बुलंद हौसलों से मिली सविता पूनिया को हॉकी में मंजिल

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
सिरसा के ग्रामीण अंचल में जन्मी सविता पूनिया के हॉकी खेलने के जुनून ने उन्हें भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान तक पहुंचा दिया। उनकी गिनती सर्वश्रेष्ठ गोलकीपरोंं में होती है। हॉकी में ओलम्पिक खेल चुकीं सविता पूनिया का जन्म 11 जुलाई, 1990 को सिरसा के गांव जोधकां के डॉ. महेंद्र पूनिया के घर हुआ। स्कूली समय में 14 वर्ष की उम्र में वर्ष 2004 में शिक्षक केवल कंबोज ने उन्हें हॉकी थमाई। उसके बाद सविता अपने खेतों में अभ्यास करने लगी। सविता प्रैक्टिस के लिए बस की छत पर बैठकर 60 किलोमीटर रोज यात्रा करती थीं।  
सविता ने मुश्किलों से अपना सफर शुरू किया और आज एशिया की बेस्ट गोलकीपर के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। देश की महिला हॉकी की कप्तानी भी उन्हीं के पास हैं। उनकी कप्तानी में पिछले वर्ष टोक्यो ओलम्पिक खेलोंं में आस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम के सामने उन्होंंने 9 पेनल्टी कार्नर रोककर भारतीय टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया। सविता की मां कहती हैं कि उनको बेटी पर नाज है, क्योंकि उनकी बेटी सविता हमेशा हर मैच में सर्वश्रेष्ठ करने का प्रयास करती है। 
यक्षिका ने बड़े भाई की प्रेरणा से दिखाया मुक्कों का दम
बड़े भाई से प्रेरणा लेकर यक्षिका ने बाक्सिंग की दुनिया में कदम रखा। पानीपत शहर की बतरा कॉलोनी निवासी यक्षिका देशवाल एक बेहद साधारण परिवार से हैं। यक्षिका का बड़ा भाई मिलन देशवाल बाक्सिंग में गोल्ड मेडलिस्ट है। उसने पानीपत के शिवाजी स्टेडियम में कोच सुनील के मार्गदर्शन में बाक्सिंग की तैयारी शुरू की। यक्षिका के मुक्कों में दम व उसकी फुर्ती देखकर कोच सुनील ने दावा कर दिया कि बेटी एक दिन मुक्केबाजी में पानीपत का नाम विश्व में रोशन करेगी। यक्षिका देशवाल ने बाक्सिंग की तैयारी में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
यक्षिका ने पिछले माह मार्च में जॉर्डन में आयोजित जूनियर एशियन बॉक्सिंग चैंपियनशिप के 52 किलो भार वर्ग में गोल्ड मेडल जीता। उसने बताया कि फाइनल मुकाबले में उज्बेकिस्तान की खिलाड़ी को 4-1 से चित करके गोल्ड पर कब्जा किया। विधायक प्रमोद विज खिलाड़ी यक्षिका देशवाल को 4 अप्रैल को पानीपत पहुंचे मुख्यमंत्री मनोहरलाल के पास सेक्टर 13-17 स्थित हैलीपेड पर ले गये और वहां पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी खिलाड़ी यक्षिका देशवाल को मिठाई खिलाकर बधाई दी। 
परिवार ने बढ़ाया हौसला तो कीर्ति को मिला मुकाम
परिवार से मिली खेल की प्रेरणा तो कीर्ति की कीर्ति चारों ओर फैलती चली गयी। कैथल की रहने वाली 17 वर्षीय बेटी कीर्ति के पिता सेना में कर्नल हैं। इसके चाचा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर के बॉक्सर हैं। उन्हें देखकर ही इन्होंने खेलना शुरू किया। बॉक्सिंग खिलाड़ी कीर्ति ढुल ने अपने मुक्के के दम पर पिछले माह जार्डन में हुई यूथ एशियन बाक्सिंग प्रतियोगिता में रजत पदक जीता है। वहीं कीर्ति ने दुबई में जूनियर और यूथ एशियन बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। वर्ष 2018 में भोपाल में हुई स्कूल नेशनल प्रतियोगिता में कीर्ति ने कांस्य पदक से संतोष किया। इसके बाद दिल्ली में आयोजित नेशनल स्तरीय प्रतियोगिता में उन्होंने स्वर्ण पदक जीत कर खुद को फिर से साबित कर दिया। वर्ष 2021 में गोहाना में हुई जूनियर स्टेट बाक्सिंग प्रतियोगिता में कीर्ति ने स्वर्ण पदक जीता। कीर्ति को अपने परिवार से ही खेल की प्रेरणा मिली। कीर्ति को अपने परिवार का पूरा साथ मिलता है। इसके बूते पर आज कीर्ति की जांबाजी का डंका बजता है।
हिमांशी मारवाह को पदक जीतने की लालसा
पंचकूला सेक्टर 4 की निवासी हिमांशी मारवाह बचपन से ही मार्शल आर्ट‍्स का प्रशिक्षण ले रही हैं। उन्होंने दो बार ताईक्वांडो में ब्लैक बेल्ट जीती है। वह एक बार राज्य स्वर्ण पदक विजेता रही इसके अलावा राज्य, राष्ट्रीय और ओपन राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उसने लगभग 30 पदक जीते हैं। उनके पास लगभग 9 अंतरराष्ट्रीय पदक हैं, इसके अलावा हिमांशी एक कलाकार हैं और उनकी कला को कई कला दीर्घाओं में प्रदर्शित किया गया है। उन्होंने 2019 में आर्टिस्ट ऑफ द ईयर का पुरस्कार भी जीता है। वह 2015 से गरीब लड़कियों को नि:शुल्क आत्मरक्षा भी सिखाती हैं और उनकी प्रेरणा उनकी मां अमिता मारवाह हैं क्योंकि वह 10 साल की उम्र से उनके साथ काम कर रही हैं।                   

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