अबूझ पहेली हैं खेल रत्न लवलीना

'किक बॉक्सर' से मुक्केबाज बनीं बोरगोहेन
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। भारतीय महिला मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन (69 किग्रा) को मेजर ध्यानचंद खेल रत्न अवॉर्ड से नवाजा गया। उन्होंने टोक्यो ओलंपिक में चीनी ताइपे की पूर्व विश्व चैंपियन निएन चिन चेन को 4-1 से हराकर ओलंपिक में अपना पदक पक्का किया था। असम के गोलाघाट जिले की रहने वाली लवलीना ओलंपिक में भाग लेने वाली असम की पहली महिला खिलाड़ी भी बनीं। लवलीना मुक्केबाजी में आने से पहले किक बॉक्सिंग करती थीं, जिसमें वो राष्ट्रीय स्तर पर पदक भी जीत चुकी हैं। दरअसल, लवलीना ने अपनी बड़ी बहनों लीचा और लीमा को देखकर किक बॉक्सिंग करना शुरू किया था।
बचपन में लवलीना को काफी संघर्ष का सामना करना पड़ा। ओलंपिक में देश के लिए दूसरा पदक पक्का करने वाली मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को मुक्केबाजी में लाने का श्रेय बोरो को जाता है। बोरो को लवलीना पर विश्वास था। इसलिए बोरो ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में एक दिन पहले ही कह दिया था, 'वह आराम से जीतेगी, कोई चिंता की बात नहीं है।'
विश्व चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीतने वाली लवलीना का खेलों के साथ सफर असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव से शुरू हुआ था। उनकी बड़ी बहनें लीचा और लीमा किक-बॉक्सर हैं और सीमित साधनों के बाद भी उनके माता-पिता बच्चों की उम्मीदों को पूरा करने से कभी पीछे नहीं हटे। बोरो ने कहा, 'लवलीना के माता-पिता ने उसका पूरा सपोर्ट किया। वे अक्सर मेरे साथ उसके खेल पर चर्चा करते थे और उसके सपनों के लिए कुछ भी करने को तैयार थे।' लवलीना ने किसी को निराश नहीं किया। हमेशा मुस्कुराती रहने वाली यह मुक्केबाज टोक्यो का टिकट कटाकर असम की पहली महिला ओलंपियन बनीं। उन्होंने इसे पदक में बदल कर और भी यादगार बना दिया। 
इस 23 साल की खिलाड़ी की जीत को भारतीय महिला मुक्केबाजी में नए अध्याय की तरह देखा जा रहा है। दिग्गज एमसी मैरीकॉम के ओलंपिक से बाहर होने के बाद लवलीना ने अपने करियर के सबसे यादगार पल के साथ भारतीय प्रशंसकों को जश्न मनाने का मौका दिया। बोरो ने कहा, 'लवलीना में एक अच्छा बॉस्कर बनने की प्रतिभा थी और उसकी शरीर भी मुक्केबाजी के लिए उपयुक्त है। हमने केवल उसका मार्गदर्शन किया। करियर के शुरू में भी उसका शांत दिमाग उनकी सबसे खास बात थी। वह ऐसी नहीं है जो आसानी से हार मान जाए। वह तनाव नहीं लेती है। वह बहुत अनुशासित खिलाड़ी है।'
पिछले साल लवलीना की मां किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। लवलीना ने उस समय कुछ दिनों के लिए उनसे मुलाकात की लेकिन टूर्नामेंटों की तैयारियों के लिए 52 दिनों के लिए उन्हें यूरोप जाना था लेकिन इससे पहले वो कोरोना से संक्रमित हो गईं। यह प्रशिक्षण दौरा उनके लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि कोरोना के कारण भारत में कई तरह की पाबंदियां थीं। मुक्केबाजों को शिविरों के फिर से खुलने के बाद भी कई दिनों तक दूसरे मुक्केबाज के साथ अभ्यास की अनुमति नहीं थी। दूसरे खिलाड़ियों से अलग रह कर उनके लिए तैयारी करना मुश्किल था और इसका असर एशियाई चैंपियनशिप में भी दिखा, जहां वह पहले ही बाउट में हार गयी। ड्रॉ के छोटे होने के कारण हार के बावजूद भी उन्हें कांस्य पदक मिला।
लवलीना बोरगोहेन के पिता टिकेन एक छोटे व्यापारी थे और 1300 रुपये महीना कमाते थे। असम से ओलंपिक की राह इतनी आसान नहीं थी। मगर इस मुक्केबाज ने दिखा दिया कि अगर हिम्मत व जुनून के आगे कुछ भी मुश्किल नहीं होता। लवलीना अपनी मां के स्वास्थ्य को लेकर काफी चिंतित थीं। मां की सफल सर्जरी के बाद ही लवलीना वापस अभ्यास के लिए गईं। लवलीना ने वीडियो का सहारा लेकर अभ्यास किया और मुक्केबाजी में भारत के लिए पदक पक्का किया।
लवलीना समेत कोई भारतीय मुक्केबाज कांस्य पदक से आगे नहीं बढ़ पाया है। विजेंदर सिंह ने 2008 बीजिंग ओलंपिक में और एमसी मैरीकॉम ने 2012 लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। लवलीना 2018 और 2019 में हुए विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीत चुकी हैं। इसके अलावा 2018 कॉमनेवल्थ गेम्स में देश का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।

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