लड़कों संग खेलकर शैफाली बनी बेजोड़ क्रिकेटर

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
जुनून सफलता की गारंटी है! भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्टॉर बल्लेबाज शैफाली वर्मा ने इसे सच साबित कर दिखाया है। क्रिकेट का इन्हें इतना जुनून था कि अकादमी में दाखिला लेने के लिए उन्होंने कई साल तक लड़कों के कपड़े पहने। लड़कों की कटिंग करवा कर क्रिकेट की ट्रेनिंग ली। लड़कों के साथ क्रिकेट खेली और उनकी गेंदों पर भी चौके-छक्के लगाए। 
शैफाली आईसीसी-टी-20 रैकिंग में नंबर एक महिला बल्लेबाज बनीं। उन्होंने 15 साल की उम्र में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेलने वाली सबसे युवा खिलाड़ी बनने का मुकाम हासिल किया। रोहतक की रहने वाली शैफाली ने वर्ष 2019 में महिला टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल में जगह पक्की कर इतिहास रचा। वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत के लिए सबसे कम उम्र में अर्धशतक लगाकर रिकॉर्ड बनाने वाली शैफाली को महिला क्रिकेट टीम का वीरेंद्र सहवाग कहा जाता है। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी हैं। उनके पिता संजीव वर्मा ने बताया कि रोहतक में लड़कियों की क्रिकेट अकादमी नहीं थी। शैफाली ने लड़कों की अकादमी में ट्रेनिंग ली। भारतीय टीम की ओपनर बल्लेबाज बन चुकी शैफाली की अभी तो शुरुआत है। सच कहें इस लड़की को दुनिया बहुत आगे तक जाते देखेगी।
तमन्ना ने मुक्कों के दम पर बनाई दुनिया में पहचान
कहते हैं हौंसले जब बुलंद हों तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती। ऐसी ही कहानी है नूंह-मेवात के गांव मांडीखेड़ा में रहने वाली तमन्ना की। तमन्ना के पिता अनिल भारती एक बार उन्हें नगीना के बॉक्सिंग सेंटर लेकर गए थे। कोच ने तमन्ना में हुनर देखा और उन्हें बॉक्सिंग शुरू करने के लिए कहा। पिता ने भी इसके लिए मंजूरी दे दी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
तमन्ना के मुक्के की ‘गूंज’ पहले जिला और राज्य स्तर तक पहुंची। उन्होंने कई पदक जीते। कोरोना काल में भी उनके मुक्के रुके नहीं और उन्होंने अपना अभ्यास जारी रखा। इसका फल भी मिला। पहले उनका चयन हरियाणा मुक्केबाजी टीम के लिए हुआ और फिर उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चुना गया। तमन्ना ने भारतीय मुक्केबाजी टीम में जगह बनाई। 
तमन्ना की उड़ान यहीं खत्म हुई नहीं और पिछले महीने ही उन्हें जॉर्डन में हुई जूनियर एशियन चैम्पियनशिप के लिए चुना गया। 66 किलो भार वर्ग में उन्होंने देश का प्रतिनिधित्व किया। क्वार्टर फाइनल तक उनके ‘पंच’ का किसी के पास जवाब नहीं था। हालांकि, उनका सफर क्वार्टर फाइनल में खत्म हो गया। तमन्ना की ‘तमन्ना’ दुनिया में अपने मुक्कों का लोहा मनवाने की है।
मोनिका ने बिना हाथ-पैर मुंह से उकेरे जिंदगी के ‘रंग’
मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। इस कहावत को सही साबित कर दिखाया है यमुनानगर की मोनिका शर्मा ने। सात वर्ष की उम्र में मोनिका गंभीर बीमारी के कारण दिव्यांग हो गईं। हाथ व पांव निष्प्राण हो गए। आवाज चली गई। पिता राजकुमार ने काफी इलाज कराया। करीब डेढ़ साल के बाद मोनिका की आवाज लौट आई, पर हाथ-पैर सही नहीं हुए। मोनिका ने हिम्मत नहीं हारी और पढ़ाई जारी रखने का इरादा बनाया। स्कूलाें ने दाखिला देने से इनकार कर दिया। फिर एक सरकारी स्कूल में दाखिला मिला। मोनिका ने मुंह में कलम पकड़कर पहले दसवीं और फिर स्नातक की परीक्षा पास की। 
परिवार की आर्थिक हालत सही नहीं थी तो आगे पढ़ाई नहीं कर सकी। फिर मुंह में ब्रश पकड़ कर पेंटिंग उकेरने लगीं और दिव्यांग लड़कियों के लिए प्रेरणा बनकर उभरी। उन्हें पेंटिंग्स के लिए कई अवॉर्ड भी मिले। इनमें ह्युमैनिटी अचीवर अवॉर्ड-2018, कर्मयोगी पुरस्कार, 2020 में डाॅ. सरोजनी नायडू अवॉर्ड व वेद शंकुतला मेमोरियल अवार्ड-2019 शामिल हैं।
बिना पिता के सहारे आशा ने पाई मंजिल
कैथल के चंदाना गेट निवासी खिलाड़ी 22 वर्षीया आशा रानी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं। उनके पिता मदन लाल का देहांत करीब 16 साल पहले हो गया था। उस समय वह मात्र 6 साल की थीं। करीब आठ साल पहले कोच राजेश कुमार के पास राजकीय स्कूल कैथल में जूडो खेलना शुरू किया। घर में मां दर्शना देवी, भाई कुलदीप और बड़ी बहन पूजा है। आशा ने इंडोर स्टेडियम में जूडो कोच जोगिंदर सिंह के पास जूडो और कुराश का अभ्यास किया। आशा ने 2016-17 में इटावा में जूनियर जूडो राष्ट्रीय स्पर्धा में कांस्य पदक जीता। तीन साल से आल इंडिया यूनिवर्सिटी जूडो स्पर्धा में भाग ले रही हैं। कुराश में 2018 में कर्नाटक में हुई जूनियर राष्ट्रीय स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया।

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