यूपी में खेल निदेशक आर.पी. सिंह के खिलाफ जबर्दस्त आक्रोश

खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश ने खेल प्रशिक्षकों को बनाया फुटबाल

हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक जुलाई को सुनाया अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पक्ष में फैसला

खेलपथ संवाद

लखनऊ। 25 मार्च, 2020 को 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों को सेवा से पृथक करने वाला खेल निदेशालय नित नए-नए नियम-कायदों की दुहाई देकर खेलों को सत्यानाश करने की तैयारी लगभग कर चुका है। 29 जून को खेल निदेशालय द्वारा आनन-फानन में जारी सूची में अपनों को उपकृत करने की नापाक कोशिश की गई है। पाठकों को बता दें कि 12 मार्च, 2021 को प्रशिक्षकों की जो ट्रायल ली गई थी उसमें सिर्फ 93 प्रशिक्षक शामिल थे लेकिन जो सूची निकाली गई है उसमें 97 नाम शामिल हैं।

खेल निदेशालय की इस कारगुजारी से ही साफ है कि वह सरकार को गुमराह कर रहा है। खेल निदेशक की शह पर जो कुछ हो रहा है उससे 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों में खासा आक्रोश है। ज्ञातव्य है कि 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पेट में लात मारने के बाद खेल निदेशालय ने ठेका-प्रथा के माध्यम से प्रशिक्षक रखने की कोशिश की है। खेल विभाग ने उत्तर प्रदेश में विभिन्न खेलों के 341 एडहॉक प्रशिक्षकों की तैनाती की राह खोली है। इन प्रशिक्षकों की तैनाती दस माह के लिए होगी। जेम पोर्टल के जरिए होने वाली भर्ती के लिए मुम्बई और उत्तर प्रदेश की जिन एजेंसियों को काम दिया गया था वे एजेंसियां नौ माह बाद भी अपने काम को सलीके से अंजाम देने में असमर्थ रही हैं।

राज्य में विभिन्न खेलों में खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देने के लिए खेल विभाग मानदेय पर अनुबंध के आधार पर प्रशिक्षकों की नियुक्ति करता था। पिछले साल मार्च में 377 अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों का अनुबंध खत्म हो गया था। इसके बाद तैनाती के लिए एडहॉक प्रशिक्षकों ने खूब धरना-प्रदर्शन किया, यहां तक कि अदालत में भी अपनी अर्जी लगा दी थी। हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ निकाले गए अंशकालिक प्रशिक्षकों की सेवाबहाली के पक्ष में है। उसने एक जुलाई को अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पक्ष में फैसला सुनाकर खेल निदेशालय को बैकफुट पर ला दिया है। 

अदालत के सवालों से घबराए खेल निदेशालय ने आनन-फानन में प्रशिक्षकों की भर्ती जेम पोर्टल के जरिए आउटसोर्सिंग से करने का निर्णय लेकर अपने आपको मुसीबत में डाल लिया है। एडहॉक प्रशिक्षकों की नियुक्ति के लिए उसने मुम्बई और उत्तर प्रदेश की एजेंसी से अनुबंध किया था, इसमें मुम्बई की एजेंसी को 75 फीसदी और उत्तर प्रदेश की एजेंसी को 25 फीसदी प्रशिक्षकों की तैनाती करने के अधिकार दिए गए।

खेल विभाग के अधिकारियों का कहना था कि दो एजेंसियों से अनुबंध हो गया है। इनका कहना था कि नए नियुक्त प्रशिक्षकों को अधिकतम 30 हजार और न्यूनतम 20 हजार रुपए प्रतिमाह मानदेय दिया जाएगा। इसमें जो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एनआईएस होगा उसे 30 हजार, जो सिर्फ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होगा उसे 27 हजार, जो राष्ट्रीय स्तर का खिलाड़ी होगा या एनआईएस होगा उसे 25 हजार रुपए तथा राज्य स्तर या जूनियर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को 20 हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय के रूप में मिलेंगे।

अब जब खेल निदेशालय ने एक सूची जारी कर ही दी है तो उसे यह भी बताना चाहिए कि उसने यह निर्णय आखिर क्यों लिया? जिन 377 खेल प्रशिक्षकों को बाहर किया गया उन्हें विभाग 25 हजार रुपये ही देता था अब उसे न केवल प्रशिक्षकों को पैसे देने होंगे बल्कि दोनों एजेंसियों को भी सेवा शुल्क देना होगा। ऐसे में इस कारगुजारी से खेल निदेशालय और खिलाड़ियों का क्या भला होगा। जो भी हो अदालत के हस्तक्षेप और अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पक्ष में सुनाए फैसले के बाद खेल निदेशक की हेकड़ी हवा होती दिख रही है और उन्हें कभी भी अपने पद व रसूख से हाथ धोना पड़ सकता है।

 

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