खिलाड़ी बेटियों के जोश और जुनून को हिन्दुस्तान का सलाम

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
बेटियां अबला नहीं सबला हैं। इसे खिलाड़ी बेटियों ने अपने जोश और जुनून से साबित किया है। आज खेलपथ ऐसी बेटियों की कर्मठता से अपने पाठकों को अवगत करा रहा है जिन्होंने मुसीबतों की परवाह किए बिना देश ही नहीं दुनिया में हिन्दुस्तान का गौरव बढ़ाया है।
नेहा गोयल ने संघर्ष के मैदान में दागे जीत के गोल
सोनीपत: टोक्यो ओलम्पिक में बतौर मिड फील्डर भारतीय महिला हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करने वाली नेहा गोयल की सफलता के पीछे अभावग्रस्त जिंदगी और संघर्ष की कहानी है। 2018 एशियाई खेलों के फाइनल में भारत की ओर से गोल करके सुर्खियों में आने के बाद नेहा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिता की मौत के बाद मां परिवार का पालन पोषण करने के लिए फैक्टरी में मजदूरी करती थी। बाद में नेहा भी मां के साथ फैक्टरी में मजदूरी करने लगी। साइकिल के रिम के 100 तार का बंडल बांधने के एवज में उसे मात्र चार रुपये मिलते थे। मां सावित्री ने फैक्टरी में मजदूरी के अलावा दूसरों के घरों में काम करके नेहा को आगे बढ़ाया। 
दिलचस्प बात यह है कि नेहा हॉकी में रुचि के चलते नहीं आई, बल्कि जब वह पांचवीं कक्षा में थी तब उसकी सहेली ने बताया कि अगर वह हॉकी खेलती है तो उसे जूते और किट मिलेगी। इसी के चलते नेहा हॉकी मैदान तक पहुंच गई। प्रैक्टिस करने के लिये नेहा को हर रोज फटे जूतों में कई किलोमीटर तक दौड़ना पड़ता था। भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच की देखरेख में उनकी अकादमी में हॉकी में उसे अपने सपनों को पंख मिले और आज देश की श्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार है।
उदिता दूहन ने दिवंगत पिता के सपने को लगाए पंख
हिसार। एशिया कप में चीन को हराकर स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम की मिड फील्ड प्लेयर उदिता दूहन ने अपने स्वर्गीय पिता के सपने को पूरा करने के लिए इतना दम लगा दिया कि वह सपने से भी आगे निकल गई। उदिता मूल रूप से भिवानी के नांगल गांव की रहने वाली हैं लेकिन इस समय हिसार में रह रही हैं। इनके पिता सतबीर सिंह पुलिस में एएसआई थे, जिनकी ब्लड इन्फेक्शन के कारण मृत्यु हो गई थी। सतबीर सिंह खुद खिलाड़ी थे और बेटी को इंडियन टीम में देखना चाहते थे। टीम की परफार्मेंस के बढ़ने का श्रेय उदिता ने स्टैंडिंग और प्रैक्टिस के अलावा टीम में कम्युनिकेशन और फोकस के बढ़ने को दिया है। उदिता ने कहा कि हिसार साई के कोच आजाद सिंह मलिक के अलावा इंडियन कोच हरिंदर सिंह की तकनीक ने टीम को मजबूत बनाया है। अपनी मजबूती के लिए वे कोच के अलावा अपने पिता की यादों और मां के समर्पण को श्रेय देती हैं।
ड्राइवर की बेटी पूजा ढांडा ने कुश्ती में लहराया परचम
हिसार। दंगल फेम स्टार पहलवान गीता फोगाट के अलावा हरियाणा की ही सरिता को चित करके कॉमनवेल्थ का टिकट हासिल करने वाली हिसार की बेटी पूजा ढांडा ने अपने परिवार और प्रदेश का नाम रोशन किया है। पूजा बताती हैं, उनका यहां तक का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। उनके पिता अजमेर ढांडा का उन्हें कदम-कदम पर समर्थन हासिल हुआ। उनके पिता पशुपालन विभाग में ड्राइवर हैं, वहीं पूजा इस समय कुश्ती के कोच के पद पर कार्यरत हैं।
पूजा ने वर्ष 2006 से 2008 तक जूडो में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण व एक कांस्य पदक जबकि राष्ट्रीय स्तर पर चार स्वर्ण पदक जीते। बाद में वे पहलवानी में उतरीं। जब उन्होंने पहलवानी शुरू की तो पिता को काफी लोगों ने टोका भी। वे कुश्ती में वर्ष 2009 से अब तक दो दर्जन से ज्यादा इंटरनेशनल प्रतियोगताओं में भाग ले चुकी हैं। सिंगापुर में वर्ष 2010 में पहली बार हुए यूथ ओलम्पिक गेम्स में हिस्सा लेने वाली पहली महिला खिलाड़ी और देश को पहला मेडल दिलाने का गौरव भी पूजा के नाम ही है।

 

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