रियो के भाले को टोक्यो में आजमाएंगे देवेंद्र झाझरिया
पैरालम्पिक में भारत के हैं सबसे बड़े पदक दावेदार
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। देवेंद्र झाझरिया को पैरालम्पिक चैम्पियन बनाने में उनके माता-पिता का बहुत बड़ा हाथ है। देवेंद्र को याद है जब वह 2004 के एथेंस पैरालम्पिक में खेलने जा रहे थे तो उन्हें विदाई देने वाले अकेले उनके पिता राम सिंह थे। उस वक्त उनके पिता ने देवेंद्र से कहा था यहां से अकेले जा रहे हो लेकिन वहां पदक जीता तो दुनिया पीछे होगी।
2004 और 2016 पैरालम्पिक में विश्व कीर्तिमान के साथ भाला फेंक का स्वर्ण जीतने वाले देवेंद्र इस बार भी विश्व कीर्तिमान के साथ स्वर्ण जीतने की तैयारी में हैं। देवेंद्र के मुताबिक वे उसी भाले का टोक्यो में प्रयोग करेंगे जिसका उन्होंने रियो पैरालम्पिक में किया था। फिल्हाल वह तैयारियों के दौरान थ्रो में पूरी ताकत नहीं लगा रहे हैं। टोक्यो में नीरज चोपड़ा की तरह वह पूरी ताकत लगाएंगे।
दो बार के पैरालम्पिक चैम्पियन भावुक देवेंद्र झाझरिया खुलासा करते हैं कि वह अपने पिता के लिए टोक्यो में तीसरा पैरालम्पिक स्वर्ण जीतने के लिए जी-जान लगा देंगे। देवेंद्र के मुताबिक बीते वर्ष अक्टूबर माह में कैंसर से जूझ रहे उनके पिता ने उन्हें जबरन इस पदक के लिए गांधीनगर भेज दिया था। कुछ दिन बाद वह स्वर्ग सिधार गए और देवेंद्र उनसे अंतिम क्षणों में बात भी नहीं कर सके।
बीते वर्ष अक्टूबर माह में उनके पिता को फेफड़ों का कैंसर निकला। उन्होंने काफी जगह हाथ पैर मारे लेकिन सभी जगह जवाब दे दिया गया। वह पिता के साथ थे उनकी सेवा कर रहे थे। एक दिन पिता ने कहा कि तुम्हारे दो छोटे भाई यहां हैं। दोनों उन्हें संभाल लेंगे, लेकिन तुम यहां रुकोगे तो तुम्हारी तैयारियां प्रभावित होंगी। तुम्हें देश के लिए तीसरा पैरालम्पिक स्वर्ण जीतना है जाओ गांधीनगर में तैयारियां करो।
इसके बाद देवेंद्र जयपुर से गांधीनगर आ गए, लेकिन 23 अक्टूबर को फोन आया कि पिता की हालत नाजुक है। वह तुरंत वहां से भागे, लेकिन जब तक पहुंचे तब तक पिता जी का देहांत हो चुका था। देवेंद्र के मुताबिक यह उनके पिता थे जिन्होंने उन्हें जीवन में कभी निराश नहीं होने दिया। वह उन्हें हमेशा प्रोत्साहित करते थे। देवेंद्र खुलासा करते हैं कि वह पिता के कारण ही दोबारा गांधीनगर में तैयारियों में जुट गए। इसके बाद उन्होंने सिर्फ एक दिन के लिए घर का मुंह देखा है। उनका छह साल का बेटा उन्हें घर आने के लिए बोलता है। गुस्सा भी होता है, लेकिन वह उसे चाकलेट का बहाना बनाकर शांत कर देते हैं। बेटी और पत्नी तो अब समझने लगे हैं।