गरीबी भी नहीं रोक पाई सोनभद्र के सपूत रामबाबू के पांव

ओपन नेशनल एथलेटिक्स में बनाया कीर्तिमान

यूपी सरकार कब देगी 10 लाख का इनाम?

श्रीप्रकाश शुक्ला

सोनभद्र। कामयाबी की राह सिर्फ अमीरी और संसाधनों से ही नहीं मिलती। यदि इंसान में जोश, जुनून और हिम्मत हो तो गरीबी में भी कामयाबी कदम चूमने लगती है। इस बात को सिद्ध कर दिखाया है तेलंगाना के वारंगल में हुई 60वीं राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के जांबाज रामबाबू ने। सोनभद्र के मधुपुर के बहुअरा निवासी रामबाबू ने 35 किलोमीटर वाक रेस दो घंटे 46 मिनट 31 सेकेंड में पूरी कर नेशनल रिकॉर्ड बनाया है।

हाल ही ओलम्पियनों के सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के होनहार खिलाड़ियों को नेशनल में पदक जीतने पर स्वर्ण पदक विजेता को 10 लाख, रजत पदक विजेता को छह लाख तथा कांस्य पदक विजेता को चार लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का ऐलान किया था। मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक गरीब और होनहार रामबाबू को 10 लाख की प्रोत्साहन राशि मिलनी चाहिए लेकिन टके भर का सवाल यह भी कि खेल निदेशालय की नजर इस जांबाज पर अब तक पड़ी भी है या नहीं?

रामबाबू की यह कामयाबी कोई तुक्का नहीं है, इसके लिए जिगर चाहिए। इस होनहार धावक की परेशानियां अनगिनत हैं। पिता छोटेलाल मजदूरी करते हैं जिन पर तीन बेटियों और रामबाबू का बोझ है। मां मीना देवी बेटे को बड़ा खिलाड़ी बनते देखना चाहती हैं, उसके लिए वह दिन-रात मशक्कत करती हैं। माता-पिता पर तीन बेटियों के हाथ पीले करने की जवाबदेही होने के बावजूद वे बेटे रामबाबू को खेलने से कभी रोकते। रामबाबू के पिता छोटेलाल की खुद की एक इंच भी जमीन नहीं है, उनका कुटियानुमा घर भी दूसरे की ही जमीन पर बना है।

बेटा रामबाबू बड़ा खिलाड़ी बनकर देश का गौरव बढ़ाए यही सपना छोटेलाल को हाड़तोड़ मेहनत करने को मजबूर करता है। वह मेहनत-मजदूरी कर बेटे रामबाबू को आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट पुणे में प्रशिक्षण दिला रहे हैं। रामबाबू के प्रशिक्षक बसंत राणा सेना में जेसीओ हैं। राणा रामबाबू की प्रतिभा और हिम्मत के कायल हैं। बसंत राणा 2012 के लंदन ओलम्पिक में 50 किलोमीटर रेस वाक में हिस्सा ले चुके हैं। बकौल बसंत राणा मैं रामबाबू में अपना अक्स देखता हूं, मैं चाहता हूं कि सोनभद्र का यह जांबाज मेरे अधूरे सपने को पूरा करे।

बेरोजगार रामबाबू के पास पैसा नहीं पर हिम्मत जरूर है। वारंगल में कीर्तिमान बनाने से पहले रामबाबू ने 2020 में सातवीं राष्ट्रीय ओपन रेस वाकिंग की 50 किलोमीटर रेस वाक में चौथा स्थान हासिल किया था तो 2021 में हुई आठवीं राष्ट्रीय ओपन रेस वाकिंग की 50 किलोमीटर रेस वाक में दूसरा स्थान हासिल कर सभी को हतप्रभ कर दिया था। हाल ही वारंगल में रामबाबू ने 35 किलोमीटर रेस वाक में न केवल स्वर्ण पदक जीता बल्कि राष्ट्रीय कीर्तिमान भी बना डाला।      

खेलपथ से बातचीत में इस होनहार युवा ने बताया कि उसके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पिताजी को मेहनत-मजदूरी करते देखना अच्छा नहीं लगता। रामबाबू को एक अदद नौकरी की तलाश है। उसे उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उसकी जरूर मदद करेंगे। हाल ही ओलम्पियनों के सम्मान समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सीनियर नेशनल में गोल्ड मेडल जीतने वाले को 10 लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का ऐलान किया था।

रामबाबू राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर मुख्यमंत्री की घोषणा के मुताबिक 16 लाख रुपये पाने का हक रखता है। अब सवाल यह उठता है कि गैर प्रदेश के खिलाड़ियों पर धन वर्षा करने वाले योगी आदित्यनाथ जी क्या गरीब और होनहार रामबाबू को आर्थिक मदद देंगे? क्या खेल निदेशालय के आलाधिकारियों की नजर वारंगल में रामबाबू द्वारा बनाए कीर्तिमान पर गई भी है या नहीं? जो भी हो इस प्रतिभाशाली एथलीट को समय से प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए। रामबाबू जैसी प्रतिभाएं सिर्फ उत्तर प्रदेश ही देश का अभिमान हैं।

 

 

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