बैडमिंटन का नया सितारा शटलर लक्ष्य सेन

श्रीप्रकाश शुक्ला
विश्व खेल मंच पर इस समय यदि किसी भारतीय खिलाड़ी की तूती बोल रही है तो वह कोई और नहीं बल्कि युवा शटलर लक्ष्य सेन है। विक्टर एक्सेलसन के खिलाफ ऑल इंग्लैंड के फाइनल में हार के बावजूद, अल्मोड़ा का युवा लक्ष्य सेन हर तरफ अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ रहा है। लक्ष्य जिस तरह अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है उससे हर भारतीय को उस पर गर्व है। उम्मीद है कि यह शटलर अपनी प्रतिभा और कौशल से एक दिन एशियाड, राष्ट्रमंडल तथा ओलम्पिक खेलों में भी हिन्दुस्तान का गौरव जरूर बढ़ाएगा। 
देखा जाए तो अगस्त, 2021 से दिसम्बर तक लगभग नौ टूर्नामेंट खेले गए जिसमें लक्ष्य सेन एक अजेय योद्धा की तरह आगे बढ़ा और अपने विरोधियों को पीछे छोड़ने में कोताही नहीं बरती। लक्ष्य ने सफलता के अपने इस सफर में डच ओपन के फाइनल, फ्रेंच और डेनिश ओपन के क्वार्टर फाइनल, जर्मनी में हायलो इवेंट के सेमीफाइनल, वर्ल्ड टूर फिनाले के सेमीफाइनल तथा विश्व चैम्पियनशिप के सेमीफाइनल में खेलते हुए अपने कौशल की शानदार बानगी पेश की। यद्यपि उसे इंडोनेशियाई ओपन और इंडोनेशियाई मास्टर्स, दोनों चैम्पियनशिप में दुनिया के नम्बर एक खिलाड़ी केंटो मोमोटा से पहले दौर में ही हार का सामना करना पड़ा लेकिन इसे हम खेल का हिस्सा मान सकते हैं।
लक्ष्य की सबसे बड़ी खूबी उसका खेल कौशल नहीं बल्कि उसकी कभी हार न मानने की दृढ़-इच्छाशक्ति है। यही वजह है कि वह बिना किसी विश्राम के दिल्ली में इंडिया ओपन खेला और विश्व चैम्पियन सिंगापुर के लोह को हराकर खिताब जीता तो यूरोपीय दौरे में वह जर्मन ओपन और ऑल इंग्लैंड के फाइनल तक पहुंचा। मौजूदा साल के अभी तीन महीने ही बीते हैं लेकिन इस जांबाज ने ओलम्पिक चैम्पियन विक्टर एक्सेलसन सहित दुनिया के सभी प्रतिष्ठित शटलरों को पराजित कर अपने स्वर्णिम भविष्य का संकेत जरूर दिया है।
लक्ष्य ने ऑल इंग्लैंड प्रतियोगिता में छठी वरीयता प्राप्त मलयेशिया के ली जी जिया तथा डेनमार्क के बेहद गतिशील और खतरनाक तीसरी वरीयता प्राप्त खिलाड़ी एंडर्स एंटोनसेन को भी हराया। लक्ष्य सेन की खासियत उनकी मानसिक मजबूती है। लक्ष्य सेन की खूबियों और कमजोरियों को उसके खेलगुरु प्रकाश पादुकोण और विमल कुमार से बेहतर कोई नहीं बता सकता, जिन्होंने तब से उसे प्रशिक्षित किया है, जब वह महज नौ साल का था। 
बकौल विमल, 'इस दुबले-पतले दिखने वाले बच्चे की जिस चीज ने सबसे पहले मुझे प्रभावित किया, वह थी रैली जारी रखने की उसकी क्षमता। उससे बड़े अन्य बच्चे तीसरे या चौथे स्ट्रोक के बाद गलतियां करते थे, पर वह मजे से खेलता रहता था और फिर पूरे दिन वह बैडमिंटन हॉल में कुछ न कुछ करता रहता था। उसे बस बैडमिंटन खेलना पसंद था। कई बार उसके पिता को उसे बाहर ले जाना पड़ता था।' 
इससे प्रकाश पादुकोण भी सहमत हैं, जो कहते हैं कि ‘मुझे प्रारम्भिक दिनों में ही अहसास हुआ कि लक्ष्य कुछ खास है। खेल के लिए उसका प्यार स्पष्ट था और वह तेज सीखने वालों में से था।’ लक्ष्य के दैनिक कोच विमल कुमार के अनुसार, 'उसके जूनियर दिनों से ही यह स्पष्ट था कि उसे बड़े नामों की परवाह नहीं है। जितना बड़ा नाम उतना बेहतर उसका खेल। 
लक्ष्य की उपलब्धियों पर गौर करें तो वह विश्व जूनियर नम्बर एक खिलाड़ी बनने के साथ ही मात्र 17 वर्ष की उम्र में ही डच ओपन का खिताब जीतने वाला शटलर है। लक्ष्य समझदार है, वह कभी परेशान नहीं होता और मानसिक रूप से बेहद मजबूत भी है। बकौल प्रकाश पादुकोण 'लक्ष्य बहुत मेहनती, अपने खेल पर केन्द्रित, अनुशासित, समर्पित, जमीनी और अपने से उच्च रैंक वाले खिलाड़ी के साथ खेलते हुए भी मानसिक रूप से मजबूत रहता है।' 
लक्ष्य काफी सजग है और हमेशा अंक पाने के तरीके ढूंढ़ता रहता है। कोर्ट में तो वह हमेशा कुछ न कुछ नया करता रहता है। प्रतिद्वंद्वी को बाहर निकालने की रणनीति बनाते हुए उसके पास हमेशा दो तीन योजनाएं होती हैं और कोर्ट पर जोखिम लेने से भी उसे कतई गुरेज नहीं। विमल कहते हैं कि 'वह हमेशा अपने विरोधी खिलाड़ी की कमजोरी पकड़ने की कोशिश करता है, ताकि उसका फायदा उठा सके। 
देखा जाए तो लक्ष्य सेन के खेल में कोई स्पष्ट कमजोरी नहीं है। उसका डिफेंस, नेट प्ले और आक्रमण में विविधता कमाल की है। हम कह सकते हैं कि लक्ष्य तकनीकी रूप से एक सम्पूर्ण शटलर है। यह युवा पहले से ही खिताब जीत रहा है, पर उसे कुछ बड़ी स्पर्धाओं में जीत हासिल करनी है। विश्व चैम्पियनशिप, एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल इस साल निर्धारित हैं और यहीं उसे साबित करना है कि वाकई वह बेजोड़ है। 
लक्ष्य अपने समकक्षों-मलयेशिया के ली जी जिया और थाईलैंड के कुनलावुत विटिडसर्न से उम्र में बहुत छोटा है, इसलिए ऐसा कोई कारण नहीं है कि वह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ शटलर न हो। जैसा कि प्रकाश पादुकोण कहते हैं, लगभग छह महीने पहले विश्व सर्किट के फिर से शुरू होने के बाद से लक्ष्य लगातार खेल रहा है। यह कोई साधारण कार्य नहीं है। उसने सही मायने में विश्व मंच पर अपने आगमन की घोषणा की है। अब उसका वक्त शुरू हो गया है। काश वह बैडमिंटन खेल में नए प्रतिमान स्थापित कर दुनिया में मादरेवतन का मान बढ़ाए तथा लहर-लहर तिरंगा फहराए।

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