खेलनहार खिलाड़ियों को मैदान में दौड़ाएं कोर्ट में नहींः चीफ जस्टिस

सचिव और संचालक खेल बताएं क्यों नहीं दी खिलाड़ियों को  प्रोत्साहन राशि 
खेलपथ संवाद
जबलपुर।
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खिलाड़ियों की बलैयां लेते हैं तो दूसरी तरफ भाजपा शासित राज्यों में उनके खेलनहार खिलाड़ियों को खून के आंसू रुलाने का कोई मौका जाया नहीं कर रहे। आखिरकार खिलाड़ियों को न्याय के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ रही है। मध्यप्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग की नादरशाही पर जबलपुर उच्च न्यायालय ने न केवल गम्भीरता दिखाई बल्कि प्रमुख सचिव खेल और संचालक खेल से कहा कि खिलाड़ियों को मैदान में दौड़ाएं कोर्ट में नहीं।
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमथ व  न्यायाधीश विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने खेल और युवक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव व खेल संचालक मध्यप्रदेश शासन को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर  पूछा है  कि  पुरस्कार नियम में प्रावधान होने के बावजूद भी खिलाड़ियों के राष्ट्रीय पदक पर पुरस्कार राशि क्यों नहीं दी गई? युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान खेल अधिकारियों पर यह भी मौखिक टिप्पणी की कि खिलाड़ियों को कोर्ट में नहीं मैदान में दौड़ाइये।
जबलपुर निवासी नेशनल मेडलिस्ट वुशू खिलाडी अदिति श्रीवास्तव, आदि श्रीवास्तव एवं वीर सिंह राजपूत की ओर से एडवोकेट दिनेश उपाध्याय ने याचिका दायर कर कोर्ट को बताया कि खेल एवं युवा कल्याण विभाग, मध्यप्रदेश शासन के राजपत्र 8 मार्च, 2019 में राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों को पुरस्कार व  प्रोत्साहन राशि देने  हेतु नियम बनाये गए हैं, जिसे दरकिनार कर जिम्मेदार खेल अधिकारियों द्वारा  प्रतिभावान खिलाड़ियों को पुरस्कार राशि नियम विरुद्ध ढंग से कम या नहीं प्रदान की गई है।  खेल विभाग के पुरस्कार नियम 2019 में लेख है कि राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक पर एक लाख, रजत पदक पर 75 हजार व कांस्य पदक पर 50 हजार रुपये प्राइजमनी के रूप में दिया जाएगा। 
इस मुताबिक इतनी ही राशि विगत वर्ष के मेडलिस्ट खिलाड़ियों  को खेल विभाग द्वारा प्रदान की गई लेकिन इस वर्ष नियमों को दरकिनार कर प्रतिभावान खिलाड़ियों को या तो बहुत कम राशि दी गई या फिर दी ही नहीं गई, जिससे पदक जीतकर प्रदेश का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ियों में निराशा व्याप्त है। जो भी हो अदालत के दखल के बाद खेलनहारों की नींद उड़ गई है।

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