सही जांच हुई तो आर.पी. सिंह ही नहीं कई और भी निपटेंगे

मामला कन्नौज के हॉकी प्रशिक्षक संजीव कुमार का

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय ने मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन को दिए जांच के निर्देश

श्रीप्रकाश शुक्ला

कन्नौज। उत्तर प्रदेश के खेल निदेशक आर.पी. सिंह की मुश्किलें कम होने की बजाय लगातार बढ़ती ही दिख रही हैं। एक तरफ प्रदेश के 377 अंशकालिक प्रशिक्षक जहां उनकी नाक में दम किए हुए हैं वहीं दूसरी तरफ कन्नौज में सेवारत रहे एक हॉकी प्रशिक्षक संजीव कुमार का मामला उनके गले की फांस बनता दिख रहा है। खेलपथ के पास एक ऐसा आडियो है जिससे निदेशक खेल आर.पी. सिंह के गड़बड़झाले का पता चलता है।

अपराधी कितना ही चालाक क्यों न हो वह अपने पीछे कोई न कोई गलती का सूत्र जरूर छोड़ देता है। पाठकों को हम बता दें कि 17 अगस्त, 2019 को तत्कालीन कन्नौज के जिलाधिकारी ने कई अन्य अधिकारियों के साथ अपराह्न लगभग एक बजे खेल परिसर का निरीक्षण किया था। जिलाधिकारी के निरीक्षण के दौरान खेल परिसर में जिला क्रीड़ा निरीक्षक के साथ ही अन्य कर्मचारी अनुपस्थित पाए गए थे। तब खेल परिसर में भी तरह-तरह की अव्यवस्थाएं मिली थीं। मामले की जांच हुई जिसमें बेगुनाह हॉकी प्रशिक्षक संजीव कुमार को बलि का बकरा बना दिया गया। जबकि प्रशिक्षक की ड्यूटी सुबह और शाम होती है। दोपहर एक बजे किसी प्रशिक्षक का खेल परिसर में क्या काम?

इस मामले के मुख्य सूत्रधार की भूमिका राजधानी लखनऊ में बैठे खेलनहारों ने ही निभाई थी। दरअसल, जिला क्रीड़ा निरीक्षक को बचाने के खेल में निदेशक खेल आर.पी. सिंह की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता। हॉकी प्रशिक्षक संजीव कुमार अपनी बेगुनाही को साबित करने हर उस चौखट पर गया जहां से उसे इंसाफ की उम्मीद थी। अफसोस उसे कहीं से इंसाफ नहीं मिला। इंसान मिलता भी तो कैसे जब खेल निदेशालय के सारे चोर-उचक्के एक हो गए हों। दरअसल, किसी भी विभाग की जांच यदि सही तरीके से करानी हो तो प्रशासन तंत्र को अपनी दूसरी जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करना चाहिए जोकि खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश में तो कम से कम नहीं होता।

संजीव कुमार चूंकि निर्दोष हैं, सो इन्होंने मामले में निडरता का परिचय देते हुए न्याय के लिए केन्द्रीय खेल मंत्रालय से लेकर केन्द्र सरकार तक गुहार लगाई। अब तक केन्द्र की तरफ से हॉकी प्रशिक्षक संजीव कुमार के मामले में दो बार जांच के आदेश हुए हैं। पहला आदेश केन्द्रीय खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा आठ सितम्बर, 2020 को सचिव खेल एवं युवा कल्याण, उत्तर प्रदेश को दिया गया था। दूसरा आदेश कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के सचिव एसपीआर त्रिपाठी ने 31 मई, 2021 को मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन को लिखा है। मामला अति गम्भीर है, यदि इसकी सही जांच की जाए तो निदेशक खेल आर.पी. सिंह सहित खेल निदेशालय में बैठे कई दीगर खेलनहारों की कुर्सी हिल सकती है और उन्हें हमेशा हमेशा के लिए नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है।

खेलपथ के पास जो आडियो है उसमें खेलनहारों की बातें सुनकर यही लगता है कि निदेशालय खेल जमूरों और भ्रष्टाचारियों का अड्डा है। यहां खेल से जुड़े कर्मवीरों की फिक्र करने की बजाय उनके शोषण के ही तरीके ईजाद किए जाते हैं। क्या मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश किसी दूसरी एजेंसी से जांच कराकर निर्दोष हॉकी प्रशिक्षक को न्याय दिलाएंगे या फिर यह प्रशिक्षक भी फुटबाल की तरह ठोकरें खाता रहेगा।        

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