बहादुरगढ़ का बहादुर राहुल रोहिल्ला टोक्यो में दिखाएगा दमखम

बिना प्रशिक्षक कर रहा कड़ा अभ्यास
खेलपथ संवाद
बहादुरगढ़।
ओलम्पिक टिकट कटा चुके बहादुरगढ़ के बहादुर राहुल रोहिल्ला हर किसी की नजर में है। प्रशिक्षक के बिना ही यह जांबाज कड़ी मशक्कत कर रहा है। 20 किलोमीटर पैदल चाल स्पर्धा में टोक्यो ओलम्पिक के लिए चयनित हुए बहादुरगढ़ के राहुल रोहिल्ला लॉकडाउन में ओमेक्स सिटी में सेक्टर डिवाइडिंग रोड पर अभ्यास कर रहे हैं। वह 500 मीटर का निशान लगाकर अप-डाउन करके हर रोज 15 से 20 किलोमीटर तक अभ्यास करते हैं। 
कोच नहीं होने की सूरत में राहुल अपने बड़े भाई आशीष की देखरेख में ही अभ्यास कर रहे हैं। प्रदेश सरकार की ओर से पांच लाख रुपये मिलने के बाद डाइट व अभ्यास में होने वाले खर्च को लेकर चिंता कम हो गई है। राहुल का कहना है कि टोक्यो ओलम्पिक में देश की झोली में पदक जरूर डालूंगा।
राहुल बताते हैं कि पैदल चाल में ओलंपिक क्वालीफाई करने के लिए 20 किलोमीटर की दूरी एक घंटा 21 मिनट में पूरी करनी होती है। वर्ष 2019 में रांची में हुई प्रतियोगिता में मैंने यह दूरी एक घंटा 21 मिनट और 59 सेकेंड में पूरी की थी। 59 सेकेंड का समय ज्यादा लगने के कारण ओलम्पिक क्वालीफाई करने से चूक गया, लेकिन एशियाड के लिए चुन लिया गया। कोरोना के कारण एशियाड रद्द हो गया। ऐसे में मेरे पास टोक्यो ओलम्पिक खेलने के लिए फरवरी 2021 में रांची में होने वाली प्रतियोगिता ही अंतिम मौका था। 
मेरी प्रेरणा रहे ताऊ के लड़के आशीष ने तकनीकी व मानसिक तौर पर मुझे मजबूत करते हुए तीन-तीन घंटे तक कड़ा अभ्यास कराया। परिणाम रहा कि रांची में एक घंटा 20 मिनट 26 सेकेंड में 20 किलोमीटर की दूरी पूरी करके मैंने न केवल रजत पदक जीता, बल्कि ओलम्पिक के लिए भी अपना टिकट पक्का कराया।
25 वर्षीय राहुल ने वर्ष 2013 में 17 साल की उम्र में अपने ताऊ के लड़कों के साथ पैदल चाल खेलना शुरू किया था। दिन-रात एक ही सपना देखने लगा था कि मैं भी ओलंपिक में खेलूंगा और देश के लिए पदक जीतूंगा। यह सपना उस समय अचानक टूटता दिखाई दिया जब वर्ष 2016 में मां-बाप अचानक बीमार पड़ गए। पिता जी पंखे का रिपेयर करते हैं और मां गृहिणी हैं। घर के हालात अच्छे नहीं थे। हर माह उनके लिए करीब 10-12 हजार रुपये की दवाई आने लगी। ऐसे में मेरी डाइट और वाकिंग के लिए जूतों का खर्च मुश्किल हो गया। 
मैंने बीच में ही खेल छोड़ दिया, मगर रात-रात भर सो नहीं पाता था। हमेशा मुझे मेरा टूटता हुआ सपना याद आ जाता था। कुछ माह ऐसे ही चलता रहा। मुझे परेशान देख मां ने कहा मैं ठीक हूं, तुम खेलने जाओ। पिता ने भी अपनी बीमारी का खर्च आधा कर लिया। दिसंबर 2016 में खेलना फिर शुरू किया। फरवरी 2017 में खेल कोटे से जबलपुर में हुई आर्मी की भर्ती में सिपाही के पद पर भर्ती हो गया। इसके बाद मुझे कोई समस्या नहीं आई और मैंने कड़ी मेहनत की।
राहुल संयुक्त परिवार में रहते हैं। ताऊ का लड़का आशु पैदल चाल में जूनियर नेशनल खिलाड़ी रह चुका है। दूसरा भाई आशीष पैदल चाल में जूनियर नेशनल रिकॉर्डधारी है। मगर चोट लगने की वजह से वह आगे नहीं खेल सका। घर की हालत ठीक नहीं होने की राहुल ने कुश्ती व अन्य खेल नहीं चुना। ललित भनौट एथलेटिक्स अकादमी के कोच चरण सिंह राठी की देखरेख में हम तीनों भाइयों ने अभ्यास किया।
उपलब्धि
- 2014 में विजयवाड़ा में हुई जूनियर नेशनल प्रतियोगिता की 20 किलोमीटर प्रतिस्पर्धा में रजत पदक।
- 2019 में रांची में हुए सीनियर वाकिंग कप में रजत पदक।
- फरवरी 2021 में रांची में 20 किलोमीटर पैदल चाल स्पर्धा में 1 घंटा 20 मिनट व 26 सेकंड का समय लेकर रजत पदक।

 

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