मल्लखम्ब में हिन्दुस्तान का शौर्यजीत

सबसे कम उम्र में राष्ट्रीय खेलों में जीता मेडल
खेलपथ संवाद
नई दिल्‍ली।
प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती। 11 साल के शौर्यजीत ने राष्ट्रीय खेलों में मल्लखम्ब जैसी बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर इसे चरितार्थ कर दिखाया। पिता को खोने के बाद भी इस छोटे हुनरबाज ने उनके सपने को मरने नहीं दिया। शौर्यजीत के पिता का सपना था कि उनका बेटा मल्लखम्ब में राष्ट्र का गौरव बढ़ाए।
शायद पिता ने बहुत सोचकर ही उसका नाम शौर्यजीत रखा होगा। बेटे ने भी उनका मान रखने में कोई कोताही नहीं बरती। पिता को खोने के बाद उसने हिम्मत नहीं हारकर ‘शौर्य’ का परिचय दिया और मल्लखम्ब में कांस्य पदक लेकर ऐतिहासिक ‘जीत’ दर्ज की। मल्लखम्ब एक ऐसा खेल है जिसमें संतुलन, अनुशासन और नियमित अभ्यास की जरूरत होती है। शौर्यजीत ने जब ठीक से अपने पैरों पर खड़े होना सीखा, उसी समय से उनके पिता रंजीत खईरे ने तय कर लिया था कि यह तीनों ही चीजें वह शौर्यजीत को सिखाएंगे।
यही वजह रही है कि जब वह चार साल का हुआ तो वह उसे लेकर मल्लखम्ब के अखाड़े में पहुंच गए। वह कई दिनों तक शौर्यजीत को अपने साथ लेकर जाते और अखाड़े के बाहर बैठकर खिलाड़ियों को अभ्यास करते देखते रहते। फिर एक दिन वह शौर्यजीत को लेकर कोच जीत सपकाल के पास पहुंचे और शौर्यजीत का हाथ उनके हाथों में थमा दिया। तब से लेकर अब तक शौर्यजीत उनका हाथ पकड़कर ही आगे बढ़ रहा है।
मूलत: बरोदरा के रहने वाले शौर्यजीत के पिता रंजीत केबल का कारोबार करते थे। उन्हें ब्लड कैंसर हो गया था। सामान्य परिवार से होने के बावजूद उनका इस खेल के प्रति बहुत लगाव था। कोच सपकाल बार-बार यही कहते थे शौर्यजीत में गजब की प्रतिभा है। वह चैम्पियन बन सकता है। आप उसे तैयार कीजिए। पिछले महीने जब उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया तो वह वहां से भी यह जानकारी ले रहे थे कि नेशनल गेम्स के लिए शौर्य की तैयारी कैसी चल रही है?
30 सितम्बर को जब उनका देहांत हो गया तो लोगों को लगा कि अब शौर्य नेशनल गेम्स में भाग नहीं ले पाएगा, मगर शौर्यजीत ने हिम्मत दिखाई। उसने मां से कहा कि पिता को तो खो दिया लेकिन अब उनके सपनों को खोना नहीं चाहता। पिता की चिता को अग्नि देने के बाद वह नेशनल गेम्स में भाग लेने पहुंचा। इकलौता बेटा होने की वजह से खेल के बीच से ही उसे एक दिन के लिए श्राद्ध में भाग लेने जाना पड़ा। दूसरे ही दिन वापस आकर उसने मैच में भाग लिया और कांस्य पदक जीता। यह उपलब्धि इसलिए भी बड़ी है क्योंकि स्पर्धा में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी उससे उम्र और अनुभव में बड़े थे। शौर्यजीत कहते हैं वह विश्व चैम्पियन बनना चाहते हैं और देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना चाहते हैं। अफसोस यह खेल सिर्फ भारत में ही लोकप्रिय है।
क्या है मल्लखम्ब
यह एक प्राचीन खेल है, जिसे पहली बार नेशनल गेम्स में शामिल किया गया। इससे पहले इसे एक बार और भी राष्ट्रीय खेलों में बतौर नुमाइश शामिल किया गया था। इस खेल में खिलाड़ी रस्सी के बंधे लकड़ी के खम्बे पर अपने स्टंट करता है। वह इस स्तम्भ पर योग, जिम्नास्टिक और कुश्ती की मुद्राएं करता है। इसका नाम दो शब्दों का मेल है। पहला शब्द मल्ल का अर्थ है पहलवान, दूसरा खम्ब यानी स्तम्भ। वर्ष 2013 में मध्य प्रदेश ने इस खेल को राज्य खेल का दर्जा दिया था।

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