यूपी के खेल मंत्री गिरीशचंद्र यादव के सिर कांटों का ताज

बंद स्पोर्ट्स कॉलेज और आवासीय खेल छात्रावासों को खुलवाने की चुनौती

मार्च 2020 में निकाले गए 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों की बहाली जरूरी

श्रीप्रकाश शुक्ला

लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दूसरे कार्यकाल के लिए मंत्रिमंडल गठन के साथ मंत्रियों के विभागों का बंटवारा सोमवार 28 मार्च को हो गया है। पूर्व खेल मंत्री उपेन्द्र तिवारी की पराजय के बाद जौनपुर सदर से दूसरी बार जीतकर आए पेशे से अधिवक्ता गिरीशचंद्र यादव को उत्तर प्रदेश का खेल एवं युवा कल्याण मंत्री बनाया गया है। मौजूदा स्थितियों को देखते हुए यह पद सही मायने में उनके सिर कांटों के ताज की मानिंद ही है।

खेल मंत्री गिरीशचंद्र यादव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पहले कार्यकाल में आवास एवं शहर नियोजन मंत्री थे। संघर्षशील यादव के सामने प्रदेश की खस्ताहाल खेल स्थिति को सुधारने के साथ ही खेल निदेशालय में बैठे कुछ विघ्नसंतोषियों से निपटना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। देखा जाए तो कोरोना संक्रमण के दौर में बिगड़ी उत्तर प्रदेश की खेल गतिविधियों को सुधारने की बजाय खेल निदेशालय द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को गलत जानकारियां देकर खेलों में ऐसा खेल किया गया कि बीमारी लाइलाज सी हो गई।

कोरोना संक्रमण खत्म होने के बाद उम्मीद थी कि बंद स्पोर्ट्स कॉलेज और आवासीय खेल छात्रावास खोले जाएंगे लेकिन ऐसा करने की बजाय खेल निदेशालय इन कॉलेजों और छात्रावासों के रंग-रोगन में पैसे का खेल करता रहा। उत्तर प्रदेश में साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों के पद स्वीकृत हैं लेकिन मौजूदा समय में एक भी प्रशिक्षक नहीं है। यद्यपि खेल निदेशालय ने 25 मार्च को आउटसोर्सिंग कम्पनियों को पत्र भेजकर लगभग 166 मानदेय खेल प्रशिक्षकों के नवीनीकरण का निर्णय तो ले लिया है लेकिन इसमें भी विलम्ब होने से इंकार नहीं किया जा सकता। वजह प्रशिक्षकों द्वारा अदालत में दायर वाद को मान सकते हैं।

खेल मंत्री श्री यादव को खेल निदेशालय द्वारा प्रशिक्षकों की नियुक्ति में लम्बे समय से जो खेल किया जा रहा है, उसे न केवल समझना होगा बल्कि मानवीयता के आधार पर मार्च 2020 में निकाले गए 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों की बहाली भी करनी होगी। यद्यपि खेल निदेशालय आउटसोर्सिंग का बहाना लेकर नहीं चाहेगा कि निकाले गए प्रशिक्षकों की बहाली हो। इसकी मुख्य वजह उसके द्वारा साल भर प्रशिक्षकों की भर्ती का भ्रष्टाचारी खेल मुख्य वजह माना जा सकता है।

खेल मंत्री गिरीशचंद्र यादव यदि प्रदेश में खेल प्रशिक्षकों और खिलाड़ियों की खेल निदेशालय द्वारा की जा रही दुर्दशा को समझ कर उन्हें इंसाफ दिला सके तो सच मानिए कि उनका कार्यकाल खेलों में ताली पीटने वाला साबित होगा। उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां साल भर प्रशिक्षकों की नियुक्ति का खेल खेला जाता है, जबकि प्रशिक्षकों की नियुक्ति एक साथ की जानी चाहिए। यदि एक साथ साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों की नियुक्ति हो जाए तो तय समय में प्रदेश के सभी जिलों में प्रशिक्षण शिविर संचालित किए जा सकते हैं और उसका सभी खिलाड़ियों को लाभ भी मिल सकता है।

खेल मंत्री श्री यादव को के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम सहित राजधानी के अन्य क्रीड़ांगनों में बेजा तौर पर अपना हक जमाए लोगों को भी बाहर का रास्ता दिखाने की पहल करनी होगी। इससे मैदान जहां महिला खिलाड़ियों के लिए महफूज होंगे वहीं खेलों के नाम पर चल रहे खेलवाड़ पर भी रोक लग जाएगी। खेल मंत्री श्री यादव को सबसे पहले खेल निदेशालय में लम्बे समय से पनाह पाए नटवरलालों की कारगुजारियों को समझना होगा। यदि वह ऐसे नटवरलालों की नकेल कस सके तो सच मानिए उत्तर प्रदेश के क्रीड़ांगनों से न केवल किलकारियां गूंजेंगी बल्कि दो साल से घर बैठे सैकड़ों खेल प्रशिक्षकों के परिवार उनको दुआएं देंगे।          

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