स में वह जरूर भाग लेती है लेकिन अब तक कोई मेडल नहीं जीत सकी है।

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